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लेनिन की मूर्ति गिराए जाने के मायने



जैसा की आजकल सुर्ख़ियों में छाया हुआ है कि जैसे ही बीजेपी की सरकार बनने की घोषणा त्रिपुरा में हुई वैसे ही लेनिन की मूर्ति ध्वस्त कर दी गई. आइये जानते हैं इस खबर के पीछे का पूरा सच -

आइये सबसे पहले जानते हैं आखिर लेनिन थे कौन? और इनके स्टेचू इंडिया में आखिर क्यों हैं? 
व्लादिमीर लेनिन का जन्म २२ अप्रैल १८७० में सिम्बर्स्क (रूस) में हुआ था लेकिन इनका असली नाम लेनिन नहीं था. इनका असली नाम था व्लादिमीर इलिच उल्यानोव, इन्होने अपना सरनेम लेनिन खुद से ही रख लिया था. उस समय रूस में जार का शासन था. गरीब बेहद गरीब थे और देश का सारा पैसा केवल कुछ ही लोगों के पास था. जगह जगह इसका विरोध होता रहता था इसका विरोध करने वालों में से लेनिन के बड़े भाई भी थे जिनको जार ने मरवा दिया था क्योंकि वो तानाशाह को मरवाने के षड्यंत्र में लिप्त पाए गये थे. लेनिन के पिता की मृत्यु पहले ही हो चुकी थी तो अब परिवार की गरीबी का पूरा बोझ लेनिन के कन्धों पर ही होता है.

इस घटना का लेनिन के जीवन पर असर काफी दिनों तक देखा गया था. बचपन में ही लेनिन को ये आभास हो जाता है कि जार के पास कितनी शक्तियां हैं और ये शक्तियां जब किसी गलत व्यक्ति के हाथ में आ जाती हैं तो वो इसका कैसे दुरूपयोग करता है. भाई की मौत के बाद लेनिन कजान विश्वविद्यालय में कानून की पढाई पढने के लिए जाते हैं लेकिन देश विरोधी विचारों के कारण विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिये जाते हैं. इसके बाद भी अपनी पढ़ाई को जारी रखने के लिए वो अपने पैत्रिक घर आ जाते हैं जहाँ उनकी बहन को भी निष्कासित कर दिया जाता है. यहाँ पर उसकी मुलाकात कुछ पुराने क्रांतिकारियों से होती है और उसके कार्ल मार्क्स की "DAS KAPITAL" पढने का मौका मिलता है और यही से शुरुआत होती है उसकी विचारधारा बदलने की. लेनिन कार्ल मार्क्स से इतने प्रभावित होते हैं कि जगह जगह जाकर लोगों को ये बताने लगते हैं कि कार्ल मार्क्स के तरीके से अगर शासन किया जाये तो देश में कोई गरीब ही नहीं रहेगा. तभी जार को लेनिन की योजनाओं की भनक लग जाती है और उसे साइवेरिया भेज "देश निकाला" दे दिया जाता है इधर लेनिन अपना सरनेम बदल लेता है और "लेनिन" उपनाम रखता है. रूस के लोग वैसे ही गरीबे से बेहद त्रस्त थे ऐसे में लेनिन का विद्रोही रवैया एकदम आग में घी डालने का काम करता है और काफी लोग लेनिन से प्रभावित होने लगते हैं. 

अब बात करते हैं प्रथम विश्व युद्ध की - काफी लोग कहते हैं कि लेनिन ने लोगों को अपने देश का साथ न देने के लिए भडकाया था. ये पूर्णतः सत्य नही है. लेनिन की नजर में था कि रूस को युद्ध में भाग नही लेना चाहिए था बल्कि अपने लोगों की गरीबी पर ध्यान देना चाहिए था इसी वजह से वो लोगों से अपील करता है कि युद्ध हमारा मूल कारण नहीं है. हमें अपने देश की तस्वीर बदलनी हैं. अभी तक रूस में काफी लोग बामपंथ के प्रभाव में आ चुके थे. अंततः जार का शासन ख़त्म हुआ और फिर सत्ता पाने के लिए बामपंथी आपस में ही संघर्ष करने लगे. इसी घटना को इतिहास में "लाल आतंक" कहा जाता है. कहा जाता है जितना जार के शासन में खून नहीं बहाया गया उससे कहीं ज्यादा तो बामपंथियो के आपसी संघर्ष में लोग मारे गए. खैर इसका अंत ऐसे हुआ कि लेनिन के हाथ में सत्ता आ गई लेकिन लाखों लोगों का खून बहने के बाद. लेनिन के विरोधियों ने अपेक्षाकृत अधिक खून बहाया लेनिन और उसके लोगो पर जानलेवा हमले हुए और लेनिन की पार्टी ने भी करीब करीब 2 लाख लोगों का खून बहाया लेकिन लेनिन ने जिस विचारधारा की बार ताउम्र की उस विचारधारा को हकीकत में लाने के लिए उन्हें करीब २० साल और चाहिए थे सत्तासीन होने के बाद लेकिन उससे पहले ही लेनिन की मौत हो जाती हैं. यूँ कहिये लेनिन ने अपनी पूरी ज़िन्दगी में उस समाजवाद जैसा कुछ भी नहीं किया जिसकी उन्होंने वकालत की थी या जो कार्ल मार्क्स ने लिखा था या शायद वे करते मगर उससे पहले ही मौत का दामन थाम लिया. लेकिन आने वाली पीढियां केवल कर्मो के आधार पर मूल्यांकन करती हैं विचारधारा पर नहीं और अधिकतर की नजर में लेनिन उतने खरे नहीं उतर पाए जितना वे वामपंथियों की नजरों में हैं.


अब बात आती है आखिर भारत में लेनिन के स्टेचू क्यों बनाये गये हैं. इसकी शुरुआत M N ROY ने की थी जोकि इंडियन कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक भी थे. ये लेनिन से मिलने रूस गये थे. लेनिन ने इन्हें बताया कि मार्क्सवाद आखिर है क्या. समाज में एक समान वित्तीय सांचा क्यों होना चाहिए? लेनिन से ये इतने ज्यादा प्रभावित हुए कि जब अपनी पार्टी बनाई तो लेनिन को एक प्रमुख स्थान दिया.

लेनिन की मौत के बाद स्टॅलिन से खुद को इनका उत्तराधिकारी घोषित कर दिया हालाँकि लेनिन की विचारधारा में और स्टॅलिन की विचारधारा में बहुत बड़ा फर्क था. लेकिन लेनिन ने एक मजबूत ढांचा पहले ही तैयार कर दिया था जिसका फायदा स्टॅलिन से ज़िन्दगी भर उठाया. USSR का जब गठन हुआ तो इसके सारे देशों में लेनिन और स्टालिन की मूर्तीयाँ बनवाई गई थीं. स्टालिन ने अपनी विस्तारवादी नीति से काफी सारे देशों पर बामपंथ रंग चढ़ा दिया लेकिन बाद में ये बात सबको समझ में आ गई कि बामपंथ और खून खराबे से सरकारें नहीं चल सकतीं. इसके बाद वही हुआ जो ज़रूरी था USSR का विघटन हुआ काफी सारे स्वतंत्र देश बने और उन देशों में अपनी अपनी विचारधारा पर सरकारें बनी और लगभग हर जगह लेनिन और स्टॅलिन की मूर्तियाँ ध्वस्त की गई ये जताने के लिए कि अब हमें बामपंथी सोच की ज़रूरत नहीं, हमें लाल आतंक नहीं चाहिए. हमें प्रगतिशील होना है.

हम आपको अलग अलग देशों की कुछ तस्वीरें देखाते हैं जहाँ सोवियत संघ के विघटन के बाद लेनिन और स्टॅलिन की मूर्तियाँ -












ये तो थी बामपंथी विघटन के समय की तस्वीरें जो ये दर्शाती हैं कि बामपंथ और लाल आतंक से लोग किस तरीके से त्रस्त हो चुके थे. अब बात करते हैं भारत की जहाँ पर लेनिन की मूर्ति गिराने पर वामपंथी रो रो कर घड़े भर रहे हैं जबकि ऐसी कई घटनाएँ हो चुकी हैं जिनपर बामपंथी एकदम से चुप हो जाते हैं .

१. अमर जवान ज्योति, मुंबई : रोहिग्या मुस्लिमो के लिए बंगलादेशी मुस्लिमो ने मुंबई में कैसे अमर जवान ज्योति की तहस नहस कर दिया था. ये तस्वीर सब कुछ ब्यान करती है और इस घटना से सब  अच्छी तरह वाकिफ हैं ही. 


२. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मूर्ति : ये तस्वीर है हमारे देश के महान नेता और क्रांतिकारी नेता जी सुभास चन्द्र बोस जी की.



आप अंदाजा लगा सकते हैं कि किस तरीके से राष्ट्रभक्ति की भावनाएं खतरे में पड़ रही हैं. जिन सुभास चन्द्र बोस ने अपने पूरे जीवन में देश के लिए अपना सब कुछ दे दिया उन्हें उनके गृहराज्य प्रश्चिम बंगाल के लोगों ने ये सिला दिया? उनकी मूर्ति पर कालिख पोत दी गई? तब ये वामपंथी कहाँ सोये हुए थे? क्या देशभक्तों की कोई इज्जत नहीं इनकी नजर में? पूरी विचारधारा केवल विदेशियों की ही है अपने दिमाग से और देश के क्रांतिकारियों के लिए कोई जगह नहीं इनके दिलों में? ये तस्वीर बताती है कैसे बंगाल की धरती पर ममता बनर्जी ने बंगलादेशी घुसपैठियों को जगह दी जिनकी नजरों में हमारे देश के महान विभूतियों की कोई इज्जत नहीं?

३. डॉ भीमराव आंबेडकर और पेरियार की मूर्ति:


न्यूज़ में कई बार आया है कि आंबेडकर की मूर्ति को क्षतिग्रस्त किया गया है और इल्जाम हमेशा बीजेपी आरएसएस पर ही लगाया जाता है. मूर्ति क्षतिग्रस्त करने वाले कभी पकड़े नहीं जाते. फिर आप कैसे कह सकते हैं कि ये बीजेपी कार्यकर्ताओं ने किया है. आरएसएस भीमराव आंबेडकर को जितना सम्मान देता है उतना शायद कोई सन्गठन नही देता. 

आरएसएस में लोगों का सरनेम कोई मायने नहीं रखता वहां जाति की कोई बात नहीं होती फिर भी मनुवादियों का ठप्पा लगा दिया गया है? विचारिक रूप से अगर आप आरएसएस को अभी तक नही समझ पाए हैं तो आप कभी नही समझ पाएंगे क्योंकि आरएसएस आंबेडकर की विचारधारा की प्रसंशा करता है जबकि आंबेडकर के नाम से पार्टियाँ और संगठन बनाने वाले लोग केवल मनुवादियों के विरोध पर चलते हैं. 

आंबेडकर ने एक ब्राम्हण महिला से शादी की थी आज तक कोई उन्हें ब्राम्हणवादी नहीं कहता न उस महिला की तारीफ करता है जिसने ब्राम्हण होते हुए भी आंबेडकर से विवाह किया. गलत कोई भी हो सकता है. लेकिन एक धर्म, जाति और संगठन पर सवालिया निशान लगाना गलत है. आरएसएस और बीजेपी से आये भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र दमोदर दास मोदी ने स्वयं ही इन मूतियों के तोड़े जाने पर आपत्ति दर्ज की लेकिन किसी भी वामपंथी ने विरोध दर्ज नहीं किया क्योंकि इनकी नजरों में आंबेडकर से ज्यादा विदेशी लेनिन ज़रूरी हैं. 

४. पेरियार की मूर्ति: तमिलनाडु से खबर आती है कि बीजेपी कार्यकर्ताओं ने पेरियार की मूर्ति क्षतिग्रस्त कर दी. 

पहली बात तो ये है कि बीजेपी का तमिलनाडु में कोई खास वजूद नहीं हैं. जिन लोगों ने ऐसा काम किया है वो किसी भी पार्टी से वास्ता नहीं रखते उनका काम केवल सुर्ख़ियों में आना है. बीजेपी आजकल एकलौती बड़ी पार्टी है देश में तो जाहिर है लोग फेमस होने के लिए इसका सहारा लेंगे ही. लेकिन इस घटना पर भी किसी भी वामपंथी संगठन ने उतना विरोध नहीं किया जितना लेनिन की मूर्ति ढहाए जाने पर किया था.

५. भगत सिंह के नाम से लेनिन का बचाव लेकिन भगत सिंह की एक भी मूर्ति नही बामपंथी दफ्तरों में: जैसे ही लेनिन का नाम आता है वामपंथी बचने के लिए भगतसिंह की आड़ लेने लग जाते हैं जबकि इनके ऑफिस में आजतक किसी ने किसी भारतीय क्रांतिकारी या नेता की तस्वीर नही देखी होगी. लेनिन, स्टॅलिन, माओ, फिदेल कास्त्रो इनके अलावा अगर आप चाहते हैं कि भगतसिंह की होंगे तो आप बहुत गलत सोच रहे हैं. वामंथी केवल भारतीय प्रतीकों का इस्तेमाल तब करते हैं जब वो खुद फंस जाते हैं.

६. इंदिरा गाँधी की मूर्ति: इस समय अगर किसी पार्टी में लचर नेत्रत्व है तो वो हैं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस. ये लोग लेनिन की मूर्ति गिरने पर जिन वामपंथियों का साथ दे रहे हैं उन्होंने से त्रिपुरा में सरकार ही सबसे पहले इंदिरा गाँधी की मूर्ति क्षतिग्रस्त की थी.

७. हिन्दू प्रतीकों और देवी देवताओं की मूर्तिओं का खंडन: भारत में अगर आप हिन्दू हैं तो सेक्युलर होने का पूरा ठेका आपने  ऊपर उठा रखा है. सोमनाथ मन्दिर पर १७ बार हमला हुआ, शिवलिंग को खंडित कर सीढियों में लगा दिया गया. कशी विश्वनाथ मन्दिर को नष्ट करके मंदिर बना दिया गया. रामजन्म भूमि और कृष्ण जन्म भूमि तहस नहस कर दी गई. नालंदा विश्वविद्यालय तोड़ दिया गया. कश्मीर दंगे में कई कश्मीरी पंडित विस्थापित हुए, कश्मीर में हिन्दू मन्दिरों को अभी तक तोड़ा जा रहा है. MF हुसैन भारत माता और हिन्दू देवी देवताओं की अश्लील तस्वीरें बना रहे हैं. PK मूवी में शिव जी का मजाक उड़ाया जा रहा है. हिन्दुओं को तडपाने के लिए जानबूझकर बीफ फेस्टिवल आयोजित किये जा रहे हैं. बंगाल में दुर्गा पूजा पंडाल में दुर्गा जी की मूर्ति तोड़ दी जा रही है. शिवलिंग के ऊपर पैर रखकर लोग फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं. इन घटनाओं से लोकतंत्र खतरे में नहीं आता जबकि देश की मेजोरिटी हिन्दू हैं. हमारी कोई धार्मिक भावनाएं नहीं हैं? या वो लेनिन के अनुयायियों की हैं बस?

 किसी जानकार ने इनमे से किसी एक भी घटना की निंदा वामपंथियों या कांग्रेसियों द्वारा होते हुए देखी हो तो ऐसा इन्सान एलियन ही होगा क्योंकि ऐसा असम्भव है जब कोई वामपंथी इन घटनाओं पर अपनी चोंच खोले.


अब बात करते हैं कि भारत में पब्लिक प्रॉपर्टी नष्ट करने का कोई कानून है भी या नहीं? हमारे पास इसका कानून है : Prevention of Damage to Public Property Act, 1984. अगर कभी पब्लिक प्रॉपर्टी तोड़ी जाती है तो इसमें सबसे बड़ा सवाल प्रशासन और पुलिस पर किया जाना चाहिए कि क्यों उनके होते हुए भी ऐसी घटनाएँ सामने आ रही हैं?


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लेखक से ट्विटर पर मिले - 

 Ashwani Dixit (@DIXIT_G)

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