सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

राजदीप सरदेसाई की पत्रकारिता के शर्मनाक किस्से भाग-2


पत्रकार राजदीप सरदेसाई पर लिखी हमारी पहली पोस्ट पाठकों ने हाथों हाथ लिया और सिर्फ 2 दिनों में उस पोस्ट को 3 हजार से ज्यादा लोगो ने पढ़ा और अभी भी वह पोस्ट रोज पढ़ी जा रही हैं, और लोग लगातार दूसरे भाग की माँग कर रहे हैं, हमारे ऊपर विश्वास जताने के लिए आप सभी पाठकों का अत्यंत आभार और धन्यवाद।

राजदीप सरदेसाई भले ही खुद को बड़ा काबिल पत्रकार समझें, लेकिन सच यह है कि राजदीप सरदेसाई ने पत्रकारिता नामक लोकतंत्र के खम्भे को जितना कलंकित किया हैं, शायद ही किसी और पत्रकार ने ऐसी निकृष्टता पत्रकारिता के क्षेत्र में दिखाई हो। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि जिस पत्रकार का गुजारा ही दूसरे से सवाल पूछ कर चलता हो उसी पत्रकार से जब आम जनता सवाल पूछती हैं तो ये सवाल पूछने वाले को ट्रोल्स/संघी/भक्त कहकर जवाब देने की जगह ट्विटर पर ब्लॉक कर देते हैं। यह ट्रोल्स/संघी/भक्त का सर्टिफिकेट सरदेसाई साहब जेब मे रखकर चलते हैं और सुविधानुसार लोगो को बांटते चलते हैं। एक बार जिसे यह सर्टिफिकेट दे दिया समझिए उसकी सवाल पूछने की eligibility खत्म, सरदेसाई साहब का मानना हैं ऐसे लोगो को जवाब देने की जरूरत नही हैं। मुझे तो आश्चर्य इस बात पर होता हैं कि जो लोग इन्हें गालिया देते हैं उनकी ट्वीट कोट करके यह लोग सारी दुनिया को बताते हैं कि देखिये हमे कैसे ट्रोल किया जा रहा हैं, हमे धमकियां दी जा रही हैं लेकिन जो सीधे और सम्मानजनक शब्दों में सवाल पूछते हैं उन्हें यह इग्नोर कर देते हैं। इसी वजह से जो झूठा आभामंडल इन्होंने अपने इर्द गिर्द बना रखा था वह तिलिस्म अब टूटता जा रहा हैं, इनके ट्विटर एकाउंट को आप देखेंगे तो पायेंगे कि पांच मिलियन फॉलोवर होने के बावजूद इनको 100 रीट्वीट मिलना मुश्किल हो जाता हैं (ट्विटर पर retweet का अर्थ हैं कि लोग आपकी बात से सहमत हैं) जबकि उससे ज्यादा लोग इनकी उस ट्वीट की आलोचना करते नजर आते हैं। भला हो सोशल मीडिया का, जबसे यह हथियार लोगो के हाथ लगा हैं ऐसे लोग लगातार बेनकाब हो रहे है इनके तिलिस्म लगातार टूट रहे है।

अब यह ट्वीट देखिये इसमें राजदीप सरदेसाई ने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी और उसके कुलपति त्रिपाठी जी पर गम्भीर आरोप लगाए, जैसा की आप ट्वीट से देख सकते है, कुलपति जी को भाजपा और मोदी के प्रचारक के तौर पर प्रदर्शित कर उनकी छवि धूमिल करने का प्रयास किया गया। जब कुलपति जी ने मोदी जी के रोड शो में शामिल होने से साफ इनकार किया और कानूनी कार्यवाही की चेतावनी दी तो 3 दिन बाद राजदीप ने 1 ट्वीट कर गलती की बात मान कर माफी मांगी, एक सीनियर पत्रकार का बार बार इस तरह से जनता के मन मे भ्रम फैलाना, लोगो की छवि खराब करना महज इत्तेफाक नहीं हैं ये सोची समझी रणनीति का हिस्सा होता है।

यहाँ तक कि यह आगे लिखते हैं ”केवल भारत में ही ऐसा हो सकता है कि एक एनडीए सांसद की ओर से फंड किया हुआ चैनल खुद को स्‍वतंत्र कहता है या एक वीसी चुनावी रोड शो में शामिल होते हैं और यूनिवर्सिटी स्‍वायत्‍त संस्‍था कहलाती है।” खैर, जिस आदमी को नौकरी भी अपनी योग्यता से अधिक अपने ससुर व दूरदर्शन के पूर्व महानिदेशक भास्कर घोष की कृपा से मिली हो, वह एक विश्वविद्यालय के कुलपति की मर्यादा, योग्यता को क्या समझेगा।

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी तक राजदीप सरदेसाई को बेतुके सवालों के लिए लताड़ लगा चुके है,पर राजदीप है कि मानते नहीं बंगाल जाकर उन्होंने गौमांस का सेवन किया और यह ट्वीट कर के माहौल खराब करना चाहा।

पर मामला उल्टा पड़ गया लोगो ने उनसे सवाल कर दिया कि आप कलकत्ता जा कर बीफ तो खा सकते है पर ममता बनर्जी से प्रदेश में फैल रहे डेंगू पर सवाल नहीं कर सकते, राज्य में इन्वेस्टमेंट पर दीदी से प्रश्न नही कर सकते ..बीफ की बात कर के हिन्दुओ को भड़काना और फिर हिन्दुओ के आक्रोशित होने पर विक्टिम कार्ड खेलना इनका लक्ष्य था ताकि ममता बनर्जी के कुशासन से ध्यान भटकाया जा सके।

अब इस तस्वीर में आप स्वयं देख सकते है कि राजदीप सरदेसाई और बरखा दत्त देश के पूर्व राष्ट्रपति मिसाइल मैन और भारत रत्न डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का इंटरव्यू ले रहे है, जहाँ एक तरफ सादगी से परिपूर्ण डॉ कलाम जमीन और बैठे हुए है वहीं दूसरी तरफ दोनों पूरे दम्भ और अहंकार में कुर्सी पर विराजमान हैं, यह सामान्य शिष्टाचार होता है कि हम अपने से उम्र में या पद में बड़े व्यक्ति के लिए कुर्सी छोड़ देते है और गेस्ट तो भगवान का रूप होता है, चलिए किसी भी कारणों से आपने कुर्सी नहीं भी छोड़ी तो भी अल्पसंख्यकों के बड़े पैरोकार बनने का दावा करने वाले राजदीप जिनका हर घटना में दिल पसीज जाता है वो डॉ कलाम को उस लिहाज से ही कुर्सी छोड़ सकते थे, पर नही छोड़ी क्योंकि डॉ कलाम उन मुस्लिमो में से नहीं है जो उनके narattive को सूट करते है।

यह देखिये 9 मार्च 2018 की तस्वीर है, कांग्रेस की पूर्व अध्यक्षा सोनिया गांधी इंडिया टुडे के कार्यक्रम में आयी थी, आप राजदीप के आभामंडल से अनुमान लगा सकते है कि वो कितने अभिभूत है, ये तस्वीर उनकी निष्ठा दिखाने के लिए पर्याप्त है।
ऊपर वीडियो में देख सकते हैं की कैसे पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने इन्हें फटकार लगाई थी।

राजदीप सरदेसाई की सारी पत्रकारिता हिन्दू, मोदी, बीजेपी विरोध के इर्दगिर्द सिमटी हुई हैं, अपने पूरे पत्रकारिता के कैरियर में इन्होंने हिन्दू, मोदी, बीजेपी से इतर कुछ भी नही किया, जबकि ईमानदार पत्रकारिता का अर्थ हैं कि आप राग-द्वेष से मुक्त होकर ईमानदारी से सभी मुद्दों की रिपोर्टिंग करे। कोई भी नेता, पार्टी, धर्म परफेक्ट नही हो सकता सबमें कुछ कमियां होती हैं और लोग गलतियां भी करते हैं इसलिए सिर्फ वह खबरे ना दिखाए जो आप के नरेटिव के अनुकूल हैं और अगर आप ऐसा नही कर पा रहे हो तो पत्रकारिता छोड़कर राजनीति में आ जाये यह ज्यादा बेहतर रहेगा। 
इस पोस्ट का पहला भाग पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करे

पत्रकारिता के शर्मनाक किस्से : राजदीप सरदेसाई ने प्रशांत पटेल की FIR वाली ट्वीट में आम आदमी पार्टी के अंकित लाल को क्यो किया टैग


अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इस पोस्ट का लिंक फेसबुक, ट्विटर , व्हाट्सएप आदि सोशल साइट्स पर जरूर शेयर करे।

लेखक से ट्विटर पर मिले - अंकुर मिश्रा (@ankur9329)








टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जानिए कैसे एससी-एसटी एक्ट कानून की आड़ में हो रहा मानवाधिकारो का हनन

सुप्रीम कोर्ट के एससी-एसटी एक्ट पर दिए गए फैसले के खिलाफ दलित संगठनों ने भारत बंद बुला कर पूरे देश भर में हिंसक प्रदर्शन किया जिसमें दर्जन भर लोगो की जान गई और सरकार की अरबों रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ। अब सवाल ये उठता है कि आखिर एससी/एसटी ऐक्ट को लेकर पूरा विवाद है  क्या जिस पर इतना बवाल मचा है, चलिए जानते हैं इस बारे में विस्तार से.. अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम,(The Scheduled Castes and Tribes (Prevention of Atrocities) Act, 1989 ) को 11 सितम्बर 1989 में भारतीय संसद द्वारा पारित किया था, जिसे 30 जनवरी 1990 से सारे भारत ( जम्मू-कश्मीर को छोड़कर) में लागू किया गया। यह अधिनियम उस प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होता हैं जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का सदस्य नही हैं तथा वह व्यक्ति इस वर्ग के सदस्यों का उत्पीड़न करता हैं। इस अधिनियम मे 5 अध्याय एवं 23 धाराएं हैं। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को महाराष्ट्र के एक मामले को लेकर एससी एसटी एक्ट में नई गाइडलाइन जारी की थी, जिस

Selective Journalism का पर्दाफाश

लोकतंत्र के चार स्तंभ होते हैं कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका और मीडिया जो इस देश को लोकतान्त्रिक तरीके से चलाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। कार्यपालिका जवाबदेह होती है विधायिका और जनता के प्रति और साथ ही दोनों न्यायपालिका के प्रति भी जवाबदेह होते है। इन तीनो की जवाबदेही भारतीय संविधान के हिसाब से तय है, बस मीडिया के लिए कोई कानून नहीं है, अगर है तो इतने मज़बूत नहीं की जरूरत पड़ने पर लगाम लगाईं जा सकें। 90 के दशक तक हमारे देश में सिर्फ प्रिंट मीडिया था, फिर आया सेटेलाइट टेलीविजन का दौर, मनोरंजन खेलकूद मूवी और न्यूज़ चैनल की बाढ़ आ गयी. आज  देश में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय चैनल को मिला के कुल 400 से अधिक न्यूज़ चैनल मौजूद है जो टीवी के माध्यम से 24 ×7 आपके ड्राइंग रूम और बैडरूम तक पहुँच रहे हैं। आपको याद होगा की स्कूल में हम सब ने एक निबन्ध पढ़ा था "विज्ञान के चमत्कार" ...चमत्कार बताते बताते आखिर में विज्ञान के अभिशाप भी बताए जाते है. ठीक उसी प्रकार जनता को संपूर्ण जगत की जानकारी देने और उन्हें जागरूक करने के साथ साथ मीडिया लोगो में डर भय अविश्वास और ख़ास विचारधार

सुशासन का खोखलापन, बिहार में प्रताड़ित होते ईमानदार अधिकारी

" सच्चाई और ईमानदारी के पथ पर चलने वाले लोगो को अक्सर ठोकरे खाने को मिलती है , अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है लेकिन अंत में जीत उन्ही की होती है। " यह वह ज्ञान है जो वास्तविक दुनिया में कम और किताबो में ज्यादा दिखता है, लोगो मुँह से बोलते जरूर है लेकिन वास्तविक तौर पर चरित्र में इसका अनुसरण करने वाले कम ही दिखते है। बिहार में ईमानदार अफसर वरदान की तरह होते हैं, आम जनता में हीरो यही होते है क्योकि यहाँ नेताओ का काम सदियों से लोगो को बस लूटना रहा है और उनसे बिहार की आम जनता को वैसे भी कोई उम्मीद नहीं रहती। आम जनता हो या एक ईमानदार अफसर, दोनों का जीवन बिहार में हर तरह से संघर्षपूर्ण रहता है। उनको परेशान करने वाले बस अपराधी ही नहीं बल्कि स्थानीय नेता और विभागीय अधिकारी भी होते है। गरीबी, पिछड़ापन और आपराधिक प्रवृत्ति लोगो द्वारा जनता का उत्पीड़न आपको हर तरफ देखने को मिल जायेगा। हालात ऐसे हैं कि लोग यहाँ थाने से बाहर अपने विवाद सुलझाने के लिए इन छुटभैये गुंडों को पैसे देते हैं जो जज बनकर लोगो का मामला सुलझाते है, क्योकि वो दरोगा के रिश्वतख