सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

रामजन्मभूमि विवाद का इतिहास भाग-1


ऐतिहासिक जानकारियों के साथ श्री रामजन्मभूमि आंदोलन के इतिहास पर धारावाहिक लेखों की श्रृंखला।

भाग -1


6 अप्रैल 2018। यह है सुप्रीम कोर्ट की दी हुई अगली तारीख उस केस की जिसने भारतीय राजनीति को बदल कर रख दिया, एक प्रधान मंत्री ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटकर मंदिर के दरवाजे खुलवाये तो दूसरे नेता ने रथ यात्रा निकाल कर अपनी पार्टी में लिए सत्ता के दरवाजे खोल दिये। सिर्फ भगवान राम ही नहीं, राम मंदिर आंदोलन की महिमा भी इतनी अपरम्पार है कि 1984 में 2 सीट जीतने वाली बीजेपी 1992 में 120 सीट तक पहुच गयी। 1992 से से लेकर आज तक राजनैतिक द्रष्टिकोण से प्रासंगिक है राम जन्मभूमि आन्दोलन।

ये तो हुई 80 के दशक से आज तक कि बातें जो कि राजनीति में रुचि रखने तमाम वालों को पता होंगी पर रामजन्मभूमि उससे जुड़े आंदोलन घटनाओं और विवादों से जुड़ी ढेरों कथाएं है, जिनको एक पोस्ट में समाहित कर पाना बहुत जटिल कार्य है। हम चाहते है कि हमारे पाठकों को इस विषय से जुड़ी तमाम जानकारियां सुलभता से उपलब्ध हो ,इसलिए हम धारावाहिक की तरह आपके लिए राममंदिर आंदोलन पर एक श्रृंखला ला रहे हैं।


त्रेता और द्वापर युग में श्री रामजन्मभूमि

त्रेता युग के चतुर्थ चरण में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी अयोध्या की इस पावन भूमि पर अवतरित हुए थे। तुलसीदास जी और महर्षि वाल्मीकि जी ने अयोध्या नगरी के ऐश्वर्य का बहुत शानदार वर्णन किया हैं, महर्षि वाल्मीकि के कथानुसार अयोध्या में विशाल भवन बने थे, उसकी समृद्धि देखकर देवलोक जैसा आभास होता था।

भगवान के श्री राम के स्वर्ग गमन के बाद सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों ने अयोध्या पर शासन किया और इसकी ख्याति में दिन प्रतिदिन वृद्धि ही होती रही, इस कुल  के आखिरी राजा महाराजा वृहद्व्ल हुए जिनकी मृत्यु महाभारत युद्ध में अभिमन्यु के हाथो हुई थी। महाभारत के युद्ध के बाद अयोध्या उजड़ गयी, और कुछ सौ वर्षों में वहाँ सिर्फ मिटटी के टीले और स्तूप अवशेषों के रूप में बचें।

ईसापूर्व महाराजा विक्रमादित्य द्वारा पुनर्निर्माण


ईसा के लगभग 100 वर्ष पूर्व उज्जैन के राजा विक्रमादित्य अयोध्या आये और कुशल कारीगरों और ज्योतिषियों की सहायता से अयोध्या का पुनःनिर्माण करवाया और श्री राम जन्मभूमि पर बहुत भव्य और सुंदर मंदिर का निर्माण करवाया।

ईसा की ग्यारहवी शताब्दी में कन्नौज नरेश जयचंद जब अयोध्या आया तो उसने मंदिर पर सम्राट विक्रमादित्य के प्रशस्ति को उखाड़कर अपना नाम लिखवा दिया। उसी समय मोहम्मद गोरी का भारत पर आक्रमण हुआ था और पृथ्वीराज चौहान दिल्ली की गद्दी पर विराजमान थे, पृथ्वीराज चौहान की पानीपत के युद्ध में करारी हार और वीरगति पाने के बाद गोरी के अगले हमले में जयचंद का भी अंत हो गया फिर भारतवर्ष पर लुटेरे मुसलमानों का आक्रमण शुरू हो गया। मुसलमान आक्रमणकारियों ने जी भर के अयोध्या को लूटा और पुजारियों की हत्या भी कर दी, मगर मंदिर से मुर्तिया हटाने और मंदिर को तोड़ने में वे सफल न हो सके।

मुगल युग मे रामजन्मभूमि


अयोध्या पर विभिन्न आक्रमणों और अथाह लूटपाट के बाद भी श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या 14वीं शताब्दी तक बची रही। चौदहवी शताब्दी में भारत पर मुगलों का अधिकार हो गया और मुगलों ने भारत पर अधिकार करते ही भारत को इस्लामिक साँचे मे ढालने एवं सनातन धर्म के प्रतीक स्तंभो को इस्लामिक ढांचे मे बदलने के कुत्सित प्रयास सुनियोजित तरीके से शुरू किया जिसमें अयोध्या भी अछूती नही रही, लेकिन हिन्दुओ ने इस कुत्सित प्रयास का प्रबल विरोध किया। हमारे इतिहास में एक गलत बात बताई जाती है की मुगलों ने पुरे भारत पर राज्य किया , हाँ उन्होंने एक बड़े हिस्से को जीता था मगर सर्वदा उन्हें हिन्दू वीरो से प्रतिरोध करना पड़ा लेकिन कुछ जयचंदों के कारण उनकी जड़े यहाँ गहरी होती गयी।

अब आगे पढ़िए बाबर के आक्रमण के बाद अयोध्या में मस्जिद निर्माण कैसे हुआ, इस्लामिक आतताइयों ने कैसे अयोध्या का स्वरूप बदलने की कोशिश की और उसके बाद कई सौ सालो तक जन्मभूमि को मुक्त करने के लिए हिन्दुओं द्वारा किये गए युद्ध एवं बलिदान की लोमहर्षक कहानियां।

भारत में मुगलों का प्रथम शासक बाबर जब दिल्ली की गद्दी पर बैठा तो उस समय जन्मभूमि महात्मा श्यामनन्द जी महाराज के अधिकार क्षेत्र में थी। महात्मा श्यामनन्द उच्च कोटि के ख्याति प्राप्त सिद्ध महात्मा थे। इनका यश चारो ओर फैला था और हिन्दुधर्म के मूल सिद्धान्तों अनुसार महात्मा श्यामनन्द किसी भी प्रकार का भेदभाव किसी से नहीं रखते थे। इतिहास गवाह हैं हिन्दुओ की यही सह्रदयता उनपर सदा भारी पड़ी हैं।

महात्मा श्यामनन्द की ख्याति सुनकर ख्वाजा कजल अब्बास मूसा अयोध्या आया और महात्मा श्यामनन्द के साधक शिष्य हो गया। ख्वाजा कजल अब्बास मूसा बहुत महत्त्वकांक्षी था उसने महात्मा श्यामनन्द से आग्रह किया की उन्हें वो अपने जैसी दिव्य सिद्धियों को प्राप्त करने का मार्ग बताएं। महात्मा श्यामनन्द ने ख्वाजा कजल अब्बास मूसा से कहा की हिन्दू धर्म के अनुसार सिद्धि प्राप्ति करने के लिए तुम्हे योग की शिक्षा दी जाएगी , मगर वो तुम सिद्धि के स्तर तक नहीं कर पाओगे क्योकि हिन्दुओं जैसी पवित्रता तुम नहीं रख पाओगे। अतः महात्मा श्यामनन्द ने ख्वाजा कजल अब्बास मूसा को रास्ता सुझाते हुए कहा की “तुम इस्लाम धर्म की शरियत के अनुसार ही अपने ही मन्त्र “लाइलाह इल्लिलाह” का नियमपूर्वक अनुष्ठान करो ”। इस प्रकार मैं उन महान सिद्धियों को प्राप्त करने में तुम्हारी सहायता करूँगा। महात्मा श्यामनन्द के सानिध्य में बताये गए मार्ग से ख्वाजा कजल अब्बास मूसा ने सिद्धियाँ प्राप्त कर ली और उनका नाम भी महात्मा श्यामनन्द के ख्यातिप्राप्त शिष्यों में लिया जाने लगा। ये सुनकर जलालशाह नाम का एक फकीर भी महात्मा श्यामनन्द के सानिध्य में आया और सिद्धि प्राप्त करने के लिए ख्वाजा की तरह अनुष्ठान करने लगा।

जलालशाह एक कट्टर मुसलमान था, और उसको एक ही सनक थी, हर जगह इस्लाम का आधिपत्य साबित करना। जब जन्मभूमि की महिमा और प्रभाव को उसने देखा तो उसने अपनी लुटेरी मानसिकता दिखाते हुए उसने उस स्थान को खुर्द मक्का या छोटा मक्का साबित करने या यूँ कह लें उस रूप में स्थापित करने की कुत्सित आकांक्षा जाग उठी। जलालशाह ने ख्वाजा कजल अब्बास मूसा के साथ मिलकर ये विचार किया की यदि इस मन्दिर को तोड़ कर मस्जिद बनवा दी जाये तो महात्मा श्यामनन्द की जगह हमे मिल जाएगी और चूकी अयोध्या की जन्मभूमि भारत में हिन्दू आस्था का प्रतीक है तो यदि यहाँ जन्मभूमि पर मस्जिद बन गया तो इस्लाम का परचम भारत में स्थायी हो जायेगा। धीरे धीरे जलालशाह और ख्वाजा कजल अब्बास मूसा इस साजिश को अंजाम देने की तैयारियों में जुट गए।

अब एक नजर उस समय के भारत का राजनैतिक घटनाक्रम पर।  उस समय उदयपुर के सिंहासन पर महाराणा संग्राम सिंह राज्य कर रहे थे जिनकी राजधानी चित्तौड़गढ़ थी। संग्रामसिंह को राणा साँगा के नाम से भी जाना जाता है । आगरा के पास फतेहपुर सीकरी में बाबर और राणासाँगा का भीषण युद्ध हुआ जिसमे बाबर घायल हो कर भाग निकला और अयोध्या आकर के जलालशाह की शरण ली, जलालशाह ने  बाबर को शरण देकर उस पर अपना स्थापित कर लिया और बाबर को और बड़ी सेना ले कर युद्ध करने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद बाबर ने राणासाँगा की 30 हजार सैनिको की सेना के सामने अपने 6 लाख सैनिको की सेना के साथ धावा बोल दिया और इस युद्ध में राणासाँगा की हार हुई । युद्ध के बाद राणासाँगा के 600 और बाबर की सेना के 90000 सैनिक जीवित बचे, इसी बात से आप उस युद्ध की भयानकता का अंदाजा लगा सकते हैं।

इस युद्ध में विजय पाकर बाबर फिर अयोध्या आया और जलालशाह से मिला, जलालशाह ने बाबर को अपनीं सिद्धी का भय और इस्लाम के आधिपत्य की बात बताकर अपनी योजना बताई और ख्वाजा कजल अब्बास मूसा के समर्थन की बात कही । बाबर ने अपने वजीर मीरबाँकी खान को ये काम पूरा करने का आदेश दिया और खुद दिल्ली चला गया। अब जलालशाह ने अयोध्या को खुर्द मक्का के रूप में स्थापित करने के अपने कुत्सित प्रयासों को आगे बढ़ाना शुरू किया। सर्वप्रथम प्राचीन इस्लामिक ढर्रे की लम्बी लम्बी कब्रों को बनवाया गया , दूर दूर से मुसलमानों के शव अयोध्या लाये जाने लगे। पुरे भारतवर्ष में ये बात फ़ैल गयी और भगवान राम की अयोध्या को खुर्द मक्का बनाने के लिए कब्रों से पाट दिया गया, इस बात की प्रमाणिकता के लिए आप अयोध्या में और अयोध्या नरेश के महल के निकट अब भी उनमे से कुछ कब्रे और मजारे मिल जाएगी।

क्रमशः


नोट : श्रृंखला के अगले भाग में रामजन्मभूमि पर मीरबाकी के आक्रमण और हिन्दू वीरो के प्रतिरोध की लोमहर्षक कहानी पढ़े। कमेंट करके लेखक का उत्साहवर्धन जरूर करते रहे। यह पोस्ट मेल में प्राप्त करने के लिए ब्लॉग की सदस्यता लें।

अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इस पोस्ट का लिंक फेसबुक, ट्विटर , व्हाट्सएप आदि सोशल साइट्स पर जरूर शेयर करे।






टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भारत को अमेरिका पर विश्वास क्यों नहीं करना चाहिए?

ऐसा शीर्षक पढ़कर बहुत सारे लोगों को कुछ अटपटा लग सकता है, ऐसा इसलिए है या तो वो लोग अंतरराष्ट्रीय राजनीति की गहरी जानकारी नहीं रखते या फिर उनका जन्म 90 के दशक में हुआ होगा। USSR के पतन और भारत के आर्थिक सुधारों के बाद भारत का राजनैतिक झुकाव अमेरिका की ओर आ गया है लेकिन इसके पहले स्थिति एकदम विपरीत थी। भारत रूस का राजनैतिक सहयोगी था, रूस कदम कदम पर भारत की मदद करता था। भारत की सरकार भी समाजवाद से प्रेरित रहती थी और अधिकतर योजनाएं भी पूर्णतः सरकारी होती थीं, निजी क्षेत्र बहुत ही सीमित था। ये सब बदलाव 1992 के बाद आये जब भारत आर्थिक तंगी से गुजर रहा था और उसका सहयोगी USSR (सोवियत संघ रूस) विखर चुका था, तत्कालीन प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री को इस परेशानी से निकलने का कोई विचार समझ में नहीं आ रहा था अतएव भारत ने विश्वबैंक की तरफ रुख किया और विश्वबैंक की सलाह पर ही निजी क्षेत्रों में विस्तार किया गया और भारतीय अर्थव्यवस्था को मिश्रित अर्थव्यवस्था बना दिया गया। यहीं से शुरुआत हो जाती है भारत की नई राजनीति की। जहां तक मेरे राजनैतिक दृष्टिकोण की बात है मैं ये पोस्ट बस इतिहास के विभिन्न पहलुओं पर ...

Nirav Modi: All you need to know...!!

🔰Nirav Modi: One of top 100 richest person in India. He was ranked 84 on the Forbes Richest List. Forbes magazine described him as the founder of the $2.3 billion (in revenues) of Firestar Diamond. His current net worth is $1.73 billion. He belongs to a family of Diamond merchants. His father name is Deepak Modi, a diamond businessman based in Belgium. 🔰Nirav Modi is school dropout and son of a diamond trader.(School dropouts are not always Pakoda sellers). 🔰Nirav Modi brand is all over the world, including the 2 in US, two in India, two in Hong Kong, Beijing, London, Singapore, Macau. 🔰Priyanka Chopra, who was the brand ambassador of his brand. 🔰Brand: Firestar Diamond and Nirav Modi. 🔰Nirav modi brother Neeshal Modi is husband of Mukesh Ambani’s niece, Isheta Salgaocar’s. (Daughter of Mukesh's sister Dipti). 🔰36 firms linked to Gitanjali Gems are under probe post-PNB scam. 🔰PNB Manager who issued Letter of Undertaking to Nirav Modi, was Gokulnath Shetty(on...

A ticking Nuclear Bomb of Healthcare - NCT of Delhi

Let us understand current state of affairs with health care in NCT of Delhi and fallacious situation under current AAP government. Delhi have 60,000 doctors, which are registered with DELHI Medical Council (DMC). According to a DMC official, the top hospitals which are allegedly under the scanner of DMC include Max Healthcare, BLK Hospital, Apollo Hospital, Sir Ganga Ram Hospital, Metro Hospitals, Rockland Hospital, St Stephen Hospital, Balaji Hospital, Jaipur Golden Hospital, Hedgewar Hospital, Lady Hardinge Hospital, Maharaja Agrasen Hospital and Madan Mohan Malviya Hospital. The complaints that DMC receives are related to medical negligence, inflated bills, quacks practicing medicine or running their clinics. Apart from this, most private/ clinics hospitals have become clique of big pharma companies in benefit of regular gifts and international conferences to the doctors; profit margins is what makes the deal attractive. While Mohalla Clinic a temporary porta ca...