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“भारतीय फ़ुटबॉल को आपके समर्थन की ज़रूरत है” - कप्तान सुनील छेत्री ने की समर्थकों से अपील

जून की पहली तारीख़, हमारी नैशनल फ़ुटबॉल टीम इंटर्कॉंटिनेंटल कप में चायनीज ताईपे के विरुद्ध मुंबई में खेल रही थी, ये बात शायद चुनिंदा लोगों को पता हो सकती है लेकिन सच तो ये है कि देश में अधिकतर लोगों को इसके बारे में जानकारी तक नहीं थी। ख़ाली पड़ा स्टेडियम चीख़ चीख़ कर गवाही दे रहा था हम अपने देश में फ़ुटबॉल खेल के प्रति कितने असंवेदनशील है जबकि इन खिलाड़ियों को भी हमसे वही उत्साहवर्धन और समर्थन की उम्मीद होती है जो हम क्रिकेट या अन्य खेल में खिलाड़ियों के प्रति दिखाते हैं। चायनीज ताईपे के विरुद्ध हमने ये मैच 5-0 से जीता और हमारे फ़ुटबॉल टीम के कप्तान सुनील छेत्री ने गोल की हैट ट्रिक दाग़ दी, लेकिन इसके बावजूद निराशा उनके मन में इस बात को लेकर थी कि उनका ये अद्वितीय कारनामा देखने के लिए स्टेडियम में बस गिने चुने लोग थे। हमारे कैप्टन ने ट्विटर पर आकर इस बात की अपील की है कि हम फ़ुटबॉल को देखे, उनको सराहे या आलोचना करे, समर्थन दे या नहीं दे ये बाद की बात है लेकिन इस खेल को सम्मान दें और 4 जून और 7 जून को केन्या और न्यूजीलैंड के विरुद्ध होने वाले मैच को अवश्य देखे। कप्तान सुनील
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जानिए कैसे एससी-एसटी एक्ट कानून की आड़ में हो रहा मानवाधिकारो का हनन

सुप्रीम कोर्ट के एससी-एसटी एक्ट पर दिए गए फैसले के खिलाफ दलित संगठनों ने भारत बंद बुला कर पूरे देश भर में हिंसक प्रदर्शन किया जिसमें दर्जन भर लोगो की जान गई और सरकार की अरबों रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ। अब सवाल ये उठता है कि आखिर एससी/एसटी ऐक्ट को लेकर पूरा विवाद है  क्या जिस पर इतना बवाल मचा है, चलिए जानते हैं इस बारे में विस्तार से.. अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम,(The Scheduled Castes and Tribes (Prevention of Atrocities) Act, 1989 ) को 11 सितम्बर 1989 में भारतीय संसद द्वारा पारित किया था, जिसे 30 जनवरी 1990 से सारे भारत ( जम्मू-कश्मीर को छोड़कर) में लागू किया गया। यह अधिनियम उस प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होता हैं जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का सदस्य नही हैं तथा वह व्यक्ति इस वर्ग के सदस्यों का उत्पीड़न करता हैं। इस अधिनियम मे 5 अध्याय एवं 23 धाराएं हैं। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को महाराष्ट्र के एक मामले को लेकर एससी एसटी एक्ट में नई गाइडलाइन जारी की थी, जिस

रामजन्मभूमि विवाद का इतिहास भाग-2

पहला भाग पढ़ने के लिए  यहाँ क्लिक करें   रामजन्मभूमि विवाद का इतिहास भाग-1 पूर्वाभास: पिछले भाग में आपने पढ़ा कि रामजन्मभूमि पर भव्य मंदिर का कैसे निर्माण हुआ, और पानीपत युद्ध मे पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद कैसे अयोध्या में लूटपाट की गई, मुगलों के आगमन और राणा सांगा की हार तक, अब आगे पढ़ें । मुगल बादशाह बाबर ने अपने सेनापति मीरबाकी खान को जलालशाह से मिल कर रामजन्मभूमि मन्दिर को तोड़ने की योजना बनाने के लिए अयोध्या भेजा। मीरबाकी खान और जलालशाह ने मंदिर के विध्वंस का पूरा कार्यक्रम बनाया जिसमे ख्वाजा कजल अब्बास मूसा भी शामिल हो गया। उधर बाबा श्यामनन्द जी अपने मुस्लिम शिष्यों की करतूत देख के बहुत दुखी हुए और अपने निर्णय पर उन्हें बहुत पछतावा हुआ। भगवान का मंदिर तोड़ने की योजना के एक दिन पूर्व दुखी मन से बाबा श्यामनन्द जी ने रामलला की मूर्तियाँ सरयू में प्रवाहित किया और खुद हिमालय की और तपस्या करने चले गए। मंदिर के पुजारियों ने मंदिर के अन्य सामान आदि हटा लिए और वे स्वयं मंदिर के द्वार पर खड़े हो गए उन्होंने कहा की रामलला के मंदिर में किसी का भी प्रवेश हमारी मृत्यु के बाद ही ह

रामजन्मभूमि विवाद का इतिहास भाग-1

ऐतिहासिक जानकारियों के साथ श्री रामजन्मभूमि आंदोलन के इतिहास पर धारावाहिक लेखों की श्रृंखला। भाग -1 6 अप्रैल 2018 । यह है सुप्रीम कोर्ट की दी हुई अगली तारीख उस केस की जिसने भारतीय राजनीति को बदल कर रख दिया, एक प्रधान मंत्री ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटकर मंदिर के दरवाजे खुलवाये तो दूसरे नेता ने रथ यात्रा निकाल कर अपनी पार्टी में लिए सत्ता के दरवाजे खोल दिये। सिर्फ भगवान राम ही नहीं, राम मंदिर आंदोलन की महिमा भी इतनी अपरम्पार है कि 1984 में 2 सीट जीतने वाली बीजेपी 1992 में 120 सीट तक पहुच गयी। 1992 से से लेकर आज तक राजनैतिक द्रष्टिकोण से प्रासंगिक है राम जन्मभूमि आन्दोलन। ये तो हुई 80 के दशक से आज तक कि बातें जो कि राजनीति में रुचि रखने तमाम वालों को पता होंगी पर रामजन्मभूमि उससे जुड़े आंदोलन घटनाओं और विवादों से जुड़ी ढेरों कथाएं है, जिनको एक पोस्ट में समाहित कर पाना बहुत जटिल कार्य है। हम चाहते है कि हमारे पाठकों को इस विषय से जुड़ी तमाम जानकारियां सुलभता से उपलब्ध हो ,इसलिए हम धारावाहिक की तरह आपके लिए राममंदिर आंदोलन पर एक श्रृंखला ला रहे हैं। त्रेता और द्वापर य

राज्य सभा चुनाव

फोटो क्रेडिट :  northbridgetimes.com   राज्य सभा की 59 सीटों के लिए कल 23 मार्च को चुनाव होने जा रहा है .कल ही शाम तक नतीजों के साथ राज्य सभा की नई तस्वीर सबके सामने आ जायेगी. चूंकि ये इलेक्शन कम और सिलेक्शन ज्यादा होता था इसलिए आमतौर से राज्य सभा चुनाव खास इंटेटेस्ट का विषय नहीं होता था पर गुजरात में अहमद पटेल के चुनाव को जिस तरह अमित शाह ने रोचक बना दिया था उसके बाद जनता की इन चुनावों को लेकर दिलचस्पी बढ़ी है. दूसरा कारण ये भी है वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव से पूर्व ये चुनाव तब होने जा रहा था जब देश मे पुराने गठबंधन टूट रहे है और नये रिश्ते जुड़ रहे है .इसलिए ये कह पाना कठिन है कि किसका वोट किसको जाता है और यही चीज़ इन्हें दिलचस्प बना रही है सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के 27 उम्मीदवार मैदान में उतरेंगे , कार्यकाल समाप्त होने वाले सभी आठ केंद्रीय मंत्री चुनाव मैदान में है ..जहां कुछ स्थानों पर टक्कर है,वहीं अधिकांश उम्मीदवारों के निर्विरोध आने की संभावना है. सबसे पहले बात करते हैं बीजेपी की जिसके 27 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं. रिटायर होने वाले सभी आठ केंद्रीय मंत्रियों

पढ़े हिन्दू नववर्ष का वैज्ञानिक और ऐतिहासिक महत्त्व

चैत्र नवरात्र के पहले दिन से वैदिक नववर्ष की शुरूआत होती है। इस वर्ष चैत्र नवरात्र 18 मार्च से प्रारम्भ हो रहे हैं। जबकि पहली जनवरी को मनाया जाने वाला नववर्ष अंग्रेजी नववर्ष है। हमारे देश मे एक वर्ग ऐसा हैं जो पश्चिम से प्रभावित रहता हैं उन्हें हम भारतीय पिछड़े लगते हैं वो लोग ईसाई नववर्ष को ऐसे महिमामंडित करते हैं जैसे ये नववर्ष ना होता तो हम आदिम युग में जी रहे होते। देखिये विरोध हम भी नहीं कर रहे हैं आपको मनाना हैं मनाइये कौन रोक रहा हैं मगर आप हमारे हिन्दू नववर्ष को अपने कुतर्को से अपमानित करने का प्रयास करेंगे तो यह हम नहीं होने देंगे। अगर आपको लगता हैं इसाई नववर्ष श्रेष्ठ हैं तो आइये आज हिन्दू और इसाई नववर्ष को वैज्ञानिक कसौटी पर परखते हैं। वैज्ञानिक कसौटी पर वैदिक नववर्ष इसवी सन गणना का आकाशीय पिंडो और ऋतुओ से कोई सम्बन्ध नहीं हैं इन्हें एक के बाद दो और दो के बाद तीन – इस गणना का ही ध्यान रहता हैं। रविवार के सोमवार क्यों आता हैं मंगलवार क्यों नहीं आता इसका इनको कोई ज्ञान नहीं पर भारतीय ज्योतिष का विद्यार्थी यह सभी गूढ़ रहस्य जानता हैं क्योकि वारो का नामकरण भारतीय ज्यो

शहजादे पप्पू की आत्मकथा

Source- Google ज़िंदगी की शुरुआत जन्म से होती है और हमारी चांदी की चम्मच से व्हिस्की पीते हुए हुई थी। हुआ यूं कि पापा को बड़ा सा बरगद का पेड़ गिराकर धरती हिलाने से फुर्सत नहीं थी और मम्मी को श्रेया घोसाल के "मनमोहना" गाने पर दिल की आवाज़ सुनाने से, इस मार्मिक कंडीशन में हमारा साथ दिया डुग्गु काका ने। उन्होंने हमारे चमड़े के मुंह में स्मैक का कस ठूँस दिया और हमने उनके मुंह को नोटो से लबालब भर दिया। हमारी जिज्जी यूँ तो बड़ी फैशनेबल थीं लेकिन जब बात दारू पीने की आती तो बड़े बड़े शराबी फेल हो जाते; हफ्ते में एक दो बार जिज्जी एक बड़े से मयखाने पर ठीक वैसे ही कब्जा कर लेती जैसे हमारे किसान जीजू जमीनों पर कर लेते हैं। जिज्जी कलियुग की अभिमन्यु है, अभिमन्यु चक्रव्यूह भेदन गर्भ में सीखकर आता था और जिज्जी दारू के पैग अपनी टँकी में खाली करना सीख आई थीं। जिज्जी की छवि घरवालों ने घर के बाहर ठीक वैसी ही बनाई थी जैसी हमारी दादी की थी एकदम कड़क। हालांकि कड़क के नाम पर जिज्जी को केवल चाय ही पसन्द थी, लेकिन अब जो है सो है। हमारी माताश्री अपने जमाने की प्रिया वारियर थीं, अपनी एक गोली और