सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

जानिए कैसे एससी-एसटी एक्ट कानून की आड़ में हो रहा मानवाधिकारो का हनन


सुप्रीम कोर्ट के एससी-एसटी एक्ट पर दिए गए फैसले के खिलाफ दलित संगठनों ने भारत बंद बुला कर पूरे देश भर में हिंसक प्रदर्शन किया जिसमें दर्जन भर लोगो की जान गई और सरकार की अरबों रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ। अब सवाल ये उठता है कि आखिर एससी/एसटी ऐक्ट को लेकर पूरा विवाद है क्या जिस पर इतना बवाल मचा है, चलिए जानते हैं इस बारे में विस्तार से..

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम,(The Scheduled Castes and Tribes (Prevention of Atrocities) Act, 1989) को 11 सितम्बर 1989 में भारतीय संसद द्वारा पारित किया था, जिसे 30 जनवरी 1990 से सारे भारत ( जम्मू-कश्मीर को छोड़कर) में लागू किया गया। यह अधिनियम उस प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होता हैं जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का सदस्य नही हैं तथा वह व्यक्ति इस वर्ग के सदस्यों का उत्पीड़न करता हैं। इस अधिनियम मे 5 अध्याय एवं 23 धाराएं हैं।


दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को महाराष्ट्र के एक मामले को लेकर एससी एसटी एक्ट में नई गाइडलाइन जारी की थी, जिस पर दलित संगठनों ने बवाल मचा दिया, उनका कहना है कि इस तरह से तो कभी दलितों का शोषण बंद नहीं होगा। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने जो दलील दी है उसके हिसाब उसने ऐसा कानून के दुरुपयोग होने से बचने के लिए किया है।

क्या हैं एससी एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के नई गाइडलाइंस

एससी एसटी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज होने के बाद आरोपी की तत्काल गिरफ्तारी नहीं होगी। आरोपों की डीएसपी स्तर पर जांच होगी। यदि जांच में आरोप सही पाए जाते हैं तभी आगे की कार्रवाई होगी, इस एक्ट का दुरुपयोग ना हो इसलिए ये गाइडलाइन सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके गोयल और यूयू ललित की बेंच ने नए निर्देशों को जारी करते हुए कहा कि जिस वक्त ये कानून बना था तब किसी को अंदेशा ही नहीं था कि इसका मिस-यूज भी हो सकता है, लेकिन अभी हमने कई मामलों की जांच में पाया कि इस एक्ट का दुरुपयोग हुआ हैं।

इस एक्ट के तहत पहले तत्काल गिरफ्तारी का प्रावधान था और इसमें अग्रिम जमानत नही मिलती थी परंतु सुप्रीम कोर्ट की नई गाइडलाइंस के तहत आम आदमियों के लिए गिरफ्तारी जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) की लिखित अनुमति लेनी होगी और ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी दे दी है। अब 7 दिन तक जांच के बाद ही केस दर्ज होगा। अगर आरोपित सरकारी अधिकारी है तो सक्षम अधिकारी की अनुमति के बाद ही उस पर केस दर्ज होगा।

इमर्जेंसी की याद दिलाता है एससी-एसटी एक्ट का विवादित प्रावधान

देश में केवल इमर्जेंसी ही वो वक्त होता है जब पुलिस किसी को उसका पक्ष रखने का मौका दिए बगैर गिरफ्तार कर लेती है। एससी-एसटी एक्ट आरोपित के लिए ऐसी ही इमर्जेंसी के हालात पैदा कर रहा था। जो लोग आपातकाल का विरोध करते हैं, लोकतंत्र के हिमायती हैं उन्हें निश्चित रूप से एससी-एसटी एक्ट के कारण आरोपित पर थोपी जा रही इस इमर्जेंसी को भी गलत ठहराना चाहिए।  पता नहीं मानवाधिकार की वकालत करने वाले लोग ऐसे कानून का विरोध क्यों नहीं कर पा रहे थे या फिर आज सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत क्यों नहीं कर पा रहे हैं? अब अखबारों में छपी इस एक्ट के दुरुप्रयोग से सम्बंधित कुछ खबरों की कटिंग देखिये।



एक्ट का दुरुपयोग करने के कुछ उदाहरण 

उदाहरण नंबर-1 


कर दी हत्या 

करैरा के सिलरा गांव में एक दलित युवक ने सवर्णों पर हरिजन एक्ट का मामला दर्ज कराने के लिए शिकायत की थी। बताते हैं कि सवर्णों ने प्रकरण वापस लेने के लिए काफी आग्रह किया, लेकिन वह नहीं माना। नवंबर माह में एक बार फिर दोनों पक्षों में विवाद हुआ और सवर्णों ने दलित युवक की हत्या कर दी। 

उदाहरण-2 


कराई रिपोर्ट, फिर बदले बयान 


बैराड़ के एक पटवारी पर गांव की ही एक दलित महिला ने हरिजन एक्ट व बलात्कार का मामला दर्ज करा दिया था। प्रकरण दर्ज होते ही पटवारी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया, जबकि महिला के पति ने पटवारी के परिजनों से संपर्क कर सौदा तय किया। सौदा पटने के बाद महिला न्यायालय में बयान बदलने को तैयार हो गई। 


उदाहरण-3 


सचिव से वसूले 50 हजार 


बैराड़ की ग्राम पंचायत बरोद के सचिव पर गांव की ही एक महिला ने बलात्कार व हरिजन एक्ट का प्रकरण दर्ज कराया था। मामला दर्ज होते ही सचिव ने महिला से समझौता किया और 50 हजार देकर ही महिला ने बयान पलटने का शपथ पत्र पेश किया। 


उदाहरण-4 


जांच में झूठा, दबाव बरकरार 


अमोलपठा गांव में रहने वाली छाया पत्नी कामता ने हरिजन थाने में शिकायत की है कि 21 नवंबर 2011 को गांव के सवर्णों ने मेरी मटकी फोड़ दी और जातिसूचक गालियां दीं। शिकायत की जांच करने जब हरिजन थाने की पुलिस मौके पर पहुंची तो पता चला कि महिला ने खुद ही अपनी मटकी फोड़ ली और सवर्णों को फंसाने के लिए झूठी शिकायत दर्ज कराई। अजाक पुलिस प्रकरण दर्ज नहीं कर रही है, जबकि पीडि़त पक्ष राजनीतिज्ञों के लेटरपेड पर शिकायत करके दबाव बना रहे हैं। 


उदाहरण 5

किराया माँगने पर कराया केस


दिल्ली विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल करने वाली 30 वर्षीय कनकलता ने चार मई, 2008 को मकान मालिक के परिवार के खिलाफ अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति अधिनियम के प्रावधानों का इस्तेमाल किया। इस केस में आरोपियों को बरी करते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कामिनी लउ ने "व्यक्तिगत हिसाब-किताब बराबर करने के लिए अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम के दुरुपयोग की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताई।"

उदाहरण 6


बीते वर्ष मई माह में करैरा जिला शिवपुरी मध्यप्रदेश दलित पर्वतसिंह जाटव उम्र लगभग 38 वर्ष, अपने 1 साल के बच्चे  (जो की बुखार से पीड़ित था) को इलाज के लिए स्थानीय डॉक्टर(जो की वैश्य समुदाय से है) के पास लाता है, शिशु की नाजुक हालत को देखते हुए डॉक्टर साहब उसे झाँसी मेडिकल कॉलेज के लिए रैफर कर देते है, पर दलित पर्वत सिंह अपने शिशु को झाँसी न ले जाकर वही पास में बैठा रहता है, 3 घंटे उपरान्त शिशु की मृत्यु हो गई (जो की होना थी), पर्वत सिंह जिसकी लापरवाही से बच्चे की मौत हुई, डाक्टर साहब को दोषी ठहरा उन्हें गाली देता है, हरिजन एक्ट में फ़साने की धमकी देता है, तीन दिन बाद अपने पूरे परिवार के साथ आकर डॉक्टर साहब की क्लीनिक पर बखेड़ा खड़ा करता है, सामाजिक प्रतिष्ठा खराब होने के डर से, बेचारे डॉक्टर बृजमोहन अग्रवाल ने 1 लाख रूपये देकर मामला निपटाया।  भाई (@prabalvani) ने ट्वीट के माध्यम से यह जानकारी दी।

यहाँ तक कि सुप्रीम कोर्ट के जिस फ़ैसले का मायावती जी और तमाम संगठन विरोध कर रहे हैं, वैसा ही आदेश खुद मायावती जी ने भी अपनी सरकार में दिया था, उनकी सरकार ने तो यहाँ तक कहा था कि दलित उत्पीड़न की शिकायत झूठी मिलने पर शिकायतकर्ता के खिलाफ भी कार्रवाई की जाए।

एसटी एससी एक्ट के दुरुपयोग की हद तो यह है कि हाईकोर्ट का जज कर्णन सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस सहित अन्य 5 जजों को इस एक्ट में झूठा फंसाने का प्रयास करते हुए दिखे।

खैर, हम सबने 2 अप्रैल को दलितों का हिंसक प्रदर्शन देखा वह देखने के बाद सवाल यह उठता हैं कि अगर दलित प्रदर्शनकारी सरकार सुप्रीम कोर्ट पर दबाव बनाने के लिए सड़क जाम कर सकते हैं, लाठी डंडों के साथ शहर की सारी दुकाने जबरदस्ती बन्द करवा सकते हैं, आम लोगो पर गोलियां चलाकर उनकी हत्या कर सकते हैं तो क्या ये खुद की रक्षा नही कर सकते?

जो लोग सिर्फ 5 घण्टे में पूरे देश मे आग लगाने में सक्षम हैं, हिंसक प्रदर्शन में दर्जनों लोगों को गोली मार देने में सक्षम हैं, पुलिस इंस्पेक्टर की पीट-पीट कर हत्या करने में सक्षम क्या वह लोग खुद की सुरक्षा करने में सक्षम नही हैं? इन्हें गैरजमानती धाराओं वालो कानून चाहिए, क्षतिपूर्ति मुआवजा चाहिए. ताकि ये आम लोगो को उस कानून का सहारा लेकर प्रताड़ित कर सके जैसा ऊपर उदाहरण देकर हमने साबित किया हैं।

हिंसक आंदोलन की तस्वीरें




यह तस्वीरें ध्यान से देखिये, और आप स्वयं तय करिये जो लोग इतना हिंसक आंदोलन कर सकते हैं, क्या उन्हें ऐसे अमानवीयता भरे कानून की जरूरत हैं? और अगर इन लोगो को ऐसा काला कानून जो आम आदमी के मानवाधिकार का हनन करने वाला हैं मिला तो यह अच्छे से समझ जाइये की ये उसकी आड़ में गुंडई करेंगे और प्रतिरोध करने वालों पर फर्जी मुकदमे करवाकर कानूनी रूप से भी प्रताड़ित करेंगे।


मानवाधिकारों का हनन करने वाले इस कानून में सुप्रीम कोर्ट का दिया दिशा निर्देश स्वागतयोग्य हैं जिसका सभी को स्वागत करना चाहिए। इसका विरोध सुप्रीम कोर्ट के ख़िलाफ़ है। सुप्रीम कोर्ट के विरोध की इजाजत किसी को इस देश में नहीं है मगर आंदोलन का भी अपना स्वभाव होता है। अगर आंदोलनकारी नतीजे भुगतने को तैयार हैं तो वे आंदोलन निश्चित रूप से कर सकते हैं। मगर, कोई भी आंदोलन तब तक सफल नहीं होता है जब तक कि उसकी वजह नैतिक ना हो। याद रखे हरिजन एक्ट के खिलाफ फैसला किसी सरकार, किसी पार्टी या किसी खाप पंचायत का न होकर भारत की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट का है। इस फैसले का विरोध करना अदालत की अवमानना है। जिन लोगों ने अदालत की अवमानना की है उनके खिलाफ सरकार और सुप्रीम कोर्ट को सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।

अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इस पोस्ट का लिंक फेसबुक, ट्विटर , व्हाट्सएप आदि सोशल साइट्स पर जरूर शेयर करे।



लेखक से ट्विटर पर मिले - 
Awantika‏🇮🇳 (@SinghAwantika)




टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भारत को अमेरिका पर विश्वास क्यों नहीं करना चाहिए?

ऐसा शीर्षक पढ़कर बहुत सारे लोगों को कुछ अटपटा लग सकता है, ऐसा इसलिए है या तो वो लोग अंतरराष्ट्रीय राजनीति की गहरी जानकारी नहीं रखते या फिर उनका जन्म 90 के दशक में हुआ होगा। USSR के पतन और भारत के आर्थिक सुधारों के बाद भारत का राजनैतिक झुकाव अमेरिका की ओर आ गया है लेकिन इसके पहले स्थिति एकदम विपरीत थी। भारत रूस का राजनैतिक सहयोगी था, रूस कदम कदम पर भारत की मदद करता था। भारत की सरकार भी समाजवाद से प्रेरित रहती थी और अधिकतर योजनाएं भी पूर्णतः सरकारी होती थीं, निजी क्षेत्र बहुत ही सीमित था। ये सब बदलाव 1992 के बाद आये जब भारत आर्थिक तंगी से गुजर रहा था और उसका सहयोगी USSR (सोवियत संघ रूस) विखर चुका था, तत्कालीन प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री को इस परेशानी से निकलने का कोई विचार समझ में नहीं आ रहा था अतएव भारत ने विश्वबैंक की तरफ रुख किया और विश्वबैंक की सलाह पर ही निजी क्षेत्रों में विस्तार किया गया और भारतीय अर्थव्यवस्था को मिश्रित अर्थव्यवस्था बना दिया गया। यहीं से शुरुआत हो जाती है भारत की नई राजनीति की। जहां तक मेरे राजनैतिक दृष्टिकोण की बात है मैं ये पोस्ट बस इतिहास के विभिन्न पहलुओं पर ...

Nirav Modi: All you need to know...!!

🔰Nirav Modi: One of top 100 richest person in India. He was ranked 84 on the Forbes Richest List. Forbes magazine described him as the founder of the $2.3 billion (in revenues) of Firestar Diamond. His current net worth is $1.73 billion. He belongs to a family of Diamond merchants. His father name is Deepak Modi, a diamond businessman based in Belgium. 🔰Nirav Modi is school dropout and son of a diamond trader.(School dropouts are not always Pakoda sellers). 🔰Nirav Modi brand is all over the world, including the 2 in US, two in India, two in Hong Kong, Beijing, London, Singapore, Macau. 🔰Priyanka Chopra, who was the brand ambassador of his brand. 🔰Brand: Firestar Diamond and Nirav Modi. 🔰Nirav modi brother Neeshal Modi is husband of Mukesh Ambani’s niece, Isheta Salgaocar’s. (Daughter of Mukesh's sister Dipti). 🔰36 firms linked to Gitanjali Gems are under probe post-PNB scam. 🔰PNB Manager who issued Letter of Undertaking to Nirav Modi, was Gokulnath Shetty(on...

A ticking Nuclear Bomb of Healthcare - NCT of Delhi

Let us understand current state of affairs with health care in NCT of Delhi and fallacious situation under current AAP government. Delhi have 60,000 doctors, which are registered with DELHI Medical Council (DMC). According to a DMC official, the top hospitals which are allegedly under the scanner of DMC include Max Healthcare, BLK Hospital, Apollo Hospital, Sir Ganga Ram Hospital, Metro Hospitals, Rockland Hospital, St Stephen Hospital, Balaji Hospital, Jaipur Golden Hospital, Hedgewar Hospital, Lady Hardinge Hospital, Maharaja Agrasen Hospital and Madan Mohan Malviya Hospital. The complaints that DMC receives are related to medical negligence, inflated bills, quacks practicing medicine or running their clinics. Apart from this, most private/ clinics hospitals have become clique of big pharma companies in benefit of regular gifts and international conferences to the doctors; profit margins is what makes the deal attractive. While Mohalla Clinic a temporary porta ca...