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अक्तूबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हिन्दू पर्व और अल्ट्रा मार्डन लिबरल ब्रिगेड

जब भी तीज त्योहरों का मौसम पास आता हैं, एक अजीब तरह के लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय  हो जाते हैं. कुछ तो शालीनता से अपनी बात रखते है, लेकिन कुछ लोग गाली गलौज पे उतर आते हैं. कुछ मज़ाक उड़ाने वाले भाव में अपना ज्ञान बांटते दिखते हैं. कुछ लानत भेजते दिखते  हैं.  अभी  कुछ दिनों पहले करवा चौथ खत्म हुआ है. ज्ञान देने वालो की तो जैसे एक बाढ़ सी ही आ गयी. ऐसा लगा की जो लोग यह त्यौहार मनाते हैं  उनसे  गया गुजरा जीव इस धरती पर हो ही नहीं सकता. ऐसे ज़माने में, जब मनुष्य कबका चाँद पर हो कर आ गया है , आप चाँद की पूजा कर रहे हो? चाँद को देख कर व्रत तोड़ रहे हो? राम! राम! राम! शायद इस वाक्य से पहले लिखे  तीन शब्दों पर भी मुझे लताड़ा जा सकता हैं. पर क्या करें, पुरानी आदत है, आराम से नहीं जाएगी. इन तीज त्योहारों के पास आते ही, आप को विज्ञान, पर्यावरण, प्रदुषण और इन सबसे ऊपर तर्क शास्त्र, सभी का संम्मिश्रण करके ऐसा धोबी पछाड़ दिया जाता है कि जीवन में कभी कोई व्रत नहीं रखने वाला भी लहूलुहान हो जाये. और व्रत रखने वाले अगर कोमल दिल के हों तो आत्मग्लानि से भर जाएं.  एक मजेदार बात और है, बाकी

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर धार्मिक प्रतीकों का अपमान

हम तो आपको अपमानित करेंगे अगर तुमने रोका तो ये हमारे संवैधानिक अधिकारों में आपका अतिक्रमण माना जायेगा. आप माने या नहीं लेकिन   " धर्म एक आस्था का विषय है तब तक ही जब वो आपका है" । ज्यादा दिन नहीं हुए कुछ साल पहले एक फ्रेंच मैगजीन ने कटाक्ष किया तो खून की होली खेली गई साथ ही हर प्लेटफार्म से कहा गया की धार्मिक प्रतिको से उनके धर्म का अपमान हुआ था. यूरोप को छोडिये भारत में ही ऐसे अनेको उदाहरण है उसमे से आमिर खान की फिल्म PK जिसमे भगवान् शंकर को भागते हुए फिल्माया गया है और सबसे ज्यादा विवादों में मकबूल फ़िदा हुसैन रहे जो हिन्दू देवियों के नग्न पेंटिंग बनाते थे और गर्व के साथ उसको अपनी कला भी बताते थे. यहाँ तक की जब उनसे माफ़ी मांगने को कहा गया तो माफ़ी मांगने से साफ़ इनकार करते हुए नागरिकता छोड़ के दुसरे देश का नागरिकता अपना लिया, कुछ दिन पहले इरफ़ान हबीब ने अपने सलून का अखबारों में विज्ञापन दिया है जिसमे देवी देवताओ को दिखाया गया है साथ में शीर्षक लिखा है " Gods too visit JH salon " दुर्गाष्टमी पर शबाना आज़मी हिन्दू धर्म पर कटाक्ष करते हुए ये ट्वीट किया

हम हिन्दू पलायनवादी क्यों है?

हम कब तक सहेंगे और कब तक समझौतावादी बने रहेंगे। समझौतावाद ही हमारी कमजोरी बन गया है, और जब तक ये समझौतावा बना रहेगा तब तक दुसरे लोग हमे ऐसे ही झुकाते रहेंगे। और ऐसे ही हम अपनी इस मातृभूमि, जन्मभूमि, कर्मभूमि, पुण्यभूमि भारत वर्ष का बटवारा होते देखते रहेंगे। सर्वप्रथम अरबो ने सिंध पर हमला किया राजा दाहिर अकेले लड़े बाकि पूरा भारत देखता रहा। परिणाम, अरबो की जीत हुई, मुहम्मद बिन कासिम ने सिन्धी हिन्दुओ और बौद्धों का कत्ले आम किया, औरतो को गुलाम बनाकर फारस, बगदाद और दमिश्क के बाजारों में बेचा। जबरन धर्मांतरण करा कर मुसलमान बनाया। सिंध भारत वर्ष से अलग हो गया। बाकि हिन्दुओ ने सोचा की इस्लाम की आंधी उन तक नहीं आयेगी, वे चुप रहे। और सिंध से पलायन कर गए। फिर बारी आई मुल्तान और गंधार की। मुल्तान जिसका वर्णन ऋग्वेद समेत लगभग सभी वैदिक ग्रंथो में है। मुल्तान का सूर्य मंदिर पूरे भारत वर्ष में काशी विश्वनाथ की तरह पूजनीय था। अरबो ने हमला किया सब तहस नहस कर दिया। सूर्य मंदिर तोड़ा, हिन्दुओ का कत्ले आम किया, तलवार की नौक पर मुसलमान बनाया। पूरा भारत वर्ष चुप रहा। सोचा चलो मुल्तान गया बाकि भार

The Wire : एक स्टार्टअप की हत्या पर विन्रम श्रद्धांजलि

नमस्कार, आज का प्राइम टाइम वायर की आजा़दी पर हुए हमले के विरोध में है. आप सब यूसी ब्राउज़र पर हर तरह का लिंक खोलकर पढ़ने वालों से उम्मीद करेंगे कि आज आधा घंटा बीस मिनट जितनी देर यह प्रोग्राम चलता है, हमारे साथ रहें, ब्रेक में भी रहें क्योंकि क्रांति के साथ लेने के लिए चखना वहीं से आता है. वायर पर जिस तरह सौ करोड़ का दावा किया गया है, वो यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि मोदी सरकार छोटे उद्योग पतियों के लिए कितनी ज्यादा खतरनाक है, इन लोगों ने पिछले तीन साल में जो कमाया वो एक झटके में छीन लिया गया. इनके मालिकों में दो महिलाएं हैं, दो महिलाओं से उनका सपना छीन लिया गया, उस करवा चौथ वाले दिन, जिसका जसोदाबेन न जाने कब से इंतज़ार कर रही हैं. मैं करवा चौथ का विरोध करता हूँ, लेकिन मोदी का ज्यादा विरोध करता हूँ, इसलिए करवा चौथ का हवाला देना हलाल मानता हूँ. मैं ही नहीं मेरे जैसे सारे और मेरे और उन सारों के चाहने वाले सब यह मानते हैं कि मोदी राम की पुरुषवादी सामंतवादी परम्परा क शासके हैं, राम ने सूर्पनखा की शक्ल खराब करा दी, मंदोदरी का सुहाग उजाड़ दिया और सीता को वन में निष्कासित कर दिया.

भारतीय अर्थव्यवस्था : आंकड़ो की जुबानी और प्रोपोगंडा

कहते हैं किसी एक व्यक्ति को तर्कसंगत तरीके से कोई बात समझाने से कहीं ज्यादा आसान कार्य हैं हज़ारो लोगो को उनके पूर्वाग्रह की दिशा में और भटका देना। देश की आज की आर्थिक स्थिति पर जो  चिंता जताई जा रही है संपादकीय और न्यूज़ चैनल की डिबेट में उन पर ये उपर्युक्त पंक्ति बिलकुल सटीक बैठती है। इन सारी ही बहसों में एक कॉमन बात यह है कि ये लोग आंकड़ो और तथ्यों को पूर्वाग्रह से ग्रसित हो कर पेश कर रहे है। ये सभी लोग ऐसा क्यों कर रहे है इसका राजनैतिक आंकलन करने से पहले आइये हम जरा देश के आर्थिक हालात का विस्तार से जायज़ा लेते है। आधुनिक अर्थशास्त्र के कुल आठ मानक होते हैं जिनके आधार पर पूरे विश्व में अर्थव्यवस्थाओं का आंकलन किया जाता है। Inflation (महंगाई ), current account balance, fiscal deficit, FDI, Foreign reserve, exchange rate, GDP, और Job creation . आमतौर से कोई भी अर्थव्यवस्था इन आठ मानकों में से अगर 4 से 5 में अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं तो उसे मज़बूत अर्थव्यवस्था माना जाता है, किसी भी देश के लिए 8 के 8 मानकों पर खरा उतरना किसी अपवाद से कम नहीं हैं। इन आठ मानकों पर भा

बुलेट ट्रेन : विकास की सकारात्मक पहल

जब इस देश में कंप्यूटर आया तब काफी सारे लोगो का मानना था कि अब कंप्यूटर लोगो की नौकरियां छीन लेगा और देश में बेरोज़गारी बढ़ जायेगी, पर आज देखिये उसी कंप्यूटर की वजह से बैंगलोर हैदराबाद पुणे नोयडा गुड़गांव में लाखों लोगो को रोज़गार मिला हुआ है विदेश में भारत की एक पहचान है। कहते है सिलिकन वैली में इंग्लिश के बाद सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाएँ हिंदी और हिब्रू (इजराइल) है। चलिए अब हम विषय पर आते है, बुलेट ट्रेन ....जब बुलेट ट्रेन की बात आती है तो दिमाग में एक विशाल से महँगे  इंफ्रास्ट्रक्चर की इमेज घर जाती है। 250 किलोमीटर प्रति घण्टा या उससे भी अधिक गति से चलने वाली इस बुलेट ट्रेन को न सिर्फ भारत में बल्कि जापान और फ्रांस में भी शुरुआती दिनों  में अभिजात्य वर्ग की ही सवारी करार कर इसके खिलाफ एक प्रकार की नेगेटिव पब्लिसिटी की गयी थी। जापान के शिंकेन्सन और फ्रांस के TGV में भी लोगो ने यही सवाल किए की क्या बुलेट ट्रेन हमारी प्राथमिकता है? क्या हमको इतने खर्चीले प्रोजेक्ट पर पैसा लगाना चाहिए जबकि हमारे सामने दूसरी समस्याएं और जरूरतें मुँह ताके खड़ी है। सर्वप्रथम हमें इस

जस्टिस रवीश कुमार और उनका लाल माइक

सर नमस्कार सर इस उम्मीद से आपको यह खुला पत्र लिख रहा हूँ, कि जैसे आपका खुला पत्र मोदी नहीं पढ़ते, वैसे ही आप भी इसको नहीं पढ़ेंगे. सर, आप इधर टीवी एंकर के तौर पर अपने कैरियर के प्रति कुछ असुरक्षा महसूस करते देखे गए. आपके एक पूर्व सहकर्मी ने आपको लानते भेजीं जो काफी वायरल हुईं और उनसे लोगों ने बहुत मजे लिए. सर आप देश के एकलौते सरोकार वाले पत्रकार सेे मजे लेने की चीज़ में कन्वर्ट हो गए हैं, इसका मुझे काफी सुखद अफसोस है. सर, मैंने छः महीना एक टीवी चैनल के दफ्तर में काम किया और यह पाया कि वहाँ सारे एंकर ऐसे थे कि बगैर स्क्रिप्ट के एक लाइन भी खुद से नहीं सोच पाते थे. स्क्रिप्ट में अगर 1 दिसंबर विश्व एड्स दिवस की जगह गाँधी जयंती लिखकर दे दिया गया है, तो अगला वही बोलेगा. जबकि उस समय चीजें इतनी ज्यादा ऑनलाइन नहीं थीं, और दिन में बीस बार नोट गिनते समय गाँधी जी के दर्शन हो जाते थे. इस सबसे क्या हुआ कि एंकरों के बारे में मेरे दिमाग में यह बैठ गया था कि एंकर बनने के लिए चार चीजें जरूरी हैं, खूबसूरत होना, मेकअप के लिए धैर्य पूर्वक दो घंटा बैठ सकना, चैनल मालिक से अच्छे संबंध होना और बेवक

साथी पत्रकार सुशांत सिन्हा ने हर हफ्ते पत्र लिखने वाले रविश कुमार को लिखा पत्र

प्रिय रवीश जी, बहुत दिनों से आपको चिट्ठी लिखने की सोच रहा था लेकिन हर बार कुछ न कुछ सोचकर रुक जाता था। सबसे बड़ी वजह तो ये थी कि मेरा इन ‘खुले खत’ में विश्वास ही नहीं रहा कभी। खासकर तब से जब सोशल मीडिया पर आपकी लिखी वो चिठ्ठी पढ़ ली थी जिसमें आपने अपने स्वर्गीय पिता को अपने शोहरत हासिल करने के किस्से बताए थे औऱ बताया था कि कैसे एयरपोर्ट से निकलते लोग आपको घेरकर फोटो खिंचवाने लग जाते हैं। बतौर युवा, जिसने 9 वर्ष की उम्र में अपने पिता को खो दिया था, मैं कभी उस खत का मकसद समझ ही नहीं पाया। मैं समझ हीं नहीं पाया कि वो चिट्ठी किसके लिए थी, उस पिता के लिए जो शायद ऊपर से आपको देख भी रहा था और आपकी तरक्की में अपने आशीर्वाद का योगदान भी दे रहा था या फिर उन लोगों के लिए जिन्हें ये बताने की कोशिश थी कि आई एम अ सिलेब्रिटी। क्योंकि मेरे लिए तो मेरे औऱ मेरे स्वर्गीय पिता का रिश्ता इतना निजी है कि मैं हमारी ख्याली बातचीत को सोशल मीडिया पर रखने का साहस कभी जुटा नहीं सकता। खैर, वजह आप बेहतर जानते होंगे लेकिन उस दिन से ऐसा कुछ हुआ कि मैंने चिठ्ठी न लिखने का फैसला कर लिया। लेकिन कल आपकी वो चि

एलिफिन्सटन ब्रिज हादसा : जिम्मेदार कौन

मुंबई में बीते शुक्रवार (29 सितंबर) को सुबह दो रेलवे स्टेशनों को जोड़ने वाले एक संकरे फुटओवर ब्रिज पर मची भगदड़ में कम से कम 22 लोगों की मौत हो गयी जबकि 30 से ज्यादा लोग घायल हो गए। यह हादसा सुबह दस बजकर करीब चालीस मिनट पर हुआ। उस वक्त भारी बारिश हो रही थी और फुटओवर ब्रिज पर खासी भीड़ थी। यह पुल एल्फिंस्टन रोड और परेल उपनगरीय रेलवे स्टेशनों को जोड़ता था। इस अप्रिय दुर्घटना के होते ही एक बार फिर मोदी विरोधी गैंग सक्रिय हैं, वामपन्थी मीडिया का एक वर्ग तथ्यों को गलत तरीक़े से पेश करते हुए इस हादसे की सारी जिम्मेदारी पूर्व रेलमंत्री सुरेश प्रभु और मोदी जी पर डाल कर प्रोपगंडा फैलाने में लग गया हैं। मैं भी इस बात से बिल्कुल इनकार नही करती हूँ कि इस हादसे के लिए मौजूदा सरकार की कोई जिम्मेदारी नही हैं, जिम्मेदार ये लोग भी हैं। लेकिन क्या सारी जिम्मेदारी मौजूदा सरकार की हैं? इससे पहले की सरकारों पर इस हादसे की कोई जिम्मेदारी नही बनती? हमने पहले भी कहा कि हम सिर्फ तथ्य रखते हैं फैसला हमेशा पाठकों पर छोड़ते हैं आज भी हम वही करेंगे.. जिम्मेदारी पाठक तय करे। सबसे पहले तो यह बत