सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

जस्टिस रवीश कुमार और उनका लाल माइक



सर
नमस्कार
सर इस उम्मीद से आपको यह खुला पत्र लिख रहा हूँ, कि जैसे आपका खुला पत्र मोदी नहीं पढ़ते, वैसे ही आप भी इसको नहीं पढ़ेंगे.
सर, आप इधर टीवी एंकर के तौर पर अपने कैरियर के प्रति कुछ असुरक्षा महसूस करते देखे गए. आपके एक पूर्व सहकर्मी ने आपको लानते भेजीं जो काफी वायरल हुईं और उनसे लोगों ने बहुत मजे लिए. सर आप देश के एकलौते सरोकार वाले पत्रकार सेे मजे लेने की चीज़ में कन्वर्ट हो गए हैं, इसका मुझे काफी सुखद अफसोस है.
सर, मैंने छः महीना एक टीवी चैनल के दफ्तर में काम किया और यह पाया कि वहाँ सारे एंकर ऐसे थे कि बगैर स्क्रिप्ट के एक लाइन भी खुद से नहीं सोच पाते थे. स्क्रिप्ट में अगर 1 दिसंबर विश्व एड्स दिवस की जगह गाँधी जयंती लिखकर दे दिया गया है, तो अगला वही बोलेगा. जबकि उस समय चीजें इतनी ज्यादा ऑनलाइन नहीं थीं, और दिन में बीस बार नोट गिनते समय गाँधी जी के दर्शन हो जाते थे. इस सबसे क्या हुआ कि एंकरों के बारे में मेरे दिमाग में यह बैठ गया था कि एंकर बनने के लिए चार चीजें जरूरी हैं, खूबसूरत होना, मेकअप के लिए धैर्य पूर्वक दो घंटा बैठ सकना, चैनल मालिक से अच्छे संबंध होना और बेवकूफ होना.
डेस्क पर काम करने वाले लोग अलबत्ता जानकार होते थे, और शायद इसीलिए वो एंकर नहीं बनाए जाते थे.
इसलिए जब आपका इतना नाम हो गया तो मैं समझ ही नहीं पाया कि क्यों हो गया. हाथ में जब वो कीटाणुओं से भरा लाल माइक लेकर आप नोयडा की मजदूर बस्तियों में बीमारियां फैलाने निकलते थे, और वही माइक लेकर शौचालय से लेकर होटल तक में सब जगह घुस जाते थे, और लोग हर अदा पर वाह वाह करते थे तो मैं समझ नहीं पाता था कि दिल्ली के इतने पढ़े लिखे लोग अपने साथ करवा क्या रहे हैं.
बाद में जब अन्ना कांड हुआ और उसके बाद केजरीवाल जी दिल्ली के मुख्यमंत्री बने, तब दिल्ली वासियों के बारे में मेरी गलतफहमी दूर हो गई.
आपसे पहले विनोद दुआ भी बगैर धुला लाल माइक लेकर घूमा करते थे, मगैर उन्होंने हमेशा हाईजीन का ख्याल रखा, हमेशा होटलों में ही खाया, शौचालय में कभी नहीं घुसे. और शायद इसीलिए बड़े एंकर तो रहे लेकिन इतने महान नहीं हो पाए.
आपके पूरे कैरियर में एक बात जिसने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया वो यह कि आपने लोकल कस्बे लेवल की वसूली और ब्लैकमेलिंग पत्रकारिता को नेशनल लेवल का गेम बना दिया. अब प्राइम टाइम में आप सुपारी पत्रकारिता करते हैं. कुछ दिनों बाद आपके आदमी एक्सटॉर्शन के लिए फोन भी करने लगेंगे, जैसे अभी वो आपके पेज पर लोगों को देख लेने की धमकी देते हैं. अभी शायद ट्रेनिंग चल रही है, इसलिए किसी के हताहत होने की खबर नहीं है.
चूंकि सारे विपक्ष के पीछे मोदी अमित शाह ने सीबीआई लगा दी है, और सारे पत्रकारों को गोद ले लिया है इसलिए विरोध का एजेंडा अब एनडीटीवी के दफ्तर में तय होता है. इस सबके लिए आपके नाम पर पत्रकारिता का शकुनि शुक्राचार्य अवार्ड शुरु करना चाहिए और पहली बार वाला आपको देकर उसका नाम रवीश कुमार अवार्ड कर देना चाहिए.
ईनाम में एक काले रंग का कोट पैंट, लाल माइक, नितीश कुमार के बगीचे का कटहल, एक टोंटीदार लोटा और मोदी का फोटोशॉप से बनाया गया इस्तीफा दिया जाएगा.
आपसे सर निवेदन है कि आप जो कर रहे हैं, जैसे कर रहे हैं, वो करते रहें. अंबानी जियो क्रांति के बाद आप देश का सबसे सस्ता मनोरंजन हैं. राखी सावंत की प्लास्टिक सर्जरी बिगड़ जाने के बाद वो ज्यादा सामने नहीं आतीं. गैर राजनीतिक विदूषकों में नेशनल लेवल पर केवल कमाल रशीद खान उर्फ केआरके और आप जस्टिस रवीश कुमार ही बचे हैं. आप जिसे भी भगवान मानते हों, वो आपको सलामत रखे.
-विकास अग्रवाल




टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जानिए कैसे एससी-एसटी एक्ट कानून की आड़ में हो रहा मानवाधिकारो का हनन

सुप्रीम कोर्ट के एससी-एसटी एक्ट पर दिए गए फैसले के खिलाफ दलित संगठनों ने भारत बंद बुला कर पूरे देश भर में हिंसक प्रदर्शन किया जिसमें दर्जन भर लोगो की जान गई और सरकार की अरबों रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ। अब सवाल ये उठता है कि आखिर एससी/एसटी ऐक्ट को लेकर पूरा विवाद है  क्या जिस पर इतना बवाल मचा है, चलिए जानते हैं इस बारे में विस्तार से.. अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम,(The Scheduled Castes and Tribes (Prevention of Atrocities) Act, 1989 ) को 11 सितम्बर 1989 में भारतीय संसद द्वारा पारित किया था, जिसे 30 जनवरी 1990 से सारे भारत ( जम्मू-कश्मीर को छोड़कर) में लागू किया गया। यह अधिनियम उस प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होता हैं जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का सदस्य नही हैं तथा वह व्यक्ति इस वर्ग के सदस्यों का उत्पीड़न करता हैं। इस अधिनियम मे 5 अध्याय एवं 23 धाराएं हैं। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को महाराष्ट्र के एक मामले को लेकर एससी एसटी एक्ट में नई गाइडलाइन जारी की थी, जिस

Selective Journalism का पर्दाफाश

लोकतंत्र के चार स्तंभ होते हैं कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका और मीडिया जो इस देश को लोकतान्त्रिक तरीके से चलाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। कार्यपालिका जवाबदेह होती है विधायिका और जनता के प्रति और साथ ही दोनों न्यायपालिका के प्रति भी जवाबदेह होते है। इन तीनो की जवाबदेही भारतीय संविधान के हिसाब से तय है, बस मीडिया के लिए कोई कानून नहीं है, अगर है तो इतने मज़बूत नहीं की जरूरत पड़ने पर लगाम लगाईं जा सकें। 90 के दशक तक हमारे देश में सिर्फ प्रिंट मीडिया था, फिर आया सेटेलाइट टेलीविजन का दौर, मनोरंजन खेलकूद मूवी और न्यूज़ चैनल की बाढ़ आ गयी. आज  देश में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय चैनल को मिला के कुल 400 से अधिक न्यूज़ चैनल मौजूद है जो टीवी के माध्यम से 24 ×7 आपके ड्राइंग रूम और बैडरूम तक पहुँच रहे हैं। आपको याद होगा की स्कूल में हम सब ने एक निबन्ध पढ़ा था "विज्ञान के चमत्कार" ...चमत्कार बताते बताते आखिर में विज्ञान के अभिशाप भी बताए जाते है. ठीक उसी प्रकार जनता को संपूर्ण जगत की जानकारी देने और उन्हें जागरूक करने के साथ साथ मीडिया लोगो में डर भय अविश्वास और ख़ास विचारधार

सुशासन का खोखलापन, बिहार में प्रताड़ित होते ईमानदार अधिकारी

" सच्चाई और ईमानदारी के पथ पर चलने वाले लोगो को अक्सर ठोकरे खाने को मिलती है , अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है लेकिन अंत में जीत उन्ही की होती है। " यह वह ज्ञान है जो वास्तविक दुनिया में कम और किताबो में ज्यादा दिखता है, लोगो मुँह से बोलते जरूर है लेकिन वास्तविक तौर पर चरित्र में इसका अनुसरण करने वाले कम ही दिखते है। बिहार में ईमानदार अफसर वरदान की तरह होते हैं, आम जनता में हीरो यही होते है क्योकि यहाँ नेताओ का काम सदियों से लोगो को बस लूटना रहा है और उनसे बिहार की आम जनता को वैसे भी कोई उम्मीद नहीं रहती। आम जनता हो या एक ईमानदार अफसर, दोनों का जीवन बिहार में हर तरह से संघर्षपूर्ण रहता है। उनको परेशान करने वाले बस अपराधी ही नहीं बल्कि स्थानीय नेता और विभागीय अधिकारी भी होते है। गरीबी, पिछड़ापन और आपराधिक प्रवृत्ति लोगो द्वारा जनता का उत्पीड़न आपको हर तरफ देखने को मिल जायेगा। हालात ऐसे हैं कि लोग यहाँ थाने से बाहर अपने विवाद सुलझाने के लिए इन छुटभैये गुंडों को पैसे देते हैं जो जज बनकर लोगो का मामला सुलझाते है, क्योकि वो दरोगा के रिश्वतख