सर
नमस्कार
नमस्कार
सर इस उम्मीद से आपको यह खुला पत्र लिख रहा हूँ, कि जैसे आपका खुला पत्र मोदी नहीं पढ़ते, वैसे ही आप भी इसको नहीं पढ़ेंगे.
सर, आप इधर टीवी एंकर के तौर पर अपने कैरियर के प्रति कुछ असुरक्षा महसूस करते देखे गए. आपके एक पूर्व सहकर्मी ने आपको लानते भेजीं जो काफी वायरल हुईं और उनसे लोगों ने बहुत मजे लिए. सर आप देश के एकलौते सरोकार वाले पत्रकार सेे मजे लेने की चीज़ में कन्वर्ट हो गए हैं, इसका मुझे काफी सुखद अफसोस है.
सर, मैंने छः महीना एक टीवी चैनल के दफ्तर में काम किया और यह पाया कि वहाँ सारे एंकर ऐसे थे कि बगैर स्क्रिप्ट के एक लाइन भी खुद से नहीं सोच पाते थे. स्क्रिप्ट में अगर 1 दिसंबर विश्व एड्स दिवस की जगह गाँधी जयंती लिखकर दे दिया गया है, तो अगला वही बोलेगा. जबकि उस समय चीजें इतनी ज्यादा ऑनलाइन नहीं थीं, और दिन में बीस बार नोट गिनते समय गाँधी जी के दर्शन हो जाते थे. इस सबसे क्या हुआ कि एंकरों के बारे में मेरे दिमाग में यह बैठ गया था कि एंकर बनने के लिए चार चीजें जरूरी हैं, खूबसूरत होना, मेकअप के लिए धैर्य पूर्वक दो घंटा बैठ सकना, चैनल मालिक से अच्छे संबंध होना और बेवकूफ होना.
डेस्क पर काम करने वाले लोग अलबत्ता जानकार होते थे, और शायद इसीलिए वो एंकर नहीं बनाए जाते थे.
डेस्क पर काम करने वाले लोग अलबत्ता जानकार होते थे, और शायद इसीलिए वो एंकर नहीं बनाए जाते थे.
इसलिए जब आपका इतना नाम हो गया तो मैं समझ ही नहीं पाया कि क्यों हो गया. हाथ में जब वो कीटाणुओं से भरा लाल माइक लेकर आप नोयडा की मजदूर बस्तियों में बीमारियां फैलाने निकलते थे, और वही माइक लेकर शौचालय से लेकर होटल तक में सब जगह घुस जाते थे, और लोग हर अदा पर वाह वाह करते थे तो मैं समझ नहीं पाता था कि दिल्ली के इतने पढ़े लिखे लोग अपने साथ करवा क्या रहे हैं.
बाद में जब अन्ना कांड हुआ और उसके बाद केजरीवाल जी दिल्ली के मुख्यमंत्री बने, तब दिल्ली वासियों के बारे में मेरी गलतफहमी दूर हो गई.
बाद में जब अन्ना कांड हुआ और उसके बाद केजरीवाल जी दिल्ली के मुख्यमंत्री बने, तब दिल्ली वासियों के बारे में मेरी गलतफहमी दूर हो गई.
आपसे पहले विनोद दुआ भी बगैर धुला लाल माइक लेकर घूमा करते थे, मगैर उन्होंने हमेशा हाईजीन का ख्याल रखा, हमेशा होटलों में ही खाया, शौचालय में कभी नहीं घुसे. और शायद इसीलिए बड़े एंकर तो रहे लेकिन इतने महान नहीं हो पाए.
आपके पूरे कैरियर में एक बात जिसने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया वो यह कि आपने लोकल कस्बे लेवल की वसूली और ब्लैकमेलिंग पत्रकारिता को नेशनल लेवल का गेम बना दिया. अब प्राइम टाइम में आप सुपारी पत्रकारिता करते हैं. कुछ दिनों बाद आपके आदमी एक्सटॉर्शन के लिए फोन भी करने लगेंगे, जैसे अभी वो आपके पेज पर लोगों को देख लेने की धमकी देते हैं. अभी शायद ट्रेनिंग चल रही है, इसलिए किसी के हताहत होने की खबर नहीं है.
चूंकि सारे विपक्ष के पीछे मोदी अमित शाह ने सीबीआई लगा दी है, और सारे पत्रकारों को गोद ले लिया है इसलिए विरोध का एजेंडा अब एनडीटीवी के दफ्तर में तय होता है. इस सबके लिए आपके नाम पर पत्रकारिता का शकुनि शुक्राचार्य अवार्ड शुरु करना चाहिए और पहली बार वाला आपको देकर उसका नाम रवीश कुमार अवार्ड कर देना चाहिए.
ईनाम में एक काले रंग का कोट पैंट, लाल माइक, नितीश कुमार के बगीचे का कटहल, एक टोंटीदार लोटा और मोदी का फोटोशॉप से बनाया गया इस्तीफा दिया जाएगा.
आपसे सर निवेदन है कि आप जो कर रहे हैं, जैसे कर रहे हैं, वो करते रहें. अंबानी जियो क्रांति के बाद आप देश का सबसे सस्ता मनोरंजन हैं. राखी सावंत की प्लास्टिक सर्जरी बिगड़ जाने के बाद वो ज्यादा सामने नहीं आतीं. गैर राजनीतिक विदूषकों में नेशनल लेवल पर केवल कमाल रशीद खान उर्फ केआरके और आप जस्टिस रवीश कुमार ही बचे हैं. आप जिसे भी भगवान मानते हों, वो आपको सलामत रखे.
-विकास अग्रवाल
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