सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

बुलेट ट्रेन : विकास की सकारात्मक पहल


जब इस देश में कंप्यूटर आया तब काफी सारे लोगो का मानना था कि अब कंप्यूटर लोगो की नौकरियां छीन लेगा और देश में बेरोज़गारी बढ़ जायेगी, पर आज देखिये उसी कंप्यूटर की वजह से बैंगलोर हैदराबाद पुणे नोयडा गुड़गांव में लाखों लोगो को रोज़गार मिला हुआ है विदेश में भारत की एक पहचान है। कहते है सिलिकन वैली में इंग्लिश के बाद सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाएँ हिंदी और हिब्रू (इजराइल) है।

चलिए अब हम विषय पर आते है, बुलेट ट्रेन ....जब बुलेट ट्रेन की बात आती है तो दिमाग में एक विशाल से महँगे  इंफ्रास्ट्रक्चर की इमेज घर जाती है।

250 किलोमीटर प्रति घण्टा या उससे भी अधिक गति से चलने वाली इस बुलेट ट्रेन को न सिर्फ भारत में बल्कि जापान और फ्रांस में भी शुरुआती दिनों  में अभिजात्य वर्ग की ही सवारी करार कर इसके खिलाफ एक प्रकार की नेगेटिव पब्लिसिटी की गयी थी।

जापान के शिंकेन्सन और फ्रांस के TGV में भी लोगो ने यही सवाल किए की क्या बुलेट ट्रेन हमारी प्राथमिकता है? क्या हमको इतने खर्चीले प्रोजेक्ट पर पैसा लगाना चाहिए जबकि हमारे सामने दूसरी समस्याएं और जरूरतें मुँह ताके खड़ी है।
सर्वप्रथम हमें इस अग्रणी प्रोजेक्ट का परिपेक्ष्य समझने की आवश्यकता है। 500 किलोमीटर का मुम्बई अहमदाबाद बुलेट ट्रेन कॉरिडोर महाराष्ट्र गुजरात और भारत जापान सरकार के बीच एक जॉइंट वेंचर प्रोजेक्ट है और ये प्रोजेक्ट किसी भी तरीके से भारत में चलने वाले किसी भी रेल प्रोजेक्ट के बीच में नहीं आता। इसमे जापान 12 बिलियन डॉलर सहायता राशि दे रहा है और ये non transferable है, मतलब हम ये नहीं कर सकते की पाकिस्तान की तरह अमेरिका से आतंकवाद खत्म करने पैसा ले और उससे अपनी अर्थ व्यवस्था चलाने लगें तो जो लोग ये मांग कर रहे है कि बुलेट ट्रेन की बजाय बाकी ट्रेनों की मरम्मत में ये पैसा लगाया जाए जो जापान से मिलेगा तो ये मांग यहाँ स्वतः खारिज़ हो जाती है।

आज साइंस और  तकनीक का युग है। अगर आप तकनीक में पीछे रह गए तो विश्व में आप की पूछ परख होने से रही  0.1 सेकंड के लिए सोचिये अगर आज भारत और पाकिस्तान में से कोई भी 1 देश न्यूक्लियर स्टेट नहीं होता तो दूसरा देश उसकी क्या हालत बनाई होती?

अगर टेक्नोलॉजी आयेगी ही नहीं तो अपग्रेड कहाँ से होगी और छुपी हुई शक्तियां हमें कहाँ से पता चलेगी जो राष्ट्र निर्माण में सहायक हो सकती है।

विश्व की अग्रणी रिसर्च कम्पनी Mckinsey की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2028 तक भारत में 2-10 लाख रूपये तक सालाना कमाने वालों की संख्या 5 करोड़ से बढ़कर 58 करोड़ हो जायेगी,बड़े पैमाने पर शहरीकरण हो जायेगा और बढ़ी हुई आय से लोगो का ट्रेवल करने की तरफ झुकाव भी बढ़ेगा, ऐसी स्थिति में अगर आप उनको वर्ल्ड क्लास सुविधा मुहैया नहीं कराएंगे तो कैसे चलेगा?

एक बड़ी चिंता इस समय ये भी है कि fossil fuel हमारे पास सीमित मात्रा है और उनकी मात्रा घटती जा रही है जलवायु परिवर्तन ,एयरपोर्ट में भीड़ और सड़कों पर जाम भी हमारे पास सिर्फ हाई स्पीड ट्रेन का विकल्प छोड़ता है
ऊर्जा की दृष्टि से कुशल बुलेट ट्रेन किसी ऑटोमोबाइल की तुलना में 1/8 और हवाई जहाज की तुलना में 1/5 ही CO2  वातावरण में छोड़ता है और साथ ही साथ 1 बुलेट ट्रेन का एक डबल ट्रेक किसी 6 लेन सड़क में चलने वाली गाड़ियों से 3 गुना ज्यादा लोगो को यात्रा करा सकता है और उसे जरूरत होगी सिर्फ 6 लेन की आधी जमीन की।

250 की एवरेज स्पीड से चलने वाली बुलेट ट्रेन मुम्बई से अहमदाबाद मात्र 2 घण्टे में पहुच जायेगी और इससे काफी सारे लोगो को भीड़भाड़ वाले मुंबई में न रहकर अहमदाबाद से अप डाउन करने की सुविधा मिल जायेगी। कार से तेज़ चलने और हवाई जहाज से सस्ती और सुगम बुलेट ट्रेन देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने और बड़े शहरों से दूर सेटेलाइट टाउनशिप के निर्माण में  एक उत्प्रेरक का काम करेगी। अगर देश में  हाई स्पीड ट्रेन चलने लगेंगी तो बड़े शहरों पे आबादी का बोझ भी कम होगा और शासन प्रशासन को व्यवस्था सुचारू रूप से चलाने में मदद मिलेगी।

जापान में आम ट्रेन से दुगना और चीन में आम ट्रेन से तिगुना किराया है बुलेट ट्रेन का, इससे जो रेवेन्यू जेनेरेट होगा उससे रेलवे को अपने बाकी ट्रेनों और रुट की मरम्मत में फुटओवर ब्रिज फ्लाईओवर अंडर ब्रिज जिनको वर्षो से सुधार की दरकार है उनको भी बड़ी आर्थिक मदद मिलेगी।

अब कुछ लागत सम्बन्धी आंकड़ो की बात हो जाये, आपको जानकर हैरानी होगी कि बुलेट ट्रेन का ट्रैक बनाने की कीमत मेट्रो ट्रेन से भी कम हैं, इसलिए यह कहना कि यह बहुत खर्चीला प्रोजेक्ट हैं गलत हैं।


अन्य रूटों पर भी काम: रेलवे मंत्रालय ने कहा हैं कि अन्य रूटों पर बुलेट ट्रेन चलाने के लिए अहमदाबाद-मुंबई रूट पर काम पूरा होने का इंतजार नहीं किया जाएगा बल्कि पहले ही काम शुरू कर दिया जाएगा। अन्य रूटों में दिल्ली-कोलकाता, दिल्ली-मुंबई, दिल्ली-चंडीगढ़, मुंबई-चेन्नै, मुंबई-नागपुर और दिल्ली-नागपुर हैं।



बुलेट ट्रेन का प्रस्तावित प्रोजेक्ट 5 साल में बनकर होगा तैयार होगा, इसमें एक लाख दस हजार करोड़ रुपये होंगे खर्च,
हर साल बीस हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान, जापान 88 हजार करोड़ रुपये 0.1 फीसदी ब्याज दर से देगा कर्ज।

क्षमता- 10 कार इंजन बुलेट ट्रेन में 750 यात्री एकसाथ यात्रा कर सकेंगे।

यात्री- हर दिन 36 हजार लोग यात्रा कर सकेंगे, 2035 तक क्षमता बढ़कर एक लाख 86 हजार यात्रियों की हो जाएगी।

रुट- साबरमती रेलवे सेटेशन से बांद्रा कुर्ला के बीच 508 किमी, चार स्टेशनों पर रुकते हुए 2 घंटा 7 मिनट में दूरी तय

रोजगार- 16 हजार अप्रत्यक्ष रोजगार की सम्भावना और परिचालन शुरु होते ही हाई स्पीड लाईन के संचालन और रखरखाव के लिए 4 हजार कर्मियों की जरुरत, 20 हजार कंस्ट्रक्शन वर्कर्स की जरुरत।

किराया- अहमदाबाद से मुंबई एक तरफ की दूरी का किराया लगभग 2800 रुपये होगा। अभी इस रूट पर चलने वाली बाकी एसी ट्रेनों के फर्स्ट क्लास कोच में अधिकतम किराया 1895 से लेकर 2200 रुपये तक है और अहमदाबाद से मुंबई जाने वाले नॉन स्टॉप हवाई जहाज़ का किराया (अगर आप एक दिन पहले टिकट लेते हैं) लगभग 2300 रुपये से शुरू है।



रेलमंत्री का दावा है कि बुलेट ट्रेन ही नहीं, उसकी तकनीक भी भारत को मिलेगी इसलिए आने वाले वक्त में भारत ज्यादा बुलेट ट्रेनों का निर्माण करेगा और सस्ती दर पर बनी इन ट्रेनों को दूसरे देशों को निर्यात कर सकेगा।

अतः अंत में यही कहूंगा कि लोग सिर्फ राजनीती के लिए विरोध न करें। देश के इंफ्रास्ट्रक्चर मज़बूत करने के लिए इसका खुले मन से स्वागत करें ... मेट्रो ट्रेन शताब्दी राजधानी कोई नहीं आ पाती अगर हम ऐसा ही विरोध करते तो।

अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इस पोस्ट का लिंक फेसबुक, ट्विटर , व्हाट्सएप आदि सोशल साइट्स पर जरूर शेयर करे।





टिप्पणियाँ

  1. सभी पहलुओं को स्पर्श करता हुआ ये लेख सभी शंकाओं को समाप्त करता है। इसलिए देश के विकास के लिए खुले दिल से बुलेट ट्रेन का स्वागत करिये।

    जवाब देंहटाएं
  2. इस लेख से स्पष्ट हो जाना चाहिए, जिन लोगो में कुछ शंका है, उसका निराकरण ये तथ्यात्मक विवेचना से साफ है,

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद प्रतिभा जी ..उम्मीद है अब लोगो के मन में बुलेट ट्रेन को ले कर जो भ्रम था वों दूर होगा

      हटाएं
  3. bilkul sahi article likha bullet train par ,virodhiyon ke bolti band

    जवाब देंहटाएं
  4. रोने बाले तो रोते ही रहेंगे .. यूज़ किया

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जानिए कैसे एससी-एसटी एक्ट कानून की आड़ में हो रहा मानवाधिकारो का हनन

सुप्रीम कोर्ट के एससी-एसटी एक्ट पर दिए गए फैसले के खिलाफ दलित संगठनों ने भारत बंद बुला कर पूरे देश भर में हिंसक प्रदर्शन किया जिसमें दर्जन भर लोगो की जान गई और सरकार की अरबों रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ। अब सवाल ये उठता है कि आखिर एससी/एसटी ऐक्ट को लेकर पूरा विवाद है  क्या जिस पर इतना बवाल मचा है, चलिए जानते हैं इस बारे में विस्तार से.. अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम,(The Scheduled Castes and Tribes (Prevention of Atrocities) Act, 1989 ) को 11 सितम्बर 1989 में भारतीय संसद द्वारा पारित किया था, जिसे 30 जनवरी 1990 से सारे भारत ( जम्मू-कश्मीर को छोड़कर) में लागू किया गया। यह अधिनियम उस प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होता हैं जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का सदस्य नही हैं तथा वह व्यक्ति इस वर्ग के सदस्यों का उत्पीड़न करता हैं। इस अधिनियम मे 5 अध्याय एवं 23 धाराएं हैं। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को महाराष्ट्र के एक मामले को लेकर एससी एसटी एक्ट में नई गाइडलाइन जारी की थी, जिस

Selective Journalism का पर्दाफाश

लोकतंत्र के चार स्तंभ होते हैं कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका और मीडिया जो इस देश को लोकतान्त्रिक तरीके से चलाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। कार्यपालिका जवाबदेह होती है विधायिका और जनता के प्रति और साथ ही दोनों न्यायपालिका के प्रति भी जवाबदेह होते है। इन तीनो की जवाबदेही भारतीय संविधान के हिसाब से तय है, बस मीडिया के लिए कोई कानून नहीं है, अगर है तो इतने मज़बूत नहीं की जरूरत पड़ने पर लगाम लगाईं जा सकें। 90 के दशक तक हमारे देश में सिर्फ प्रिंट मीडिया था, फिर आया सेटेलाइट टेलीविजन का दौर, मनोरंजन खेलकूद मूवी और न्यूज़ चैनल की बाढ़ आ गयी. आज  देश में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय चैनल को मिला के कुल 400 से अधिक न्यूज़ चैनल मौजूद है जो टीवी के माध्यम से 24 ×7 आपके ड्राइंग रूम और बैडरूम तक पहुँच रहे हैं। आपको याद होगा की स्कूल में हम सब ने एक निबन्ध पढ़ा था "विज्ञान के चमत्कार" ...चमत्कार बताते बताते आखिर में विज्ञान के अभिशाप भी बताए जाते है. ठीक उसी प्रकार जनता को संपूर्ण जगत की जानकारी देने और उन्हें जागरूक करने के साथ साथ मीडिया लोगो में डर भय अविश्वास और ख़ास विचारधार

सुशासन का खोखलापन, बिहार में प्रताड़ित होते ईमानदार अधिकारी

" सच्चाई और ईमानदारी के पथ पर चलने वाले लोगो को अक्सर ठोकरे खाने को मिलती है , अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है लेकिन अंत में जीत उन्ही की होती है। " यह वह ज्ञान है जो वास्तविक दुनिया में कम और किताबो में ज्यादा दिखता है, लोगो मुँह से बोलते जरूर है लेकिन वास्तविक तौर पर चरित्र में इसका अनुसरण करने वाले कम ही दिखते है। बिहार में ईमानदार अफसर वरदान की तरह होते हैं, आम जनता में हीरो यही होते है क्योकि यहाँ नेताओ का काम सदियों से लोगो को बस लूटना रहा है और उनसे बिहार की आम जनता को वैसे भी कोई उम्मीद नहीं रहती। आम जनता हो या एक ईमानदार अफसर, दोनों का जीवन बिहार में हर तरह से संघर्षपूर्ण रहता है। उनको परेशान करने वाले बस अपराधी ही नहीं बल्कि स्थानीय नेता और विभागीय अधिकारी भी होते है। गरीबी, पिछड़ापन और आपराधिक प्रवृत्ति लोगो द्वारा जनता का उत्पीड़न आपको हर तरफ देखने को मिल जायेगा। हालात ऐसे हैं कि लोग यहाँ थाने से बाहर अपने विवाद सुलझाने के लिए इन छुटभैये गुंडों को पैसे देते हैं जो जज बनकर लोगो का मामला सुलझाते है, क्योकि वो दरोगा के रिश्वतख