मुंबई में बीते शुक्रवार (29 सितंबर) को सुबह दो रेलवे स्टेशनों को जोड़ने वाले एक संकरे फुटओवर ब्रिज पर मची भगदड़ में कम से कम 22 लोगों की मौत हो गयी जबकि 30 से ज्यादा लोग घायल हो गए। यह हादसा सुबह दस बजकर करीब चालीस मिनट पर हुआ। उस वक्त भारी बारिश हो रही थी और फुटओवर ब्रिज पर खासी भीड़ थी। यह पुल एल्फिंस्टन रोड और परेल उपनगरीय रेलवे स्टेशनों को जोड़ता था।
इस अप्रिय दुर्घटना के होते ही एक बार फिर मोदी विरोधी गैंग सक्रिय हैं, वामपन्थी मीडिया का एक वर्ग तथ्यों को गलत तरीक़े से पेश करते हुए इस हादसे की सारी जिम्मेदारी पूर्व रेलमंत्री सुरेश प्रभु और मोदी जी पर डाल कर प्रोपगंडा फैलाने में लग गया हैं। मैं भी इस बात से बिल्कुल इनकार नही करती हूँ कि इस हादसे के लिए मौजूदा सरकार की कोई जिम्मेदारी नही हैं, जिम्मेदार ये लोग भी हैं। लेकिन क्या सारी जिम्मेदारी मौजूदा सरकार की हैं? इससे पहले की सरकारों पर इस हादसे की कोई जिम्मेदारी नही बनती? हमने पहले भी कहा कि हम सिर्फ तथ्य रखते हैं फैसला हमेशा पाठकों पर छोड़ते हैं आज भी हम वही करेंगे.. जिम्मेदारी पाठक तय करे।
सबसे पहले तो यह बताना चाहूँगी की बता दें एलफिंस्टन रेलवे स्टेशन पर तीन फुटऑवर ब्रिज हैं, जिसमें ये सबसे पुराना था, सौ साल से भी ज्यादा पुराना था। साल 1911 में लॉर्ड एलफिंस्टन के नाम पर ये रेलवे स्टेशन बना था। इसके दो साल बाद ही यानि 1913 में फुटओवर ब्रिज का निर्माण हुआ। 104 साल पुराना पुल जिस पर हर रोज़ 3 लाख लोग गुज़रते है, यह तो अंग्रेज़ो ने भी नही सोचा होगा कि उन्होंने जो बना दिया उसके बाद कुछ नही बनेगा, यह मैं नही कह रही हूँ आंकड़े कह रहे हैं।
सरकारी आंकड़े कहते हैं कि देश में 1,36,000 रेलवे पुलों में से करीब 26 फीसदी या 35,000 पुल 100 साल से भी ज्यादा पुराने हैं। इनमें से 6,000 पुल तो 140 साल से भी ज्यादा पुराने हैं। आंकड़े बताते हैं कि 11,5000 किलोमीटर रेल लाइन भी जर्जर हालत में हैं।
सच्चाई सुनिये की मौजूदा रफ्तार से अगर हर साल 600 पुलों को भी बदला जाये तब भी सभी पुलों को नए सिरे से बनाने में 59 से 60 साल लग जाएंगे, और आप 3 साल पुरानी मोदी सरकार से उम्मीद लगा रहे हैं की मोदी जी यह 60 साल का काम सिर्फ 3 साल में पूरा कर दें। गौरतलब हैं कि ऐसा हाल देश मे सिर्फ रेलवे का ही नही हैं सड़क अस्पताल, सेना जो हथियारों की कमी से भी जूझ रही हैं सभी जगह हैं।
इंफ्रास्ट्रक्चर बहुत ही दयनीय स्थिति में हैं आप बताइए कि कहाँ से आएगा एक साथ इतना फंड की 60 साल के गड्ढे सिर्फ 3 साल में भरे जा सकें उस पर नखरा यह कि रेल किराया ना बढ़ाया जाए टैक्स भी ना बढ़ाया जाए.. ऐसे में इतना सारा काम एक साथ कैसे होगा इस प्रेक्टिकल बात पर भी जनता को सोचना होगा।
रेलवे की लेटलतीफी पर हम सबने व्यंग कसा होगा पर यह लेट लतीफी क्यो हैं इसका कारण जानने का कभी प्रयास किया? रेल अधिकारी बता रहे हैं कि "100 साल से पुराने पुलों पर ट्रेन की रफ्तार को सीमित किया जाता हैं ताकि हादसे से बचा जा सके" ऐसे में ट्रेन कैसे समय पर आएगी।
आपको बताती चलूँ की मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से पुलों के निर्माण में तेजी आई है। 2015-16 में रिकार्ड करीब 600 नए पुलों का निर्माण किया गया और 2016-17 में फिर 600 पुलों को नए सिरे से बनाये जा रहे हैं। देश मे इतने सारे पुल एक वित्तीय वर्ष में पहले कभी नही बने और अगले 5 साल के लिए 8.56 लाख करोड़ रुपए के निवेश का खाका तैयार किया गया हैं।
यह मैं नही, रेलवे बोर्ड के पूर्व सदस्य (यातायात) शांति नारायण जी कह रहे हैं कि, "बीते वर्षों में बुनियादी समस्या यह रही कि पुलों को सबसे कम महत्व दिया गया जबकि लोलुभावन कदमों जैसे- ज्यादा रेलगाडिय़ों और मार्गों की घोषणा को ज्यादा महत्व दिया गया।" भाई जब इंफ्रास्ट्रक्चर ही नही खड़ा होगा सिर्फ रेलगाड़ी ही बढ़ाई जाएंगी तो रेलवे कैसे चलेगी?
अगर पूर्ववर्ती सरकारों ने हर साल 500 नए पुल बनाये होते तो क्या आज भी देश मे 35 हजार पुल 100 से भी ज्यादा पुराने होते? आप तय करिये क्या 35 हजार पुल सिर्फ 3 सालो में बनाये जा सकते हैं? अगर नही तो फिर मोदी सरकार अकेले दोषी क्यो कर हुई?
एलफिंस्टन स्टेशन पर मची भगदड़ में हुई मौतों पर शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा, राज्य सरकार के ऊपर सदोष मनुष्यवध (नरसंहार) का मामला दर्ज होना चाहिए, जानकारी के लिए बता दूँ की नए पुल बनाने के लिये जगह की भी दरकार होती हैं और जब रेलवे जगह के लिए लोगो से जमीन खाली करवाना शुरू करता हैं तो यही शिवसेना वाले सबसे पहले पहुँच कर वहाँ हल्ला मचाना शुरू कर देते हैं, क्या इस हादसे की जिम्मेदारी में इन लोगो की हिस्सेदारी नही होनी चाहिए?
इस हादसे की एक और बड़ी वजह हैं, मुम्बई की भीड़.. पूरे देश से हर साल लाखों लोग मुम्बई रोजगार के लिए आते हैं, इनके लिए इतना इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना बहुत मुश्किल हैं। अगर पुरानी सरकारों ने विकास का केंद्रीकरण ना करके विकेंद्रीकरण किया होता तो ऐसे हादसों से बचा जा सकता था। इस हादसे पर वरिष्ठ पत्रकार सुरेश गोयल जी ट्विटर पर लिखते हैं "50 सालों में मुम्बई में यात्री 10 गुना बढ गये जबकि स्टेशनों का आधारभूत ढांचा खास नहीं बदला ... हादसे तो अभी भी कभी भी संभव"
इस भगदड़ के लिए मानव स्वभाव भी कम दोषी नही हैं, मृतकों के साथ संवेदना हैं परंतु भीड़भाड़ में धक्के मारते हुए बेवजह की अफवाह फैलाने से भी हम बाज नही आते, सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर तो आज नही कल ठीक ही कर देगी पर हम अच्छे नागरिक कब बनेगे यह सवाल हमेशा हमारे सामने खड़ा रहेगा।
पर ऊपर लिखे इन कारणों मौजूदा सरकार की वित्तीय मजबूरियों पर कोई चर्चा नही हैं, बल्कि इस दुर्घटना को मोदी सरकार के अंध विरोधी एक मौके की तरह ले रहे हैं, आप यह देखिये 11 वर्ष पहले इसी प्रकार का एक हादसा हुआ जिसमें अभी से दुगने लोगो की मृत्यु हुई थी, तब NDTV ने एक freak accident (सनकी दुर्घटना ) बता कर तत्कालीन रेल मंत्री लालू यादव को दोष मुक्त कर दिया था और आज सुरेश प्रभु से ले कर नरेंद्र मोदी को कोस रहे हैं ..ये है इनका डबल स्टैण्डर्ड और मैं इसी डबल स्टैंडर्ड के खिलाफ हूँ।
यह तहसीन पूनावाला हैं कांग्रेस समर्थक और राहुल गांधी परिवार के रिश्तेदार दो एक समान दुर्घटना पर इनकी राय देखिये..
इलाहाबाद में फुटओवर ब्रिज पर मची भगदड़ पर ट्वीट
मुम्बई एलिफिन्सटन ब्रिज पर हुई भगदड़ पर ट्वीट देखिये और डबल स्टैंडर्ड समझिए
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ट्विटर पर लेखक से मिले : अवंतिका सिंह
सबको यह पढ़ कर वास्तविक विस्तृत कारणों का जानना का अवसर है, पढ़िए, तब सही राय कायम हो सके।
जवाब देंहटाएं60 वर्ष में जो काम नही हो पाया उसे 3 वर्ष मे करने की उम्मीद पाले बैठे हैं, पोस्ट में दी गयी जानकारी आंखे खोलने वाली हैं।
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