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सितंबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

संगठन ही विजय-सूत्र है ।

एक इंग्लिश कहावत है - God helps them who help themselves - ईश्वर भी उनकी ही सहायता करता है जो खुद की सहायता कराते हैं । मतलब मदद उनको ही मिलती है जो ऐसे भी सक्षम होते हैं । वैसे इसमें निसर्ग के एक बड़े नियम की पुष्टि है - survival of the fittest - समर्थ, सक्षम ही टिकता है, ज़िंदा रहता है । यही होता आया है । इतिहास यही सिखाता है, जिन्होने नहीं माना वे नष्ट हुए । जिन्होने प्रतिकार नहीं किया या सच्चे मन से प्रतिकार का यत्न भी नहीं किया वे भी या तो नष्ट हुए या खदेड़े गए । यही शाश्वत सत्य है । और हमें यह बताया जाता है कि निर्बल का त्राता भगवान । निर्बल अगर भगवान से तारण पाकर भी निर्बल ही रहना चाहेगा और हर बार भगवान को पुकारेगा तो भगवान को कोसते  मर जाना ही उसकी नियति होगी । ऊपरवाली अंग्रेजी कहावत जैसी ही एक और कहावत है - हिम्मते मर्दा तो मददे खुदा । फारसी होगी, खुदा फारसी होता है, अल्लाह अरबी । फिरके के हिसाब से ब्रांड नेम बदल जाता है शायद । इसका भी अर्थ वही है, जो सक्षम होगा  उसकी ही मदद होगी। आज रोहिंग्या की मदद के लिए जो मुसलमान नाच रहे है उसका कारण वही है, रोहिंग्या उपद्रव करने के ल

म्यांमार में हिंदू समुदाय पर मुस्लिम रोहिंग्या आतंकियों के जुल्म की सच्ची कहानी

म्यांमार सेना को हिंसा प्रभावित रखाइन प्रांत में 28 हिंदुओं की सामूहिक कब्र मिली हैं। सेना ने कहा कि सुरक्षा अधिकारियों को कब्रों में 20 महिलाओं और आठ पुरुषों के शव मिले जिसमें छह लड़कों की उम्र दस साल से कम थी। म्यांमार सरकार के प्रवक्ता जाव ह्ते ने रविवार (24 सितंबर) को 28 शव मिलने की पुष्टि की थी, और ऐसी ही सामुहिक कब्रों के मिलने का सिलसिला अभी भी  उत्तरी राखिन में जारी हैं। ताजा समाचार मिलने तक बुरी तरह से टॉर्चर की हुए हिन्दुओ के 45 शव बरामद किए जा चुके हैं और 90 हिन्दू अभी भी लापता हैं - सोर्स म्यांमार सरकार  यहाँ क्लिक करके पढ़े देश के खिलाफ साजिश : रोहिंग्या शरणार्थी जिन रोहिंग्या मुस्लिमो को यह लिबर्ल्स गैंग मासूम बता रहा था अब उनकी करतूते एक एक करके सामने आ रही है। आपको जानकर हैरानी होगी कि रोहिंग्या मुसलमानो ने सिर्फ बौद्धों के साथ ही बर्बरता नहीं की है बल्कि म्यांमार में रह रहे हिन्दुओं पर भी इन्होने जुल्म ढाये है, और इनके पैरोकार इन्हें भारत मे शरण देना चाहते हैं। लिबर्ल्स और सेकुलर्स लोगो का यह गिरोह मीडिया में इस खबर के आने के बाद तरह तरह के तर्क-

भारत की आजादी की लड़ाई : वास्तविक कारणों का विश्लेषण

पराधीन सपनेहु सुख नाही !! यह दोहा श्रीरामचरित मानस से हैं और इसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा हैं इसका अर्थ हैं पराधीन व्यक्ति को सपने में भी सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती। पिंजरे में बंद एक तोते से बेहतर ये बात कौन जान सकता है जो पिंजड़े में सुरक्षित तो है ,भोजन भी पा रहा है पर अपने पंख खोल कर आकाश में उड़ नहीं सकता। अगर व्यक्ति को सुख चाहिए तो उसे स्वाधीन होने के लिए सतत संघर्ष करना होता हैं, सैकड़ो वर्ष मुगलो और फिर अंग्रेज़ो के अधीन रहने के पश्चात हमें भी अंततः 15 अगस्त 1947 को आज़ादी प्राप्त हुई, ढ़ाका से द्वारका तक और क्वेटा से कन्याकुमारी तक तमाम आहुतियाँ दी गयी तब जाकर 15 अगस्त की रात 12 बजे पंडित नेहरू को "When the whole world sleep India Awakens" जैसा ऐतिहासिक भाषण देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।  मगर आजादी मिलते ही "एक पक्ष" इस आजादी पर अपना कॉपीराइट बता कर इसकी कीमत देश की जनता से वसूलना चाहता हैं, तो ऐसे में हमारा फर्ज बनता हैं कि भारत की स्वतंत्रता का एक निष्पक्ष विश्लेषण हमे करना चाहिए और उन सभी कारणों का पता लगाना चाहि

पद्मश्री मृणाल पांडे का सफर : वरिष्ठ पत्रकार से ट्विटर ट्रोल तक

मृणाल पांडेय हिंदी साहित्य की मशहूर साहित्यकार "शिवानी" जी की पुत्री हैं। ये मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड में जन्मी इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा दीक्षा ली इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया का वो जाना माना चेहरा हैं, जिनको कल सुबह दस बज कर आठ मिनट तक  इज़्ज़त की नज़रो से देखा जाता था। ब्राह्मण कुल में जन्मी मृणाल पांडेय को जिसने भी नब्बे  के दशक में दूरदर्शन और स्टार न्यूज़ पर देखा हो या हिंदुस्तान अखबार में पढ़ा वो उन्हें बहुत ही उच्च कोटि की पत्रकार मानता रहा हैं, भारतीय पत्रकारिता में कम ही लोग है जिनकी हिंदी साहित्य में इतनी जबरदस्त पकड़ रही हो जितनी मृणाल पांडेय की है। आज जहाँ न्यूज़ चैनेल पर डिबेट के नाम पर मछली बाजार लगता है वहां मृणाल पांडेय एक समय बहुत सहजता शालीनता और शांति से डिबेट करवा दिया करती थी। कल सुबह दस बजे उन्होंने ये ट्वीट किया जिसके पश्चात उनकी कमाई सारी इज़्ज़त दो मिनट में मिट्टी में मिल  गयी देश में लोकतंत्र है ,अभिव्यक्ति की स्वतंन्त्रता है आपका प्रधान मंत्री और उनके समर्थको से वैचारिक विरोध हो सकता हैं, पर विरोधियों के लिए सार्वजनिक

एयर मार्शल अर्जन सिंह : भारतीय वायुसेना का फाइव स्टार सितारा

भारतीय वायुसेना (IAF)के मार्शल अर्जन सिंह का 98 साल की उम्र में निधन हो गया.  उन्हें आज सुबह हार्ट अटैक आया था जिसके बाद उन्हें रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल में भर्ती कराया गया था. उनकी हालत लगातार गंभीर बन हुई थी। भारतीय सैन्य इतिहास के नायक रहे मार्शल अर्जन सिंह के कार्यो को याद करते हुए हम उनके जीवन पर यह ब्लॉग पोस्ट लिखकर उन्हें epostmartem की तरफ से श्रंद्धाजलि अर्पित करते हैं। भारतीय वायुसेना के मार्शल अर्जन सिंह अजेय योद्धा थे, वो वायुसेना के एक मात्र ऐसे ऑफिसर हैं जिन्हें फील्ड मार्शल के बराबर फाइव स्टार रैंक दी गई थी. भारतीय सेना में अब तक सिर्फ तीन लोगों को फाइव स्टार रैंक मिली है और अर्जन सिंह उनमें से एक थे। अर्जन सिंह के अलावा फील्ड मार्शल के. एम. करियप्पा और फील्ड मार्शल सैम मानेक शा को यह सम्मान मिला। कब बने मार्शल - अर्जन सिंह को 2002 में एयरफोर्स का पहला और इकलौता मार्शल बनाया गया। वे एयरफोर्स के पहले फाइव स्टार रैंक ऑफिसर बने। 1965 की जंग में उनके कंट्रिब्यूशन के लिए भारत ने उन्हें इस सम्मान से नवाजा था। उन्हें 1965 में ही पद्म विभूषण से भ

सुपारी पत्रकारिता का नया स्टार्टअप : MOJO न्यूज़ पोर्टल

एक समय था जब जनता देश विदेश की खबरों के लिए पूरी तरह से अखबारों और न्यूज़ चैनल के भरोसे हुआ करती थी. उनको लगता था मीडिया हमें जो दिखा रहा है ,पढ़ा रहा है वो एक ध्रुव सत्य है. उसमें किसी भी प्रकार के विश्लेषण या तथ्यों को टटोलने की या सवाल खड़े करने की कोई आवश्यकता नहीं है . नेताओ ने वर्षो तक इसी चीज़ का फायदा उठा कर अपने भ्रस्टाचार लूट को जनता से छुपाए रखा जिस मीडिया का कर्तव्य जनता को जागरूक करना था, उनको सत्य से अवगत कराना था, उनको उनके अधिकारों के बारे में बताना था, वो मीडिया इन नेताओं के साथ मिलकर उनके लूट घोटालों अनैतिक और असंवैधानिक कार्यो को न सिर्फ छुपाता रहा बल्कि उसमें हिस्सेदार भी हो गया और दशकों तक आम जनता को गुमराह करता रहा, और ये सब करने के एवज में उनको लूट में हिस्सेदारी, सत्ता में उच्च पद और अवार्ड से सम्मानित किया जाता रहा। आज़ादी के 60 वर्षों बाद आज  राजनेताओं के बाद अगर  कोई सबसे ज्यादा भष्ट्र है तो वो मीडिया हैं, पर आज गनीमत इस बात की है सोशल मीडिया के उदय होने से मीडिया का अस्तित्व ही खतरे में आ गया है, जिन पत्रकारो और संपादकों को लगता था कि वो जो

जॉनसन एंड जॉनसन के बेबी प्रोडक्ट्स से हो रहे कैंसर!!

अक्सर यह समझा जाता हैं, कि बच्चों के लिए बनाए गए प्रोडक्ट्स सबसे सुरक्षित होते हैं, सबसे कोमल होते हैं और इसी सोच के साथ हम उन्हें इस्तेमाल करते हैं । लेकिन कई बार इन प्रोडक्ट्स के नाम पर सिर्फ सफ़ेद झूठ होता है। ऐसे ही कई झूठ दुनिया की नामी किड्स प्रोडक्ट निर्माता कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन का सामने आ रहा है। 21 अगस्त 2017 का ताजा मामला एक अमेरिकी कोर्ट ने इस कंपनी पर 417 मि‍लि‍यन डॉलर यानी 26.72 करोड़ रुपए की राशि पीड़ित को मुआवजे के तौर पर देने का फैसला सुनाया है। दरअसल कैलीफोर्नि‍या की महि‍ला ईवा इकवेरि‍या ने लॉस एंजेल्‍स की अदालत में कंपनी के खि‍लाफ मुकदमा दायर कि‍या। महि‍ला का आरोप है कि कंपनी के नामी बेबी पाउडर के इस्‍तेमाल के चलते उसे गर्भाश्‍य का कैंसर हो गया। महि‍ला का अभी इलाज चल रहा है। हालांकि उसकी हालत बेहद नाजुक है। महि‍ला की ओर पेश वकील ने अदालत में दलील दी कि जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी अपने ग्राहकों को इस बात के प्रति आगाह करने में असफल रही कि पाउडर के यूज से कैंसर होने का खतरा है। ईवा की उम्र अभी 63 साल है और उन्‍हें वर्ष 2007 में कैंसर का पत

Selective Journalism का पर्दाफाश

लोकतंत्र के चार स्तंभ होते हैं कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका और मीडिया जो इस देश को लोकतान्त्रिक तरीके से चलाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। कार्यपालिका जवाबदेह होती है विधायिका और जनता के प्रति और साथ ही दोनों न्यायपालिका के प्रति भी जवाबदेह होते है। इन तीनो की जवाबदेही भारतीय संविधान के हिसाब से तय है, बस मीडिया के लिए कोई कानून नहीं है, अगर है तो इतने मज़बूत नहीं की जरूरत पड़ने पर लगाम लगाईं जा सकें। 90 के दशक तक हमारे देश में सिर्फ प्रिंट मीडिया था, फिर आया सेटेलाइट टेलीविजन का दौर, मनोरंजन खेलकूद मूवी और न्यूज़ चैनल की बाढ़ आ गयी. आज  देश में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय चैनल को मिला के कुल 400 से अधिक न्यूज़ चैनल मौजूद है जो टीवी के माध्यम से 24 ×7 आपके ड्राइंग रूम और बैडरूम तक पहुँच रहे हैं। आपको याद होगा की स्कूल में हम सब ने एक निबन्ध पढ़ा था "विज्ञान के चमत्कार" ...चमत्कार बताते बताते आखिर में विज्ञान के अभिशाप भी बताए जाते है. ठीक उसी प्रकार जनता को संपूर्ण जगत की जानकारी देने और उन्हें जागरूक करने के साथ साथ मीडिया लोगो में डर भय अविश्वास और ख़ास विचारधार