एक समय था जब जनता देश विदेश की खबरों के लिए पूरी तरह से अखबारों और न्यूज़ चैनल के भरोसे हुआ करती थी. उनको लगता था मीडिया हमें जो दिखा रहा है ,पढ़ा रहा है वो एक ध्रुव सत्य है. उसमें किसी भी प्रकार के विश्लेषण या तथ्यों को टटोलने की या सवाल खड़े करने की कोई आवश्यकता नहीं है .
नेताओ ने वर्षो तक इसी चीज़ का फायदा उठा कर अपने भ्रस्टाचार लूट को जनता से छुपाए रखा जिस मीडिया का कर्तव्य जनता को जागरूक करना था, उनको सत्य से अवगत कराना था, उनको उनके अधिकारों के बारे में बताना था, वो मीडिया इन नेताओं के साथ मिलकर उनके लूट घोटालों अनैतिक और असंवैधानिक कार्यो को न सिर्फ छुपाता रहा बल्कि उसमें हिस्सेदार भी हो गया और दशकों तक आम जनता को गुमराह करता रहा, और ये सब करने के एवज में उनको लूट में हिस्सेदारी, सत्ता में उच्च पद और अवार्ड से सम्मानित किया जाता रहा।
आज़ादी के 60 वर्षों बाद आज राजनेताओं के बाद अगर कोई सबसे ज्यादा भष्ट्र है तो वो मीडिया हैं, पर आज गनीमत इस बात की है सोशल मीडिया के उदय होने से मीडिया का अस्तित्व ही खतरे में आ गया है, जिन पत्रकारो और संपादकों को लगता था कि वो जो भी आ कर बोल देंगे टीवी के सामने कोई उनसे सवाल जवाब नहीं करेगा उनकी निष्ठा पे सवाल नहीं उठाएगा आज उस मुख्य धारा पत्रकारिता (main stream media) के लोग भयभीत है सोशल मीडिया से, क्योकि आज पूरी निर्भीकता से सोशल मीडिया इनको एक्सपोज़ कर रहा है।
ये सर्व विदित है तथ्य हैं कि MSM का निशाना हमेशा से बीजेपी आरएसएस और खासतौर से मोदी रहे है, और इनका यह एजेंडा नरेंद्र मोदी जी भांप गये थे, उन्हें इस बात का अहसास हो गया था मुख्य धारा की पत्रकारिता (MSM) अपनी एजेंडा पत्रकारिता के चलते बीजेपी को सत्ता तक पहुचाने में अड़चन खड़ी कर सकता है, तब उन्होंने 2014 लोकसभा के लिए जनता से संवाद करने, अपनी बातें जनता तक पहुचाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया।
एक सुनियोजित रणनीति के तहत MSM की भ्रमित करने वाली खबरों को सोशल मीडिया के माध्यम से आइना दिखाना गया, देश के सामने उनकी खोखली दलीलों की पोल खोल के रख दी गयी। मीडिया की यह माफियागिरी खत्म करने के लिए बहुत से राष्ट्रवादियो ने फेसबुक ट्विटर और बाकी संचार माध्यमो का सहारा लेते हुए इन MSM पत्रकारो की दिग्भ्रमित करने वाली खबरों की पोल खोल डाली इनकी "एजेंडा पत्रकारिता" को जनता के सामने उजागर कर दिया, और इसके अगले डेढ़ से दो वर्षो में MSM की प्रासंगिकता ही खत्म हो गयी।
पर असली खेल यहाँ से शुरू होता है -
जिन तथाकथित पत्रकारो और मठाधीशों को लगता था कि उनकी निष्ठा और उनकी बात कभी किसी संदेह के घेरे में आ ही नहीं सकती वो भी धीरे धीरे समझने लग गए कि वो अब अपनी महत्ता खोते जा रहे है तो उन्होंने एक नया तंत्र खड़ा किया MOJO..
MOJO का अर्थ है मोबाइल जर्नलिज्म, इन लोगो ने पत्रकारो, भष्ट्र राजनेताओं और कॉर्पोरेट घरानों की मदद से the wire, Quint, Alt news जैसे दर्जनों न्यूज़ पोर्टल मार्केट में उतार दी, और ये दावा किया कि वो दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी हिन्दुओ के झूठ का पर्दाफाश करेंगे जबकि इनका मुख्य उद्देश्य जनता को खबर देना नहीं बल्कि दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी विचारधारा के लोगो के खिलाफ अपनी उसी नकारात्मक एजेंडा पत्रकारिता को दुबारा पुनर्जीवित करने का हैं जो मुख्य धारा मीडिया में अपनी प्रसांगिकता खो चुकी थी।
Alt न्यूज़ पोर्टल जो की कुछ माह पहले शुरू हुआ हैं जो यह दावा करता है कि वो राष्ट्रवादियो की पोल खोलता हैं उसके खुद के मालिक के राष्ट्र विरोधियो से कनेक्शन है, Alt न्यूज़ का मालिक प्रतीक सिन्हा है जो की स्वर्गीय मुकुल सिन्हा का पुत्र है, ये मुकुल सिन्हा वही व्यक्ति है जो जावेद शेख का वकील थे।
क्या आप जानते है जावेद शेख कौन है ?
जावेद शेख उन दुर्दांत आतंकियों में से एक जो 2004 में इशरत जहां के साथ एनकाउंटर में मारा गया था, वही इशरतजहां जिसको गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करने के लिए आतंकियों ने भेजा था। मुकुल सिन्हा ने इसी आतंकी जावेद को निर्दोष बताते हुए नरेंद्र मोदी और पुलिस अधिकारियों को जेल भेजने की मांग की थी।
अब मुकुल के पुत्र प्रतीक ने जिम्मेदारी ली है Alt news के माध्यम से आतंकियों और देश विरोधियो को बचाने की और इस Alt न्यूज़ पोर्टल का प्रचार प्रसार करने का दायित्व उठाया है स्वयं रविश कुमार और कांग्रेस के नेता दिग्विजय शशि थरूर और बृजेश ने, क्योंकि इनका अंतिम एजेंडा है राष्ट्रवादी आवाज़ों को दबाना।
खुद को ईमानदार बताने वाले रविश कुमार जो की alt न्यूज़ को प्रोमोट करते है और राष्ट्रवादियो की पोल खोलने का दावा करते है वो एक बार भी अपने भाई के विषय में नहीं बोलेंगे जो की सेक्स रैकेट चलाने के जुर्म में जेल में बंद है, यहाँ तक की रविश कुमार की बहन भष्ट्राचार के आरोप में सरकारी नौकरी से निलंबित है, क्या रविश कुमार कभी जनता को यह बता पाएंगे कि प्रतीक सिन्हा के पिता कौन थे?
अब हम बात करते है न्यूज़ पोर्टल The Wire की जो की दक्षिणपन्थियों के खिलाफ सबसे ज्यादा मुखर रहा है। इसके मालिक है एमके वेणु, ये साहब राज्य सभा टीवी में काम करते थे और पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के नज़दीकी रहे हैं। दुसरे मालिक है सिद्धार्थ वर्धराजन ये भारत की नागरिकता त्याग कर अब अमेरिकी नागरिक बन गए और एंटी नेशनल का समर्थन करने के लिए जाने जाते, इनकी वामपंथी पत्नी नंदिनी सुंदर पर कोर्ट में एक आदिवासी की हत्या का केस भी चल रहा हैं। आपकी ज्यादा जानकारी के लिये हम बताते चलें कि ये सिद्धार्थ वही साहब है जिन्होंने भारतीय सेनाध्यक्ष की तुलना जनरल डायर से की थी जो की जलियावाला बाग़ नरसंहार को अंजाम देने वाला व्यक्ति था।
इसी तरह से NDTV की पूर्व सम्पादक बरखा दत्त ने MoJo नाम के एक पोर्टल की शुरुआत नोमान सिद्दकी के साथ मिलकर की हैं, कहा जा रहा है कि सिद्दकी ने Mojo में काफी निवेश कर रखा है, ये सिद्दकी वही व्यक्ति है जो अफ़ज़ल गुरु को रिहा और मोदी जी को फांसी पर लटकाने की बात करता रहा हैं।
कुछ पत्रकार इन राष्ट्र विरोधी ताकतों का समर्थन करते करते स्वयं राष्ट्रविरोधी हो गए है, ये आतंकियों के लिए भटके हुए नौजवान और मासूम जैसे शब्दों का प्रयोग करते है और उनको राष्ट्रीय चैनल पर बैठा कर इंटरव्यू तक करते है टीवी पर और अपने एजेंडे को आगे बढ़ाते है, इन एजेंडा पत्रकारो को सबसे बड़ा खतरा उन राष्ट्रवादियो से है जो ट्विटर फेसबुक जैसे माध्यमो से इनकी पोल खोल दे रहे हैं।
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सोर्स- पोस्टकार्ड न्यूज़
बढ़िया लेख जबरदस्त नकाब उतारी गई हैं
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी !
जवाब देंहटाएंरोचक जानकारी देने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंछद्म राष्ट्र विरोधी पत्रकारिता की पोल खोल करता लेख
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