अक्सर यह समझा जाता हैं, कि बच्चों के लिए बनाए गए प्रोडक्ट्स सबसे सुरक्षित होते हैं, सबसे कोमल होते हैं और इसी सोच के साथ हम उन्हें इस्तेमाल करते हैं।
लेकिन कई बार इन प्रोडक्ट्स के नाम पर सिर्फ सफ़ेद झूठ होता है। ऐसे ही कई झूठ दुनिया की नामी किड्स प्रोडक्ट निर्माता कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन का सामने आ रहा है।
21 अगस्त 2017 का ताजा मामला
एक अमेरिकी कोर्ट ने इस कंपनी पर 417 मिलियन डॉलर यानी 26.72 करोड़ रुपए की राशि पीड़ित को मुआवजे के तौर पर देने का फैसला सुनाया है। दरअसल कैलीफोर्निया की महिला ईवा इकवेरिया ने लॉस एंजेल्स की अदालत में कंपनी के खिलाफ मुकदमा दायर किया। महिला का आरोप है कि कंपनी के नामी बेबी पाउडर के इस्तेमाल के चलते उसे गर्भाश्य का कैंसर हो गया। महिला का अभी इलाज चल रहा है। हालांकि उसकी हालत बेहद नाजुक है। महिला की ओर पेश वकील ने अदालत में दलील दी कि जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी अपने ग्राहकों को इस बात के प्रति आगाह करने में असफल रही कि पाउडर के यूज से कैंसर होने का खतरा है।
ईवा की उम्र अभी 63 साल है और उन्हें वर्ष 2007 में कैंसर का पता चला। चार सप्ताह तक चले कोर्ट ट्रायल में वह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश हुईं। उन्होंने अदालत को बताया कि उन्होंने 40 साल तक इस पाउडर का यूज किया। जब उन्होंने इसे इस्तेमाल करना शुरू किया तो उनकी उम्र 11 साल थी। अगर इस प्रोडक्ट पर यह चेतावनी लिखी होती तो वह कब का इसे इस्तेमाल करना बंद कर चुकी होतीं।
इससे पहले वरजीनिया की एक महिला की शिकायत पर सेंट लुइस की अदालत ने जॉनसन एंड जॉनसन को 11 करोड़ डॉलर यानी करीब 715 करोड़ रुपए का हर्जाना भरने का का आदेश दिया था। उसे 2012 में ओवरियन कैंसर के बारे में पता चला। महिला का दावा था कि वह करीब 40 वर्षों से इस कंपनी का बेबी पाउडर और शावर टू शावर पाउडर का इस्तेमाल कर रही थी। अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि इस मामले में जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी 99 फीसदी दोषी है।
इससे पहले फरवरी 2016 में भी अमेरिका की एक अदालत ने इस कंपनी को 7।2 करोड़ डॉलर का हर्जाना उस महिला के परिवार को देने को कहा था, जिसकी मौत ओवरियन कैंसर की वजह से हो गई थी। मई 2016 में भी यहां की एक अदालत ने कंपनी को एक महिला को 5.5 करोड़ डॉलर हर्जाने के रूप में देने का ओदश दिया था। इस महिला का भी दावा था कि पाउडर लगाने की वजह से उसे ओवरियन कैंसर हो गया।
इस घटना के बाद कंपनी पर मुकदमों की बौछार हो गई। केस करने वालों का कहना है कि कंपनी ने अपने अपने बेबी पाउडर से जुड़े कैंसर के रिस्क के बारे में ग्राहकों को किसी तरह की चेतावनी जारी नहीं की है और यह एक गंभीर चूक है। अमेरिका के सेंट लुइस में जॉनसन एंड जॉनसन पर हुए 2400 मुकदमों में अभी तक सबसे बड़ा हर्जाना देने का आदेश इस केस में हुआ है।
गौरतलब है कि जॉनसन एंड जॉनसन और विवादों का पुराना नाता रहा है। 1982 में अमेरिका में जॉनसन एंड जॉनसन के टायलीनॉल दवा से 7 लोगों की मौत हो गई थी और कंपनी ने 3.1 करोड़ बोतलों को तुरंत वापस लिया था। वहीं 2008 में कई लोगों ने कंपनी के उत्पादों पर बदबू और मिलावट का आरोप लगाया था। 2 साल बाद कंपनी ने करीब तीन करोड़ यूनिट प्रोडक्स वापस लिए।
2010 में कंपनी के वाशिंगटन प्लांट को बंद करना पड़ा। 2011 में मिर्गी की दवा टोपामैक्स की 57000 बोतलें वापस ली क्योंकि दवा में बदबू थी। 2011 में ही 5 लॉट इंसुलिन पंप के कार्टिजेज मिलावट की आशंका के कारण वापस हुए। 2012 में बेबी लोशन की 2000 ट्यूब ज्यादा बैक्टरिया के कारण वापस हुए। 2013 सायकोटिक दवा की गलत प्रचार में 220 करोड़ डॉलर का जुमार्ना लगा और इसके लिए डॉक्टरों ने रिश्वत भी ली थी।
जॉनसन एंड जॉनसन के नो मोर टीयर वाले बच्चों के शैम्पू पर भी सवाल उठे। इस शैम्पू पर कई स्वास्थ्य संगठनों ने सवाल उठाए। कंपनी पर करीब 1200 से ज्यादा कानूनी केस दर्ज हुए हैं। इस बीच, जॉनसन एंड जॉनसन के खिलाफ महाराष्ट्र में जांच चल रही है। दरअसल महाराष्ट्र में कंपनी के कई उत्पादों के सैंपल एफडीए ने जांच हेतु लिए हैं। शॉवर टू शॉवर, डर्मिकूल, पॉन्ड्स और नायसिल के सैंपल लिए गए हैं। इन पाउडर में हैवी मेटल होने की आशंका जताई गई है जिससे कैंसर हो सकता है और इसकी जांच होगी।
बता दें कि जॉनसन एंड जॉनसन का भारत में बेबी केयर कारोबार 92500 करोड़ रुपये का है। अगले 4 साल में कारोबार बढ़कर 1.98 लाख करोड़ रुपये का होने का अनुमान है। भारत में बेबी केयर कारोबार में जॉनसन एंड जॉनसन का मार्केट शेयर 70 फीसदी से ज्यादा है। जॉनसन एंड जॉनसन, भारत में फिलहाल सिर्फ बेबी केयर कारोबार में है।
अब सरकार और मीडिया दोनो पर बड़े गम्भीर सवाल उठते हैं, की सरकार ने जॉनसन एंड जॉनसन बेबी प्रोडक्ट पर हो रहे केसेज को संज्ञान क्यो नही लिया? क्यो इसके प्रोडक्ट अभी तक भारत मे बैन नही हुए? क्या विदेशों की तरह यहाँ भी नेताओ डॉक्टर्स को रिश्वत खिला कर मामले पर चुप्पी साधे रहने के लिए मजबूर किया गया हैं?
डिंग से लेकर डांग तक टिंग से लेकर टांग तक यहाँ तक कि श्रीलंका जाकर रावण की गुफा तक खोज लाने वाले टीवी पत्रकारों ने यह खबर टीवी पर क्यो नही दिखाई? क्या मीडिया हाउसेस ने भी इस मामले को दबाने के लिए मोटी रिश्वत खाई हैं? हर मामले में "प्राइम टाइम डिबेट", "सबसे बड़ा सवाल" पूछ कर "आर पार" करने वाले पत्रकार क्यो नही "ताल ठोक रहे हैं"?
गोरखपुर में आक्सीजन की कमी से बच्चे मरते हैं तो उस पर डिबेट हो सकती हैं लेकिन इसकी वजह से देश के नौनिहाल खतरे में हैं उस पर कोई बहस नही, क्योकि ये बच्चे वोटर नही हैं, या इस खबर से किसी पार्टी को टारगेट नही किया जा सकता उल्टा न्यूज़ चैनेल्स का रेवन्यू लॉस हो सकता हैं, इसलिए इसकी कोई खबर नही हैं।
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( सबूत के तौर पर अमेरिकन अखबारों के स्क्रीन शॉट लिंक के साथ लगे हुए हैं)
The NyTimes -:https://mobile.nytimes.com/2017/08/22/health/417-million-awarded-in-suit-tying-johnsons-baby-powder-to-cancer.html
भारतीय लालची मीडिया को रुपया खिलाओ, कुछ भी रिपोर्टिंग करवा लो, या उठाये जाने मुद्दों को हाईड करवा लो, सौदा है पर कच्चा है झूठ पर टिका हुआ है। पोल खोलते चलो. जन जागरूकता के लिए अति महत्वपूर्ण है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी दी गयी है ,हर माता पिता को पढ़ना चाहिए ये ....
जवाब देंहटाएंgood article
जवाब देंहटाएंआंखे खोलो इण्डिया
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