सवा अरब की आबादी वाला देश है हमारा हर रोज़ हज़ारो बच्चे
पैदा होते है और सैकड़ो लोग मृत्यु को प्राप्त होते है। कुछ अपनी मौत तो
कुछ हादसे बीमारी और हत्या का शिकार हो कर .... ऐसे ही कल रात बंगलोर की एक
पत्रकार गौरी लंकेश की अज्ञात हमलावरों ने 7 गोलिया दाग कर उनके घर के
बाहर हत्या कर दी।
न ही गौरी लंकेश पहली पत्रकार है जिनकी हत्या हुई न शायद
आखिरी हो, ये है लिस्ट उन पत्रकारो की जिनके देश के अलग अलग राज्यो में
पिछले एक से डेढ़ वर्ष में हत्या हुई।
1- 13 मई 2016 को
सीवान में हिंदी दैनिक हिन्दुस्तान के पत्रकार राजदेव रंजन की गोली मारकर
हत्या कर दी गई. ऑफिस से लौट रहे राजदेव को नजदीक से गोली मारी गई थी. इस
मामले की जांच सीबीआई कर रही है.
2- मई 2015 में मध्य
प्रदेश में व्यापम घोटाले की कवरेज करने गए आजतक के विशेष संवाददाता अक्षय
सिंह की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई. अक्षय सिंह की झाबुआ के पास
मेघनगर में मौत हुई. मौत के कारणों का अभी तक पता नहीं चल पाया है.
3- जून 2015 में मध्य
प्रदेश में बालाघाट जिले में अपहृत पत्रकार संदीप कोठारी को जिंदा जला
दिया गया. महाराष्ट्र में वर्धा के करीब स्थित एक खेत में उनका शव पाया
गया.
4- साल 2015 में ही
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में पत्रकार जगेंद्र सिंह को जिंदा जला दिया
गया. आरोप है कि जगेंद्र सिंह ने फेसबुक पर उत्तर प्रदेश के पिछड़ा वर्ग
कल्याण मंत्री राममूर्ति वर्मा के खिलाफ खबरें लिखी थीं.
5- साल 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान नेटवर्क18 के पत्रकार राजेश वर्मा की गोली लगने से मौत हो गई.
6- आंध्रप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार एमवीएन शंकर की 26 नवंबर 2014 को हत्या कर दी गई. एमवीएन आंध्र में तेल माफिया के खिलाफ लगातार खबरें लिख रहे थे.
7- 27 मई 2014 को ओडिसा के स्थानीय टीवी चैनल के लिए स्ट्रिंगर तरुण कुमार की बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी गई.
8- हिंदी दैनिक देशबंधु के पत्रकार साई रेड्डी की छत्तीसगढ़
के नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले में संदिग्ध हथियारबंद लोगों ने हत्या कर
दी थी.
9- महाराष्ट्र के पत्रकार और लेखक नरेंद्र दाभोलकर की 20 अगस्त 2013 को मंदिर के सामने उन्हें बदमाशों ने गोलियों से भून डाला.
10- रीवा में मीडिया राज के रिपोर्टर राजेश मिश्रा की 1 मार्च 2012 को कुछ लोगों ने हत्या कर दी थी. राजेश का कसूर सिर्फ इतना था कि वो लोकल स्कूल में हो रही धांधली की कवरेज कर रहे थे.
11- मिड डे के मशहूर क्राइम रिपोर्टर ज्योतिर्मय डे की 11 जून 2011 को हत्या कर दी गई. वे अंडरवर्ल्ड से जुड़ी कई जानकारी जानते थे.
12- डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम के खिलाफ़ आवाज
बुलंद करने वाले पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की सिरसा में हत्या कर दी गई. 21
नवंबर 2002 को उनके दफ्तर में घुसकर कुछ लोगों ने उनको गोलियों से भून डाला.
अब सवाल ये उठता है कि देश के मीडिया ने इन पत्रकारो की मौत
पर इतना हाय तौबा क्यों नही मचाया जितना गौरी लंकेश की हत्या पर उठा रहा
हैं, ये समझने के लिए आपको गौरी लंकेश की विषय में जानना होगा।
गौरी लंकेश कन्नड़ पत्रकार पी. लंकेश की पुत्री थी, जो की
कन्नड़ पत्रिका लंकेश के मालिक थे, पिता की मृत्यु के बाद बेटा इंद्रजीत और
बेटी गौरी ने पत्रिका का काम आगे बढ़ाया। पिता की मौत के बाद उनके भाई
इंद्रजीत और उन्होंने पत्रिका लंकेश की कमान संभाली। कुछ साल तो उनके और
भाई के रिश्ते ठीक रहे। मगर साल 2005
में नक्सलियों द्वारा पुलिस पर हमले की घटना को जस्टिफाई करते हुए गौरी
लंकेश ने लेख छापा इसके चक्कर में भाई और उनकी बीच खटास पैदा हो गई। दरअसल
भाई ने खबर के जरिए नक्सलियों को हीरो बनाने के आरोप लगाए। इसके बाद दोनों
के बीच का विवाद खुलकर सामने आ गया। दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ गया कि भाई इंद्रजीत ने उनके
खिलाफ पुलिस थाने में ऑफिस के कम्प्यूटर,प्रिंटर चुराने की शिकायत कर दी।
वहीं गौरी ने भाई के खिलाफ ही हथियार दिखाकर धमकाने की शिकायत दर्ज करा दी।
इसके बाद गौरी ने अपना खुद की साप्ताहिक कन्नड़ गौरी लंकेश पत्रिका निकालनी
शुरू कर दी। वो खुले तौर पर हिन्दू धर्म की आलोचना करती थीं उन्होंने यहाँ
तक कहा कि हिन्दू धर्म कोई धर्म नही हैं बल्कि समाज का एक ऐसा सिस्टम है,
जिसमें महिलाओं को दोयम दर्जे का माना जाता है। गौरी लंकेश हिन्दू धर्म को
ब्राह्मणों की साजिश मानती थी और लियांगत समुदाय को सवर्णो के खिलाफ
भड़काती रहती और अलग धर्म के निर्माण की बात करती थी।
हिंदुत्ववादी विचारधारा के प्रति उनका नफरत का भाव इस कदर था
कि हिंदुत्ववादी राजनीति करने वाले नेताओं को बदनाम करने के लिये झूठी
खबरें छापने से भी वो परहेज नही करती थी। 23 जनवरी, 2008
में गौरी की पत्रिका में एक खबर छपी थी, जिस पर बीजेपी सांसद प्रह्लाद
जोशी और पार्टी पदाधिकारी उमेश दोषी पर उन्होंने ज्वेलरी चोरी का आरोप
लगाया जिस पर उन लोगो ने आपत्ति जताई और गौरी के खिलाफ मानहानि का मामला
दर्ज कराया था। इसी मामले में 2016
में कोर्ट ने गौरी को दोषी करार दिया था और उन्हें छह महीने जेल की सजा
सुनाई गई थी, लेकिन उन्हें उसी दिन जमानत मिल गई थी. जिस दिन उन्हें सजा
सुनाई गई थी।
ऐसी झूठी खबर छापने और कोर्ट से सजा पाने के बाद भी उन्हें
इसका कोई पछतावा नही था, बल्कि उन्होंने बड़े आराम से कहा कि "उन्हें
सूत्रों से खबर मिली थी हेराफेरी की"। इसी प्रकार संघ और हिंदुत्व विरोधी
मानसिकता रखने वाले कई पत्रकार निराधार खबरों को "सूत्रों" का हवाला दे कर
अखबारों में छापकर जनता को गुमराह करते हैं।
खैर, हम इस जघन्य हत्या की पुरजोर निंदा करते हैं क्योकि
हिंदुत्व, विरोधी विचारधारा को भी समान रूप से प्रश्रय देता हैं, वह
नास्तिक चार्वाक के अनीश्वरवादी ग्रन्थ को भी जीवन का एक दर्शन मानता हैं,
पर सवाल यह हैं कि क्या ऐसे ही उदार विचार वामपंथ का भी हैं जिसका
प्रतिधिनित्व गौरी लंकेश जी किया करती थी?
प्रसिद्ध फ़िल्म लेखक जावेद अख्तर साहब ट्विटर पर लिखते हैं
"Dhabolkar , Pansare, Kalburgi , and now Gauri Lankesh .
If one kind of people are getting killed which kind of people are the
killers."
इन्हें यह चार हत्याएं तो याद रहती हैं पर पिछले एक साल में
100 आरएसएस कार्यकर्ताओ की केरल में बेरहमी से हत्या नही याद रहती जावेद
साहब ने कभी उन आरएसएस कार्यकर्ताओ के लिए उदगार व्यक्त नही किये और ना ही
शोक जताया, यह कैसी सलेक्टिव संवेदना हैं जावेद साहब?
अभी हत्या के सिर्फ कुछ घण्टे ही बीते थे, पुलिस जांच कर ही
रही हैं थी कि वामपंथी विचारधारा के झंडाबरदारों ने फ़ैसला सुना दिया कि
पनसारे, दाभोलकर की तरह कट्टर हिंदूवादी संगठनों ने हत्या की क्योंकि
पत्रकार कट्टर हिंदूवाद की विरोधी थी। अरे भाई पुलिस जांच का तो निष्कर्ष आ
जाने देते, गौरतलब है कि इन लोगो ने "सुनन्दा पुष्कर हत्याकांड" पर
हत्यारे के विषय मे इस तरह का कोई अंदाजा तक नही लगाया था, ऐसा डबल
स्टैंडर्ड क्यो?
जबकि गौरी लंकेश अपने आख़री ट्वीट्स में साफ़ इशारा कर रही थी
कि उनके अपने संगठन के कुछ लोगो से सम्बंध अच्छे नहीं चल रहे थे, अपनी
ट्वीट में वो कहती हैं कि आपस मे लड़ने से अच्छा अपने असली दुश्मन को पहचान
कर उनसे लड़ो, क्या इस एंगल पर नही सोचा जाना चाहिए?
कर्नाटक में सरकार कांग्रेस के सिद्धरमैया की है, लेकिन
क़ानून व्यवस्था के लिए वो जिम्मेदार नहीं हैं उनसे कोई इस्तीफा नही माँगा
जा रहा हैं। विडंबना देखिये की हत्या में हिंदूवादी संगठनों के नाम लाकर
प्रधानमंत्री से जवाब माँगा जा रहा हैं, जबकि खबर हैं कि सिद्धरमैय्या की
सरकार के भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ भी वो जाँच कर रही थी। गौरी लंकेश का अपने
भाई से भी विवाद था ऊपर हमने बताया हैं कि मामला थाने तक जा चुका था. पर इन
सभी पहलुओं को नजरअंदाज कर सिर्फ घण्टे भर के अंदर हिंदूवादी संगठनों को
इसके लिए अतिबुद्धिजीवियो ने जिम्मेदार ठहरा दिया।
ABP के पत्रकार विकास भदौरिया सिद्धरमैया सरकार के भष्ट्राचार वाले मामले में भी हत्या का एंगल देख रहे हैं.
ये देखिये पत्रकारिता का नमूना, जब अल्पसंख्यक दलित जैसे शब्द
नही मिले तो बीजेपी विरोधी पत्रकार लिखकर टैग लाइन चलाई जा रही हैं,
इन्हें यह मालूम होना चाहिए कि पत्रकार किसी पार्टी का विरोधी नही होता और
अगर वो हैं तो फिर वो नेता हुआ पत्रकार नही।
ये शर्मनाक हरकत देखिये पत्रकार राणा अयूब की, ये कैसे लोग
हैं किसी की जघन्य हत्या हुई हैं और ये उसका इस्तेमाल अपनी किताब के
प्रमोशन में कर रही हैं आपको मालूम हैं जब सचिन तेंदुलकर अपनी फिल्म के
प्रमोशन के लिए लोगो से मिल रहे थे तो उनका मखौल उड़ाया जा रहा था, और यह
मोहतरमा तो साक्षात् लाश पे रोटियां सेंक रही है
News24 के मानक गुप्ता कहते हैं कि "हत्या हत्या होती है. कोई
जान सस्ती-महँगी नहीं, हर जान की क़ीमत बराबर है. ऐसे हर अपराध के ख़िलाफ़
देश को एक हो कर खड़े हो जाना चाहिए."
पत्रकार गौरी लंकेश के हत्यारों को पकड़ने की और निष्पक्ष जाँच
की हमारी भी मांग हैं, और यह भी जांच की जाये हत्या के कुछ घण्टो में ही
विरोध के लिए पोस्टर बैनर कैसे छप गए, और यह लोग किस मकसद से बिना जांच हुए
हत्या के पीछे हिन्दूवादी संगठनों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
लेखक का ट्विटर पता: अंकुरानंद मिश्र (@ankur9329):- https://twitter.com/ankur9329?s=09
लेखक का ट्विटर पता: अंकुरानंद मिश्र (@ankur9329):- https://twitter.com/ankur9329?s=09
बहुत ही सुन्दर विश्लेषण अंकूर सर।🖒
जवाब देंहटाएंआपका आभार
हटाएंउत्तम लेख है, सिर्फ मोदी विरोध में ये लोग इस हद तक गिर गए है कि मुझे लगता है 2019 में बीजेपी को प्रचार करने की जरूरत ही नहीं है।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल यह लोग किसी भी स्तर तक जा सकते हैं
जवाब देंहटाएंअंकुरानंद मिश्र बधाई के पात्र हैं इतने तथ्यगत लेख के लिए। कांग्रेस के पास कोई मुद्दा नही रह गया है और बिना जांच एकदम से किसी को कटघरे में खड़े करके यह कहना कि अब वो चुप नही बैठेंगें उनके मानसिक दिवालियापन का द्योतक है। अरे साहब कहावत है न अपने अच्छे बुरे कर्मों का हिसाब यही चुकाकर जाना पड़ता है व्यक्ति को तो जो जैसा करेगा वैसा ही भरेगा। जांच के बाद स्वतः ही दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। हिन्दू यदि धर्म नही विचारधारा भी है तो भी यहां राजनीतिक विरोधियों की हत्या करवाने जैसा कुकृत्य नही किया जाता ये काम वामपंथी और कांग्रेसी ही करते रहें हैं। पत्रकार तो वैसे भी निष्पक्ष कहा जाता है तो कैसा विरोधी।
जवाब देंहटाएंनिश्चित रूप से ये हत्या व्यक्तिगत होनी चाहिए और इस प्रकार हत्याओं पर राजनीति बंद होनी चाहिए।
प्रभु गौरी जी की आत्मा को शांति प्रदान करें।
अब यह कर्नाटक राज्य में कांग्रेस पार्टी की कब्र की खुदाई की शुरुआत है... जो इनके झूठे प्रोपगंडा और इनकी मक्कारियों के साथ साथ गहरी होती चली जाएगी ... आप समय के इस चक्र को सिर्फ देखते जाइए कि इनके नेता अपनी कब्र भी खुद ही खोदेंगे और खुद ही दफन भी होंगे ...
जवाब देंहटाएंहिन्दू धर्म हो या विचारधारा, , जो एंटी हिन्दू उन्हें किस किताब ने हक़ दिया, जो आलोचना करेंगे और लगातार पीछे पड़ेंगे। दूसरे पन्थ मज़हबों के खिलाफ चंद शब्द दर्ज कराओ पिछवाड़े सटके पड़ते हैं पता होगा ही। अब हिन्दू जागृत है, नही चलेगा।
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