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संगठन ही विजय-सूत्र है ।

एक इंग्लिश कहावत है - God helps them who help themselves - ईश्वर भी उनकी ही सहायता करता है जो खुद की सहायता कराते हैं । मतलब मदद उनको ही मिलती है जो ऐसे भी सक्षम होते हैं ।

वैसे इसमें निसर्ग के एक बड़े नियम की पुष्टि है - survival of the fittest - समर्थ, सक्षम ही टिकता है, ज़िंदा रहता है । यही होता आया है । इतिहास यही सिखाता है, जिन्होने नहीं माना वे नष्ट हुए । जिन्होने प्रतिकार नहीं किया या सच्चे मन से प्रतिकार का यत्न भी नहीं किया वे भी या तो नष्ट हुए या खदेड़े गए । यही शाश्वत सत्य है ।

और हमें यह बताया जाता है कि निर्बल का त्राता भगवान । निर्बल अगर भगवान से तारण पाकर भी निर्बल ही रहना चाहेगा और हर बार भगवान को पुकारेगा तो भगवान को कोसते  मर जाना ही उसकी नियति होगी ।

ऊपरवाली अंग्रेजी कहावत जैसी ही एक और कहावत है - हिम्मते मर्दा तो मददे खुदा । फारसी होगी, खुदा फारसी होता है, अल्लाह अरबी । फिरके के हिसाब से ब्रांड नेम बदल जाता है शायद । इसका भी अर्थ वही है, जो सक्षम होगा  उसकी ही मदद होगी। आज रोहिंग्या की मदद के लिए जो मुसलमान नाच रहे है उसका कारण वही है, रोहिंग्या उपद्रव करने के लिए पूरे सक्षम है तो इनपर ये अवस्था आई है ।

वैसे इन मुहावरों से एक समसामयिक सीख भी मिलती है । गॉड के जैसे ही नेता भी सामर्थ्यवान की ही मदद करते हैं । अपने देश में नेता भगवान से कम मानते हैं क्या खुद को ? आप अगर सक्षम हैं, ताकतवर हैं तो ही नेता आप का साथ देंगे । नहीं तो नेता तब ही आएंगे जब आप के शव को हार पहनाना हो या उससे भी बेहतर, आप की श्रद्धांजलि सभा में ही आएंगे क्योंकि वहाँ ए सी हाल होगा और सामने भीड़ होगी । बाकी वो नेता सक्षम के साथ ही खड़ा मिलेगा । आप केवल सोशल मीडिया पर रोना रोते रहिए ।


एक विडियो देखा । वहाँ अंत में सुशील पंडित जी को चिल्लाते देखा तो यही बात समझ में आई । पाँच लाख लोगों को खदेड़ने पाँच लाख क्या पाँच हजार भी नहीं आए होंगे ।

नाज़ियों ने जो जो देश जीते, हर जगह देशभक्तों ने अंडरग्राउंड संघर्ष जारी रखकर उनके नाक में दम कर रखा था । युवा अमेरिका इंग्लंड में भागे तो वहाँ मित्र राष्ट्र सेनाओं में अपने यूनिट्स बनाए । एयर फोर्स में शामिल हुए ।  मित्र सेनाओ को हर तरह की मदद की, अन्यथा उनका काम और मुश्किल होता ।

कश्मीरी हिंदुओं की किसी पार्टी ने मदद नहीं की ।नेहरू खुद को कश्मीरी कहते रहे, लेकिन उनके वंशजों ने कश्मीरी हिंदुओं के पीठ में छुरा ही घोंपा है । उनको वहाँ से भगाने वालों का ही साथ दिया ।

इससे हमें सीख लेनी चाहिए और अपने शहर, मोहल्ले का कश्मीर, कैराना नहीं होने देना चाहिए । पचड़े में न पड़ने की बात नहीं है, पचड़ा आप के दरवाजे के बाहर है, आप को खोजते आया है । पड़ोसियों से बात करें ।
#साहेब

लेखक से ट्विटर पर मिले : @chintanvedant




टिप्पणियाँ

  1. बेहतरीन पोस्ट आसान तरीके से समझाया गया हैं कि रोहिंग्या जैसी समस्या से निपटना हैं तो संगठन जरूरी हैं।

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