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जनवरी, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

क्या डबल स्टैंडर्ड से ग्रसित मीडिया और अंधे राजनेता चंदन गुप्ता के परिवार को न्याय दिलाएँगे?

आजादी के लगभग 3 वर्ष के बाद भारतीय संविधान को अधिकारिक रूप से अपनाया गया और तबसे हर वर्ष हम 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाते आ रहे हैं। विश्व के सबसे लोकतांत्रिक देश के वासी होने पर हर भारतीय को गर्व होना भी चाहिए। देश के उन्हत्तरवें गणतंत्र दिवस पर यूपी के कासगंज में मुस्लिमों द्वारा जो आतंक मचाया गया वो सभी देशवासियों को शर्मसार करने के लिए काफ़ी था। कासगंज में मुस्लिम समुदाय ने एक हिंदू युवा चंदन गुप्ता की गोली मारकर सिर्फ इसलिए हत्या कर दी क्योंकि वो तिरंगा लेकर भारत माता की जय और वन्दे मातरम् के नारे लगा रहा था। लोगों में गुस्सा और आक्रोश भर गया, वो सड़क पर उतर आए और देखते ही देखते कासगंज जल उठा। इस नृशंस हत्या ने एक ओर जहाँ कई सवाल खड़े कर दिए वही मीडिया के अधिकांश वर्ग ने चुप्पी साध ली। एक तरफ कासगंज जल रहा था तो दूसरी ओर नेताओ के होंठ सिल गए थे और बड़े मीडियाकर्मी इस हत्याकांड से नजर चुराकर देश की अर्थव्यवस्था और बेरोज़गारी पर बहस करते नजर आए। कुछ अख़बार में खबर छपी तो ऐसे जिससे लोगों में असंतोष की भावनायें और भी बढ़ गयी। ऐसे में सवाल उठता है हिंदुओ की हत्या पर ये दोहरा व्यव

क्या पकौड़े बेचना रोजगार नहीं ?

क्या पकौड़े बेचना रोजगार नहीं ? यह देखिये पूर्व वित्त मंत्री कैसे पकौड़े बेचने वाले की तुलना भीख माँगने वालने से कर रहे हैं, मतलब स्वरोजगार करना भीख मांगना हैं। श्रमिक वर्ग से इस कदर घृणा? चिदम्बरम जी इतनी बेरहमी से मेहनतकश आदमी की दिहाड़ी का मज़ाक बना रहे हैं, साहब यहाँ हर कोई कार्तिक चिदम्बरम और नेहरू खानदान का वंशज नहीं होता हैं! चांदी की चम्मच मुँह में लेकर पैदा होने वालो को मेहनतकश आदमी का छोटा काम मज़ाक ही लगता है, जिनकी एक पीढ़ी ने अकूत सम्पत्ति कमा के छोड़ दी वो सिर्फ राजनीति करते है और किसी रसूखदार के बच्चों को अपने पैरों पर खड़े हो स्वयं नौकरीं करते देखना उनके लिए आश्चर्य की ही बात होती है। खैर मामला यह हैं कि, मोदी जी के रोजगार से जुड़े हुए मुद्दे पर हालिया बयान से मीडिया में इस बात पर बहस छिड़ी हुई है की मोदी जी को रोजगार और आजीविका कमाने में अंतर नहीं पता? हकीकत में तो ये अंतर मुझे भी नहीं पता और मै पकौड़े बेचने, पोहे बेचने को भी रोजगार समझता हूँ | अगर हम ये समझते हैं की पकौड़े बेचना, चाय बेचना पोहे बेचना रोजगार नहीं है, तो हमें ये जानने की जरूरत है की बहुत सारी

चंदन गुप्ता की हत्या से व्यथित एक देशभक्त की चिट्ठी देश के नाम!

भारत माता की जय, हिंदुस्तान ज़िंदाबाद, वन्दे मातरम।। नोट: जिसकी भावनाएं आहत हुई हों Unfriend/Mute/Block कर दें, लेकिन आपको मेरी जान लेने का हक इस देश के संविधान ने अभी तक दिया नहीं है। "क्या अब हमें हमारा ही राष्ट्रध्वज फहराने की परमिशन लेनी पड़ेगी? क्या अब हम किसी इलाके में तिरंगा लेकर जाने में आजाद नहीं हैं? क्या हमारा संविधान हमें देश में किसी भी जगह घूमने और रहने की आजादी देने में असमर्थ है? यदि नहीं तो फिर इस बात का मनन होना चाहिए कि आखिर क्यों देश के अंदर ही मजहबी बस्तियों में भारतीय ध्वज की गरिमा को ठेस पहुँचाई जा रही है? आखिर क्यों देश का नागरिक "भारत माता की जय" बोलने पर मौत के घाट उतार दिया जाता है? प्रश्न शाश्वत हैं, लेकिन इसका उत्तरदायी है कौन? हमारा संविधान या हमारी सरकार ? यदि इनमें से कोई नहीं तो ज़रूरी है ये प्रश्न अपने आप से पूछे जाएं क्योंकि आज जो चन्दन गुप्ता के साथ हुआ कल को हम में से किसी के साथ भी हो सकता है।" लिखने-बोलने को मेरे पास भी बहुत कुछ है, लेकिन मैं शुध्द शाकाहारी हूँ, जानवरों तक से हिंसा पसन्द नहीं करता, पा

पद्मावत विवाद : जातियों में उलझे हिन्दू समाज का मजाक बनाता सिनेमा

मन आहत हैं, आहत किसी भंसाली की वजह से नही हैं। वह तो सामने खड़ा शत्रु है,  तकलीफ युद्ध मे सामने खड़ा दुश्मन कभी नहीं देता ...तकलीफ तो हमेशा "वो अपने" देते हैं जो साथ खड़े होकर अपनी नीयत बद रखते हैं, जलन की भावना रखते हैं। आहत मन की पीड़ा पढ़िए... स्त्री बच्चो पर हमला करने वाले लोग कभी राजपूत नही ही सकते, जब मुगलों के सेनापति अब्दुल रहीम खानखाना हल्दीघाटी के बाद के युद्धों में अपना जनानखाना पीछे छोड़कर भाग गए तो महाराणा प्रताप ने ससम्मान जनानखाना उन तक भिजवाया था। यहाँ तक कि अपने पुत्र अमर सिंह पर बहुत कुद्ध हुए और बोलेः "किसी स्त्री पर राजपूत हाथ उठाये, यह मैं सहन नहीं कर सकता। यह हमारे लिए डूब मरने की बात है।" वे तेज ज्वर में ही युद्ध-भूमि के उस स्थान पर पहुँच गये जहाँ खानखाना परिवार की महिलाएँ कैद थीं। राणा प्रताप, खानखाना के बेगम से विनीत स्वर में बोलेः "खानखाना मेरे विद्वान हैं और मेरे भाई के समान हैं। उनके रिश्ते से आप मेरी भाभी हैं। यद्यपि यह मस्तक आज तक किसी व्यक्ति के सामने नहीं झुका, परंतु मेरे पुत्र अमरसिंह ने आप लोगों को जो कैद कर लिया और उसके

जानिए क्यों हैं शर्मिंदा राजपूत समाज, क्या हम लेंगे इतिहास से सबक या फिर लगेगा हिन्दू समाज पर कलंक

पद्मावती फ़िल्म के बहाने देखने मे आ रहा हैं, कुछ लोग जो खुद को लिबरल कहते हैं वो जयचंद मानसिंह जैसे राजपूत राजाओं की वजह पूरे राजपूत समुदाय को अपमानित कर रहे  हैं, कुछ नेता तो हद पार करते हुए राजपूतो को अंग्रेजो को चमचा देशद्रोही ऐय्याश भी बता रहे हैं। खैर .. लिबरल छोड़िये खुद को राष्ट्रवादी बताने वाला एक तबका भी यही मानता हैं।लेकिन यह सब कहते हुए यह भूल जाते हैं कि चंद गद्दार तो हर समाज मे होते हैं लेकिन चंद गद्दारों की वजह से बहुसंख्यक राजपूत समाज के बलिदानों को भूल जाना कृतघ्नता हैं। जहाँ तक राजपूतो की बात हैं तो हम भी मानसिंह जयचंद जैसे राजपूतो की वजह से शर्मिंदा हैं और कही ना कही अपराधबोध हमारे अंदर भी रहता हैं, शौर्य और बलिदान के राजपुताना का इतिहास जयसिंह मानसिंह जैसे राजाओं की वजह से कलंकित हैं, सदियां बीत गयी पर लोग देश धर्म जाति के प्रति की गई इनकी गद्दारी नही भूले और ना जाने राजपूत समाज कब तक अपमान का दंश इन गद्दारों की वजह से झेलता रहेगा। शौर्य और बलिदान के स्वर्णिम इतिहास पर लगे ये दो काले धब्बे राजपूत समाज हजारो बलिदानों के बाद भी नही धो पाया, यहाँ तक कि आजाद भारत की

दिल्ली के अयोग्य विधायक, बेशर्म मुख्यमंत्री और फैल गया रायता!!

चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को लाभ के पद ( Office of Profit ) के मामले में दोषी पाते हुए अयोग्य करार दे दिया, जिस पर राष्ट्रपति जी ने भी अंतिम मोहर लगा दी है ,जिससे जाड़े के मौसम में दिल्ली की राजनीति में गर्माहट आ गयी है।  वैसे तो 66 विधायको वाली आम आदमी पार्टी की सरकार को 20 विधायको के अयोग्य होने के बाद भी किसी भी प्रकार का कोई खतरा नहीं है, परन्तु इस मामले से उनकी जबरदस्त किरकिरी हुई है। ये इस देश की विडम्बना ही है कि जिस पार्टी का उदय समाजसेवी  अन्ना हज़ारे के मंच से भ्रस्टाचार विरोधी आंदोलन से हुआ था आज उसी पार्टी के एक नहीं 2 नहीं बल्कि 20 विधायक लाभ के पद के मामले अयोग्य करार दे दिए गए है रेवड़ियां बांटने के चक्कर में  रायता फैल गया है। अब उस रायते को  समेटने के लिए आम आदमी पार्टी के ऑफिसियल ट्विटर हैंडल से ऐसे भ्रामक ट्वीट किये जा रहे है ताकि मासूम जनता को बरगलाया जा सके। पर ऐसा हमारे होते कहाँ संभव हैं, हम बतायेंगे आपको हर सच बस निवेदन यही हैं कि पोस्ट का लिंक अपने सभी मित्रो और सोशल मीडिया के हर प्लेटफार्म पर शेयर करे। ऐसा नहीं है कि office of prof

हज सब्सिडी के नाम पर चल रहा था धार्मिक भेदभाव

भारत सरकार ने एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए मुस्लिम तीर्थयात्रियों को दी जाने वाली हज सब्सिडी को समाप्त कर दिया। वैसे तो यह सब्सिडी आज़ादी के पूर्व से ही अंग्रेज़ी शासनकाल के समय से ही दी जा रही थी, परंतु 1959 में पंडित नेहरू की सरकार ने हज एक्ट बनाकर इस सब्सिडी का और विस्तार कर दिया था, उस हज एक्ट में सिर्फ सऊदी अरब ही नही बल्कि इराक ईरान सीरिया और जॉर्डन के भी मुस्लिम धार्मिक स्थलों की यात्रा के लिए तत्कालीन नेहरू सरकार ने सब्सिडी देने का प्रावधान बनाया गया था। गौरतलब है कि पंडित नेहरू धर्मनिपेक्षता के झंडाबरदार थे और उन्होंने गुजरात के सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए सरकारी मदद देने से इनकार कर दिया था, यहाँ तक कि तत्कालीन राष्ट्रपति बाबू राजेंद्र प्रसाद जी को को वहां ना जाने की सलाह दी थी, उनका मानना था कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और राष्ट्रपति के किसी मंदिर के कार्यक्रम में जाने से ग़लत संकेत जाएगा. हालांकि, डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने उनकी राय नहीं मानी। नेहरू ने ख़ुद को सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार और पुनर्निर्माण से अलग रखा था और सौराष्ट्र के मुख्यमंत्री को पत्र तक लिखा था

जज साहब का लोकतंत्र खतरे में

स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायधीशों ने शुक्रवार को मीडिया के सामने आकर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा की प्रशासनिक कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद चारों जजों ने एक चिट्ठी जारी की, जिसमें गंभीर आरोप लगाए गए हैं। जजों के मुताबिक यह चिट्ठी उन्होंने चीफ जस्टिस को लिखी थी। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को संबोधित 7 पन्नों के पत्र में जजों ने कुछ  मामलों की नियुक्तियों  को लेकर अपनी  नाराजगी जताई है। जजों का आरोप है कि चीफ जस्टिस की ओर से कुछ केस को चुनिंदा बेंचों और जजों को ही दिया जा रहा है। जजों ने लिखा है कि 1.हमें घोर दुख और चिंता है इसलिए लेटर लिख रहें है। यह सही होगा कि आपको लेटर के जरिये मामले को बताया जाय। हाल फिलहाल  में जो आदेश पारित किये उसका न्यायिक प्रक्रिया  पर दुष्प्रभाव हुआ है साथ ही चीफ जस्टिस के ऑफिस और हाई कोर्ट के प्रशासन पर सवाल उठा है। 2. यह जरूरी है कि उक्त सिद्धान्त का पालन हो और सीजेआई पर भी वह लागू है। सीजेआई स्वयं से उन मामलों में अथॉरिटी के तौर पर आदेश नह

जर्जर भारतीय न्याय व्यवस्था को सुधार की जरूरत

                                Photo Credit : Newindianexpress एक तरफ अमेरिका अपनी न्यायव्यवस्था को आधुनिक तकनीक की मदद से मशीनों से नवनिर्मित कर रहा है, जिसमें जजों की जगह रोबोट लेने वाले हैं। एक तरफ हम हैं जहाँ हमारी न्यायपालिका सबसे भष्ट्र हैं, जहाँ न्यायधीशों को एक पीढीनुमा तरीके से निर्वाचित किया जाता है, दूसरे व्यवसायों के मुकाबले अधिक छुट्टियां नसीब होती हैं। फलस्वरूप करोड़ों केस बिना सुनवाई के कोर्ट में सड़ते रहते हैं, तो कुछ केसों में अपराधी साफ साफ छूट जाते हैं। देश के नागरिकों के पास बोलने का अधिकार सिर्फ नाम भर का है, अगर आप अदालत के किसी निर्णय पर सवाल करेंगे तो आप अदालत की अवमानना के अपराध में जेल में डाल दिये जायेंगे। जबकि न्यायपालिका चाहे सलमान खान को बाइज्जत बरी कर दे, लालू को करोड़ो के घोटाले के फलस्वरूप केवल कुछ लाख रुपये का जुर्माना लगाकर एक दो साल की नाम मात्र की सजा दे, कश्मीर में पैलेट गन रुकवा दे, आम जनता सवाल नहीं उठा सकती। इन्हें दही हांडी, जलीकट्टू, होली दिवाली, थियेटर में राष्ट्रगान जैसे मुद्दे ज़रूरी लगते हैं लेकिन इन न्यायधीशों की कलमें देश के स