मन आहत हैं, आहत किसी भंसाली की वजह से नही हैं। वह तो सामने खड़ा शत्रु है, तकलीफ युद्ध मे सामने खड़ा दुश्मन कभी नहीं देता ...तकलीफ तो हमेशा "वो अपने" देते हैं जो साथ खड़े होकर अपनी नीयत बद रखते हैं, जलन की भावना रखते हैं।
आहत मन की पीड़ा पढ़िए...
स्त्री बच्चो पर हमला करने वाले लोग कभी राजपूत नही ही सकते, जब मुगलों के सेनापति अब्दुल रहीम खानखाना हल्दीघाटी के बाद के युद्धों में अपना जनानखाना पीछे छोड़कर भाग गए तो महाराणा प्रताप ने ससम्मान जनानखाना उन तक भिजवाया था। यहाँ तक कि अपने पुत्र अमर सिंह पर बहुत कुद्ध हुए और बोलेः "किसी स्त्री पर राजपूत हाथ उठाये, यह मैं सहन नहीं कर सकता। यह हमारे लिए डूब मरने की बात है।" वे तेज ज्वर में ही युद्ध-भूमि के उस स्थान पर पहुँच गये जहाँ खानखाना परिवार की महिलाएँ कैद थीं।
राणा प्रताप, खानखाना के बेगम से विनीत स्वर में बोलेः "खानखाना मेरे विद्वान हैं और मेरे भाई के समान हैं। उनके रिश्ते से आप मेरी भाभी हैं। यद्यपि यह मस्तक आज तक किसी व्यक्ति के सामने नहीं झुका, परंतु मेरे पुत्र अमरसिंह ने आप लोगों को जो कैद कर लिया और उसके इस व्यवहार से आपको जो कष्ट हुआ उसके लिए मैं माफी चाहता हूँ और आप लोगों को ससम्मान मुगल छावनी में पहुँचाने का वचन देता हूँ"। राजपूत उसी परम्परा वाले हैं और जो ऐसा नही करते वो राजपूत नही "मिक्स ब्लड" होंगे। अब रही गुरुग्राम में स्कूल बस पर हमले की तो, बस ड्राइवर का इंटरव्यू यहाँ पर हैं .. सुन लीजिए वह कुछ अलग ही कहानी बता रहा हैं।
ये देखिये गुरुग्राम स्कूल बस की तोड़फोड़ में पुलिस की इन्वेस्टिगेशन
एक यह वीडियो भी आई हैं जहाँ राजपूत आंदोलनकारी एम्बुलेंस को रास्ता दे रहे हैं।
राजपूतों के नाम पर कोई भी बलवा काट जाये तो क्या उसका बिल आप पूरे राजपूत समुदाय के नाम से फाड़ देंगे?While Protest for #BanPadmavat when Karni Sena Spotted one Ambulance immediately they cleaned the whole Road for safe Passage of Patients.— Akshay Singh (@Akshaysinghel) January 25, 2018
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दूसरी बात, समस्या यह नही हैं कि आज राजपूतों को अपमानित करती फ़िल्म बनी.. संजय लीला भंसाली इसके पहले भगवान राम और रामलीला को डिफेम करने की कोशिश कर चुका हैं, महान पेशवा बाजीराव जो ब्राह्मण थे उन्होंने अपना पूरा जीवन युद्ध भूमि में काटा, 40 युद्ध लड़े कभी पराजय का मुँह नही देखा क्या दक्षिण क्या पूरब शौर्य ऐसा था कि जिस तरफ से पेशवा निकल पड़ते थे दुश्मन सहम जाते थे, 24 घण्टो में महाराष्ट्र से चलकर दिल्ली तक पहुंचे घोड़ो से और दिल्ली में मुगलों की राजधानी 3 दिन तक बंधक बनाकर रखी .. क्या शौर्यवान रहे होंगे? इतिहास तथा राजनीति के एक विद्वान् सर रिचर्ड टेंपिल ने बाजीराव की महत्ता का यथार्थ अनुमान एक वाक्य समूह में किया है, जिससे उसका असीम उत्साह फूट-फूट कर निकल रहा है। वह लिखता है - "सवार के रूप में बाजीराव को कोई भी मात नहीं दे सकता था। युद्ध में वह सदैव अग्रगामी रहता था। यदि कार्य दुस्साध्य होता तो वह सदैव अग्नि-वर्षा का सामना करने को उत्सुक रहता। वह कभी थकता न था। उसे अपने सिपाहियों के साथ दुःख-सुख उठाने में बड़ा आनंद आता था। विरोधी मुसलमानों और राजनीतिक क्षितिज पर नवोदित यूरोपीय सत्ताओं के विरुद्ध राष्ट्रीय उद्योगों में सफलता प्राप्त करने की प्रेरणा उसे हिंदुओं के विश्वास और श्रद्धा में सदैव मिलती रही। वह उस समय तक जीवित रहा जब तक अरब सागर से बंगाल की खाड़ी तक संपूर्ण भारतीय महाद्वीप पर मराठों का भय व्याप्त न हो गया। उसकी मृत्यु डेरे में हुई, जिसमें वह अपने सिपाहियों के साथ आजीवन रहा। युद्धकर्ता पेशवा के रूप में तथा हिंदू शक्ति के अवतार के रूप में मराठे उसका स्मरण करते हैं"। पर हाय रे विधाता जिस बाहुबली पेशवा को कोई रण में नही हरा पाया उसे उसके अपनो ने हरा दिया, भंसाली ने उन्हें मजनू बनाकर दिखाया
और हम कुछ ना कर सकें।
यह मात्र शुरुआत हैं, वो हिन्दुओ की हर जाति को डिफेम करते फ़िल्म बनाएगा, मुरथल रेप पर जाटों पर फ़िल्म बनाएगा और बहादुर जाटों को बलात्कारी बतायेगा.. खाप पंचायतो पर पहले ही फिल्में बनाकर जाटों को स्त्रीविरोधी और कन्या भ्रूण के हत्यारे बताया ही जा चुका हैं।
बॉलीवुड आपकी औकात परख रहा हैं। इसलिए खुश मत होइए आज हमारी बारी थी कल आप हमारी जगह खड़े होंगे और आपके लोग पत्थर फेंक रहे होंगे बसों पर और हम बोलेंगे की "जो पत्थर फेंके उसकी जात फलानी", क्योकि इस देश मे बिना सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाए कोई आंदोलन आज तक हुआ ही नही हैं।
राजपूत पिछले 12 महीने से आंदोलनरत हैं पर कही उन्होंने हिंसा नही की राजस्थान जहाँ सबसे मजबूत हैं वहाँ से हिंसा की एक भी खबर नही हैं खबर हैं तो गुरुग्राम की हैं जहाँ राजपूतो का वजूद ही नही हैं।
कुछ लोग राजपूतों को बदनाम कर रहे है जयचंद के नाम का ताना मार रहे हैं जैसे उनके खुद के समाज ने बड़ी लड़ाईयां लड़ी मुगलो से उनसे सिर्फ इतना ही कहना हैं भाई अपना भी देख लो, तुम्हारे में भी कई गद्दार होंगे.. मेरा मुँह क्यो खुलवाते हो, आरक्षण के लिए हरियाणा गुजरात राजस्थान आपने भी जलाया था वह भी याद कर लो, अभी जिग्नेश मेवानी के उकसाने पर महाराष्ट्र फूँकने पर उतरे आये थे, पेशवाओ के खिलाफ अंग्रेजो का साथ दिया था। इसलिए कहती हूँ..
"आइना जब भी उठाया करो,
पहले देखो,फिर दिखाया करो?"
ऐसा ना हो कि पलट कर राजपूत आपका इतिहास पूछ लें और बताने के लिए आपके पास कुछ ना रहे, ऐसी शर्मिंदगी से बचिये। सनद रहे राजपूत आरक्षण मांगने सड़क पर नही उतरे हैं वो सड़क पर अपने सम्मान के लिए उतरे हैं, क्या उन्हें अपने सम्मान की लड़ाई लड़ने का भी हक़ नही?
यहाँ तक की जब सरकार ने राजघरानो की संपत्ति छीनी, राजघरानो को बेइज्जत किया, राजपूतों की जागीरदारी छीनी, राजपूतों की जमीने समाज के अन्य वर्गों को यूँ ही मुफ्त में बिना किसी हर्जाने या मुआवजे दिए ही बाँट दीं। तब भी राजपूत समाज ने न तो कोई आंदोलन किया न सड़कों पर उतर कर सरकार की संपत्ति या प्राइवेट संपत्ति को कोई हानि पहुँचाई अथवा न ही बहिन बेटियों की इज्जत आबरू से खेला न ही लूट पाट की न ही कोई उत्पात ही मचाया था।
और सबसे ज्यादा आहत करने वाली बात यह हैं कि, कुछ लोग राजपूतो पर ताने कस रहे हैं और कह रहे हैं कि हम हिंदुत्व के लिए राजपूतो के साथ हैं... ऐसे दोस्तो से तो दुश्मन भले हैं, समर्थन मांगने हम नही आये हैं और जरूरत नही ऐसे लोगो के समर्थन की जो शर्तो पर हो, ताने मारकर हो.. एहसान जता कर हो।
देखिये यह महोदय क्या कह रहे हैं ऐसे ताने मारकर राजपूतों का समर्थन करेंगे, भाई इतना बड़ा त्याग ना करो जाओ देख आओ पदमावत राजपूत बुरा नही मानेगा।
देश की अन्य जातियों ने खुलेदिल से राजपूतो का साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ा होता तो आज देश का इतिहास ही कुछ और होता ..खैर वो राजपूत हैं सदियों से अकेले लड़ते आये हैं और आज भी खुद के लिए लड़ लेंगे, जरूरत नही उन्हें किसी के "सशर्त समर्थन" की।
अफ़सोस जनक रवैया सिनेमा का..
जवाब देंहटाएंअवंतिका जी,ये हिन्दुओ का दुर्भाग्य है कि वो जाति से ऊपर उठकर नही देखता है।हम ये कभी नही सोचते की उंगलियां अलग 2 नाम व् काम के होते भी अपनी छोटी बड़ी आकार को भूलकर के जरूरत होने पर मुठी और ज्यादा आवश्यकता पड़ने पर मुक्का का रूप धारन कर लेती हैं। नेक तो बनो, पर एक जरूर बनो,नही तो आने वाली पीढियां इतनी भी नही बचेंगी कि हम हिंदुओं को डायनासोर की तरह को जुरासिक पार्क जैसी फिल्मों में विलुप्त प्राणी के रूप में रूप में भी दुनियां को दिखा सकेंगी।
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