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जानिए क्यों हैं शर्मिंदा राजपूत समाज, क्या हम लेंगे इतिहास से सबक या फिर लगेगा हिन्दू समाज पर कलंक

पद्मावती फ़िल्म के बहाने देखने मे आ रहा हैं, कुछ लोग जो खुद को लिबरल कहते हैं वो जयचंद मानसिंह जैसे राजपूत राजाओं की वजह पूरे राजपूत समुदाय को अपमानित कर रहे  हैं, कुछ नेता तो हद पार करते हुए राजपूतो को अंग्रेजो को चमचा देशद्रोही ऐय्याश भी बता रहे हैं। खैर .. लिबरल छोड़िये खुद को राष्ट्रवादी बताने वाला एक तबका भी यही मानता हैं।लेकिन यह सब कहते हुए यह भूल जाते हैं कि चंद गद्दार तो हर समाज मे होते हैं लेकिन चंद गद्दारों की वजह से बहुसंख्यक राजपूत समाज के बलिदानों को भूल जाना कृतघ्नता हैं।

जहाँ तक राजपूतो की बात हैं तो हम भी मानसिंह जयचंद जैसे राजपूतो की वजह से शर्मिंदा हैं और कही ना कही अपराधबोध हमारे अंदर भी रहता हैं, शौर्य और बलिदान के राजपुताना का इतिहास जयसिंह मानसिंह जैसे राजाओं की वजह से कलंकित हैं, सदियां बीत गयी पर लोग देश धर्म जाति के प्रति की गई इनकी गद्दारी नही भूले और ना जाने राजपूत समाज कब तक अपमान का दंश इन गद्दारों की वजह से झेलता रहेगा। शौर्य और बलिदान के स्वर्णिम इतिहास पर लगे ये दो काले धब्बे राजपूत समाज हजारो बलिदानों के बाद भी नही धो पाया, यहाँ तक कि आजाद भारत की तरफ से युद्धों में लड़ते हुए सर्वाधिक परमवीर चक्र लाने के बाद भी राजपूत समाज के लोग यह काले धब्बे नही धो पाए।

खैर यह बात तो इतिहास की हैं, हम वर्तमान की बात करते हैं...

आपको याद होगा कि कुछ साल पहले कैराना बहुत चर्चा में था, हिन्दुओ का कैराना से लगातार पलायन हो रहा था यहाँ तक कि कैराना को हिन्दुओ के लिए देश का दूसरा कश्मीर बताया जा रहा था। वसीम काला और मुकीम काला दो भाई इस पलायन के मुख्य जिम्मेदार थे और पुलिस प्रशासन इनके सामने असहाय हुआ पड़ा था सारा प्रशासन हाथ पर हाथ धरे मूक बनकर देख रहा था, सिर्फ कैराना ही क्यो पूरे पश्चिमी उत्तरप्रदेश ने इनकी दहशत इस कदर कायम थी कि जिनके ऊपर इनकी नजर उठ जाती वह रातोंरात घर छोड़कर परिवार लेकर भाग जाता .. बहु बेटियों की इज्ज़त खतरे में पड़ गयी थी।

देखिये कैराना का जनगणना आंकड़ा 
2001 -  हिन्दू 52 % मुस्लिम 48 %
2011 - हिन्दू 15  % मुस्लिम 85% 
2016 अनुमान - हिन्दू 8 % मुस्लिम 92 % 

लेकिन सत्ता बदली योगी आदित्यनाथ जी प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और सारी तस्वीर बदल गयी।

वसीम काला को पुलिस इनकाउंटर में ढ़ेर कर दिया गया, मुकीम काला को घायल अवस्था मे जेल भेजा गया और गैंग के अधिकतर सदस्य यूपी छोड़कर भाग खड़े हुए और जो नही भागे वो या तो मारे गए या फिर जेल में हैं। ताजा खबर यह हैं कि मुकीम काला जेल में इतनी दहशत में हैं कि उसने मांग की हैं उसे जेल से अदालत पेशी पर हथकड़ी बेड़ी पहनाकर ले जाया जाए क्योकि उसे खुद के इनकाउंटर का डर हैं। कैराना आज आतंक से पूरी तरह मुक्त हैं।


सिर्फ मुजफ्फरनगर ही क्यों पूरे प्रदेश में पुलिस की कार्यप्रणाली में फर्क दिखने लगा है, पिछले 10 महीने में ही पुलिस ने तकरीबन 1200 एनकाउंटर किये हैं, जिनमें 1100 इनामी अपराधियों को गिरफ्तार किया गया हैं, बड़े बड़े अपराधी प्रदेश छोड़कर भाग खड़े हुए हैं।
यूपी में एक बार फिर कानून का राज वापस लौटने लगा हैं जंगलराज से मुक्ति मिल रही हैं। शोहदों ने यूपी में महिलाओ लड़कियों का दिन में सड़क पर चलना दूभर कर दिया था, हजारो लड़कियां छेड़छाड़ से परेशान होकर स्कूल छोड़ घर बैठ गयी थी लेकिन योगी सरकार ने ऐंटी रोमियो स्क्वायड का गठन करके यूपी की बालिकाओं को एहसाह करा दिया कि उनकी तरफ आंख उठाकर देखने वालों की अब खैर नही हैं।

लेकिन इतिहास एक बार फिर खुद को दोहरा रहा हैं, आज फिर कुछ लोग मानसिंह जयचंद के रूप में फिर हमारे सामने खड़े हो रहे हैं, ऊपर जो कहानी बताई हैं यह उन्हें ही ताकीद करने के लिए हैं कि जब बलिदानों का स्वर्णिम इतिहास लिए राजपूत, जयचंद और मानसिंह जैसे काले धब्बे नही धो पाए तो आप यह गद्दारी का काला धब्बा कैसे धो पाओगे, आज योगी जी का विरोध करने वाले उनके खिलाफ बोलने वाले फिर जयचंद की भूमिका में हैं, यह योगी जी हैं जो धार्मिक तुष्टिकरण के ऊपर उठकर आम जनता की आवाज बन कर बोलते हैं, और कठोर से कठोर फैसले आम जनता के हक में लेते हुए यह कभी नही सोचते कि इस फैसले का उनके वोटबैंक पर क्या असर पड़ेगा?

योगी जी की हर बात पर बिना मतलब की आलोचना हिन्दू समाज को बहुत महँगी पड़ सकती हैं, सनद रहे जब इतिहास आज तक जयचंद मानसिंह को नही भुला तो वह आपको भी नही भूलेगा, आपकी भी आने वाली नस्लें राजपूतो की तरह ही शर्मिंदा और अपराधबोध से घिरी रहेगी... याद रखियेगा।

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टिप्पणियाँ

  1. दोगलेलोग तो सभी जगह पाए जाते है .. क्यू की बहुत पुराणी कहाबत है कुत्ते को घी हजम नहीं होता . जिसे अपराध करने की आदत उसे अपराध मुक्त पसंद नहीं आएगा तो कुछ ना कुछ बोलेगा ही ना

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  2. जो बिना सोचे समझे विचारे आलोचना करेगा, उसे भविष्य माफ नही करने वाला।

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  3. पदमावत_विवाद_और_अभिव्यक्ति

    22 साल के अनुराग कश्यप नें एक फिल्म बनायी थी "ब्लैक फ्राइडे", जो बंबई बम धमाकों के असल किरदारों पर, बंबई बम धमाके जिनके किरदार दाऊद, याकूब और कंपनी थे। इसे ग्रांड ज्यूरी प्राईज दिया गया Indian film festival of los Angels द्वारा। कहते हैं कि हुसैन जैदी (जो कि खुद मुस्लिम हैं) ने तीन साल दिन रात एक कर के इस सारे प्रकरण पर रिसर्च करी थी, तब जाकर उन्होंने फ़िल्म की कहानी लिखी। पर हाय, फिल्म पर बांबे हाईकोर्ट द्वारा 2004 में प्रतिबंध लगाया गया, कारण.?? एक समुदाय विशेष की भावनाओं को ठेस। आतंकवादियों को आतंकवादी कहना भावनाओं को ठेस पहुंचाता है, क्यों.?? कारण एक ही है, कुछ लोग मानते थे उन्होंने सबाब का काम करा, खैर...

    टॉम हैंक्स के पूरे फिल्मी करियर में दो फिल्में सबसे यादगार हैं, उनके बेमिशाल अभिनय की प्रतिमा। सेविंग प्राइवेट रेयान और द विंची कोड... 2006 में आयी दूसरी फिल्म "द विंची कोड" पर भारत के चार राज्यों नागालैंड, पंजाब, तमिलनाडु और गोवा में बैंन लगा दिया गया। कारण यह पिक्चर ईसाई (कैथोलिक समाज) की भावनाओं को ठेस पंहुचाती है। ये तो आधिकारिक बैन था, सरकार ने पायरेटेड सीडी भी ब्लाक कर दी थी, मुझे याद है मैं तब b. sc में पडता था, और फिल्म की एक पायरेटेड सीडी ढूंढने में पूरा साल लग गया था।

    एक फिल्म बनी थी 2005 में Sins, बैन कर दी गयी। कारण कहानी एक इसाई(Priest) द्वारा महिलाओं का शोषण दिखाया गया था। तब इससे भी भावनाओं को काफी ठेस पहुंची।

    आप कभी गूगल पर सर्च करना, "best song of kishore kumar" और हर एक juke box में एक गाना जरूर आपको मिलेगा.... "तेरे बिना जिंदगी से कोई, शिकवा, तो नंही", संजीव कुमार और किशोर दा के कैरियर की माईलस्टोन मूवी "आंधी" को कांग्रेस सरकार द्वारा बैन कर दिया था। ये गाना निर्धारित तिथि से 26 हफ्ते यानी 182 दिन बाद सुना लोगों ने, पूरे 182 दिन बाद। कारण इस पिक्चर को कांग्रेस को ठेस देने वाला बताया गया था।

    याद है 2013 में आयी पिक्चर "विश्वरूपम" ये मामला थोडा सा अलग है, कोर्ट और सेंसर बोर्ड ने रिलीज की अनुमति दे दी थी। पर जयललिता सरकार ने इसे मुस्लिम विरोधी मानते हुए तमिलनाडु में बैन कर दिया था। "विश्वरूपम" की कहानी का खैर भारत से कुछ लेना देना भी नहीं था, अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा पीडित लोगों की कहानी ने तमिलनाडु के कुछ समुदाय विशेष के लोगों को बहुत ठेस पंहुचायी। कहते हैं इस फिल्म को बनाने में मशहूर अभिनेता कमल हसन ने अपना घर तक गिरवी रखा था। मूल फिल्म चूंकि तमिल में थी, तो भावनाओं को दुखाने की उनको महंगी कीमत चुकानी पड़ी। वो तब सार्वजनिक रुप से भारत छोडने तक की घोषणा कर चुके थे।

    तस्लीमा नसरीन पर आज भी प. बंगाल में बैन है। कारण उन्होंने बांग्लादेश में मुसलमानों द्वारा हिंदुओं के शोषण होने पर एक किताब लिखी थी "लज्जा", लेकिन उससे भावनायें आहत होने लगी भारतीय मुसलमानों की.🤔

    The Stanic Verse (शैतानी आयतें), भारतीय मूल के बिट्रिश लेखक सलमान रुश्दी की इस किताब ने दुनिया भर में हंगामा मचाया। इस किताब को इस्लाम बिरोधी मानते हुए तत्कालीन राजीव गांधी की कांग्रेस सरकार ने इस किताब को सम्पूर्ण भारत में प्रतिबंधित कर दिया। यहां तक कि इस किताब का जापानी में अनुवाद करने वाले लेखक 'होतरसी ईरागसी' की हत्या कर दी गयी। इस किताब के इटावली ट्रांसलेटर और नार्वे के प्रकाशक पर भी जानलेवा हमले हुए।

    तो अगर अभी आपको फिल्म #पद्मावत को बैन कराने के लिए हो रहे विरोध पर बुरा सा कुछ लग रहा है तो यकीन मानिए, ये बुरा तो आपको बहुत पहले ही मानना चाहिए था, तब ही इस बात की सार्थकता थी.🤔

    जवाब देंहटाएं

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