सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

दिल्ली के अयोग्य विधायक, बेशर्म मुख्यमंत्री और फैल गया रायता!!


चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को लाभ के पद ( Office of Profit ) के मामले में दोषी पाते हुए अयोग्य करार दे दिया, जिस पर राष्ट्रपति जी ने भी अंतिम मोहर लगा दी है ,जिससे जाड़े के मौसम में दिल्ली की राजनीति में गर्माहट आ गयी है।  वैसे तो 66 विधायको वाली आम आदमी पार्टी की सरकार को 20 विधायको के अयोग्य होने के बाद भी किसी भी प्रकार का कोई खतरा नहीं है, परन्तु इस मामले से उनकी जबरदस्त किरकिरी हुई है।

ये इस देश की विडम्बना ही है कि जिस पार्टी का उदय समाजसेवी  अन्ना हज़ारे के मंच से भ्रस्टाचार विरोधी आंदोलन से हुआ था आज उसी पार्टी के एक नहीं 2 नहीं बल्कि 20 विधायक लाभ के पद के मामले अयोग्य करार दे दिए गए है
रेवड़ियां बांटने के चक्कर में  रायता फैल गया है। अब उस रायते को  समेटने के लिए आम आदमी पार्टी के ऑफिसियल ट्विटर हैंडल से ऐसे भ्रामक ट्वीट किये जा रहे है ताकि मासूम जनता को बरगलाया जा सके।


पर ऐसा हमारे होते कहाँ संभव हैं, हम बतायेंगे आपको हर सच बस निवेदन यही हैं कि पोस्ट का लिंक अपने सभी मित्रो और सोशल मीडिया के हर प्लेटफार्म पर शेयर करे।

ऐसा नहीं है कि office of profit का ये पहला मामला है देश में, परंतु एक साथ 20 विधायको का disqualification अपने आप में एक विरली घटना है।

सबसे पहले हम आपको बताते है कि आखिर ये office of profit क्या है

भारत के संविधान में इसे लेकर स्पष्ट व्याख्या है। संविधान के अनुच्छेद 102 (1) A के तहत सांसद या विधायक ऐसे किसी अन्य पद पर नहीं हो सकते जहां वेतन, भत्ते या अन्य दूसरी तरह के फायदे मिलते हों।

इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 191 (1) (A) और जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 9 (A) के तहत भी सांसदों और विधायकों को अन्य पद लेने से रोकने का प्रावधान है।
सबसे पहले हम आपको बताते है कि office of profit आखिर है क्या?

ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के मामले को  चार उदाहरणों से समझ सकते हैं। पहला यह कि सरकार नियुक्ति को नियंत्रित करती है, व्यक्तियों को हटाने या उनके परफॉर्मेंस को नियंत्रित करती है, दूसरा अगर इस पद के साथ तनख्वाह या पारिश्रमिक जुड़ा हो तो भी यह लाभ के पद का मामला बनता है। तीसरा अगर जिस जगह यह नियुक्ति हुई है वहां सरकार की ऐसी ताकत हो जिसमें फंड रिलीज करना, जमीन का आवंटन और लाइसेंस देना शामिल हो और चौथा अगर पद ऐसा हो कि वह किसी के निर्णय को प्रभावित कर सकता है तो उसे भी लाभ का पद माना जाता है।

हमेशा की तरह आम आदमी पार्टी ने चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर सवाल उठाना शुरू कर दिया है ,उनका कहना है कि देश मे बीजेपी की सरकार है और मुख्य चुनाव आयुक्त ज्योति ने बीजेपी के कहने पर 20 विधायको को अयोग्य घोषित किया।

यहाँ यह गौरतलब है कि गुजरात राज्य सभा चुनाव में इसी चुनाव आयोग ने दो विधायकों के वोट कैंसिल किये गए थे, जिससे बीजेपी की हार और कांग्रेसी उम्मीदवार  अहमद पटेल को जीत हासिल हुई थी।

2006 में देश मे UPA की सरकार थी और तब office of profit के मामले में कांग्रेसी अध्यक्षा सोनिया गांधी को दोषी पाकर चुनाव आयोग ने उन्हें डिसक्वालिफाई कर दिया था और उन्हें फिर चुनाव में उतरना पड़ा था।

ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में सपा की जया बच्चन, बीजेपी के बजरंग बहादुर सिंह और बसपा के उमाशंकर सिंह भी डिसक्वालिफाई हो चुके है।

दूसरा आरोप है कि चुनाव आयोग में उन्हें अपना मत रखने का समय नहीं दिया ,जो कि सरासर गलत है .. ये है तारीखें जब इस केस की सुनवाई हुई और कम से कम दो बार AAP विधायकों को अपना पक्ष रखने को चुनाव आयोग ने अनुमति दी थी पर सत्ता के नशे में डूबी पार्टी ने जवाब देना जरूरी नहीं समझा।

AAP विधायकों के अयोग्यता के मामले पूरा क्रेडिट जाता है सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत पटेल को, जिस उम्र तक व्यक्ति 1 बार विधायक बन पाता है उस उम्र में प्रशांत पटेल ने 20 विधायको के विकट गिरा दिए।


30 वर्षीय प्रशांत पटेल सुप्रीम कोर्ट के वकील है और इन्ही की जनहित याचिका पर AAP के 21 विधायकों पर ये पूरा मामला बना। कहावत है कि अकेला  चना क्या भाड़ फोड़ सकता है ..प्रशांत  पटेल ने इसको गलत साबित किया और ये भी बता दिया  कि धरने प्रदर्शन आगजनी तोड़फोड़ की बजाय किस तरह से आप संविधान के दायरे में रह कर बड़ा बदलाव ला सकते है।

राष्ट्रपति द्वारा रविवार को चुनाव आयोग के फैसले पर मोहर लगाने से भी AAP नाराज़ है, उनका कहना है इतनी जल्दी क्या थी जो रविवार को फैसला लिया गया?

ये वही लोग है जो मामले का जल्दी निपटारा करने fast track कोर्ट बनाने की बात किया करते थे और स्वयं 2 वर्षो से मामले को लटका रहे थे, खैर बकरे  की  अम्मा कब तक खैर मनाती ..



जो अरविंद केजरीवाल हर दूसरे मुद्द्दे पर बीजेपी कांग्रेस का इस्तीफा मांगते थे, अब क्या उन्हें नैतिकता के आधार पर इस्तीफा नहीं देना चाहिए? सच तो यह हैं कि आदर्शवाद की बात करना जितना आसान हैं उस पर चलना उतना ही मुश्किल हैं। आम आदमी पार्टी 6 वर्षो में नैतिकता के माउंट एवरेस्ट से बेशर्मी के dead sea तक पहुच चुकी है।

अब केजरीवाल जी की बेशर्मी की पराकाष्ठा देखिये

मतलब साफ हैं, की इनकी चोरी इनकी पकड़ी गई हैं पर इन्हें गलती नही माननी हैं पछतावा तक नही हैं, ट्वीट की भाषा देखिये बिल्कुल साफ परिलक्षित हो रहा हैं इनका मतलब "हमे तो 67 सीट मिली हैं .. घण्टा फर्क नही पड़ता हमें"

उम्मीद है कि जब इन 20 सीटों पर उपचुनाव होगा तो दिल्ली की जनता अपने विवेक का परिचय देगी यह देखना दिलचस्प रहेगा कि काठ की हांड़ी दुबारा चढ़ाने के लिए केजरीवाल एंड कंपनी अब क्या जुगत भिड़ाती है?

अंत मे हम आपको छोड़ जाते है 2 quote के साथ जो आज अखबार में कुछ इस तरह छप गये की वो अरविंद केजरीवाल  का राजनैतिक जीवन का परिचय बन गए।

अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इस पोस्ट का लिंक फेसबुक, ट्विटर , व्हाट्सएप आदि सोशल साइट्स पर जरूर शेयर करे।


लेखक से ट्विटर पर मिले - अंकुर मिश्रा (@ankur9329)

                                     Awantika‏ Singh (@SinghAwantika)




टिप्पणियाँ

  1. केजरीवाल राजनीति बदलने आये थे सो बदल दी। वो इसे अबतक के निम्नतर स्तर तक ले पहुंचे हैं, आनेवाले दिनों में और भी नीचे गिरेंगे।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. लग तो ऐसे ही रहा है सर. देखना है कि अब और कितने नीचे जा सकते है

      हटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जानिए कैसे एससी-एसटी एक्ट कानून की आड़ में हो रहा मानवाधिकारो का हनन

सुप्रीम कोर्ट के एससी-एसटी एक्ट पर दिए गए फैसले के खिलाफ दलित संगठनों ने भारत बंद बुला कर पूरे देश भर में हिंसक प्रदर्शन किया जिसमें दर्जन भर लोगो की जान गई और सरकार की अरबों रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ। अब सवाल ये उठता है कि आखिर एससी/एसटी ऐक्ट को लेकर पूरा विवाद है  क्या जिस पर इतना बवाल मचा है, चलिए जानते हैं इस बारे में विस्तार से.. अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम,(The Scheduled Castes and Tribes (Prevention of Atrocities) Act, 1989 ) को 11 सितम्बर 1989 में भारतीय संसद द्वारा पारित किया था, जिसे 30 जनवरी 1990 से सारे भारत ( जम्मू-कश्मीर को छोड़कर) में लागू किया गया। यह अधिनियम उस प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होता हैं जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का सदस्य नही हैं तथा वह व्यक्ति इस वर्ग के सदस्यों का उत्पीड़न करता हैं। इस अधिनियम मे 5 अध्याय एवं 23 धाराएं हैं। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को महाराष्ट्र के एक मामले को लेकर एससी एसटी एक्ट में नई गाइडलाइन जारी की थी, जिस

Selective Journalism का पर्दाफाश

लोकतंत्र के चार स्तंभ होते हैं कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका और मीडिया जो इस देश को लोकतान्त्रिक तरीके से चलाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। कार्यपालिका जवाबदेह होती है विधायिका और जनता के प्रति और साथ ही दोनों न्यायपालिका के प्रति भी जवाबदेह होते है। इन तीनो की जवाबदेही भारतीय संविधान के हिसाब से तय है, बस मीडिया के लिए कोई कानून नहीं है, अगर है तो इतने मज़बूत नहीं की जरूरत पड़ने पर लगाम लगाईं जा सकें। 90 के दशक तक हमारे देश में सिर्फ प्रिंट मीडिया था, फिर आया सेटेलाइट टेलीविजन का दौर, मनोरंजन खेलकूद मूवी और न्यूज़ चैनल की बाढ़ आ गयी. आज  देश में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय चैनल को मिला के कुल 400 से अधिक न्यूज़ चैनल मौजूद है जो टीवी के माध्यम से 24 ×7 आपके ड्राइंग रूम और बैडरूम तक पहुँच रहे हैं। आपको याद होगा की स्कूल में हम सब ने एक निबन्ध पढ़ा था "विज्ञान के चमत्कार" ...चमत्कार बताते बताते आखिर में विज्ञान के अभिशाप भी बताए जाते है. ठीक उसी प्रकार जनता को संपूर्ण जगत की जानकारी देने और उन्हें जागरूक करने के साथ साथ मीडिया लोगो में डर भय अविश्वास और ख़ास विचारधार

सुशासन का खोखलापन, बिहार में प्रताड़ित होते ईमानदार अधिकारी

" सच्चाई और ईमानदारी के पथ पर चलने वाले लोगो को अक्सर ठोकरे खाने को मिलती है , अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है लेकिन अंत में जीत उन्ही की होती है। " यह वह ज्ञान है जो वास्तविक दुनिया में कम और किताबो में ज्यादा दिखता है, लोगो मुँह से बोलते जरूर है लेकिन वास्तविक तौर पर चरित्र में इसका अनुसरण करने वाले कम ही दिखते है। बिहार में ईमानदार अफसर वरदान की तरह होते हैं, आम जनता में हीरो यही होते है क्योकि यहाँ नेताओ का काम सदियों से लोगो को बस लूटना रहा है और उनसे बिहार की आम जनता को वैसे भी कोई उम्मीद नहीं रहती। आम जनता हो या एक ईमानदार अफसर, दोनों का जीवन बिहार में हर तरह से संघर्षपूर्ण रहता है। उनको परेशान करने वाले बस अपराधी ही नहीं बल्कि स्थानीय नेता और विभागीय अधिकारी भी होते है। गरीबी, पिछड़ापन और आपराधिक प्रवृत्ति लोगो द्वारा जनता का उत्पीड़न आपको हर तरफ देखने को मिल जायेगा। हालात ऐसे हैं कि लोग यहाँ थाने से बाहर अपने विवाद सुलझाने के लिए इन छुटभैये गुंडों को पैसे देते हैं जो जज बनकर लोगो का मामला सुलझाते है, क्योकि वो दरोगा के रिश्वतख