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Selective Journalism का पर्दाफाश

लोकतंत्र के चार स्तंभ होते हैं कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका और मीडिया जो इस देश को लोकतान्त्रिक तरीके से चलाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। कार्यपालिका जवाबदेह होती है विधायिका और जनता के प्रति और साथ ही दोनों न्यायपालिका के प्रति भी जवाबदेह होते है। इन तीनो की जवाबदेही भारतीय संविधान के हिसाब से तय है, बस मीडिया के लिए कोई कानून नहीं है, अगर है तो इतने मज़बूत नहीं की जरूरत पड़ने पर लगाम लगाईं जा सकें।

90 के दशक तक हमारे देश में सिर्फ प्रिंट मीडिया था, फिर आया सेटेलाइट टेलीविजन का दौर, मनोरंजन खेलकूद मूवी और न्यूज़ चैनल की बाढ़ आ गयी. आज  देश में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय चैनल को मिला के कुल 400 से अधिक न्यूज़ चैनल मौजूद है जो टीवी के माध्यम से 24 ×7 आपके ड्राइंग रूम और बैडरूम तक पहुँच रहे हैं।

आपको याद होगा की स्कूल में हम सब ने एक निबन्ध पढ़ा था "विज्ञान के चमत्कार" ...चमत्कार बताते बताते आखिर में विज्ञान के अभिशाप भी बताए जाते है. ठीक उसी प्रकार जनता को संपूर्ण जगत की जानकारी देने और उन्हें जागरूक करने के साथ साथ मीडिया लोगो में डर भय अविश्वास और ख़ास विचारधारा के प्रति एक योजनाबद्ध तरीके से नफरत का भाव पैदा करने की कोशिश कर रहा हैं।

हम यह बात पूरी गंभीरता और जिम्मेदारी के साथ कह रहे हैं, हम आपको साक्ष्य के साथ बताएंगे कि कैसे भारतीय मीडिया एक पक्षीय राय रखता है और किस प्रकार से एक ख़ास विचारधारा जो की वामपंथ है उसको लोगो पर थोपना चाहता हैं।

आपको मालूम होगा की कुछ दिनों पूर्व मंत्रिमंडल फेरबदल हुआ था, तीन दिन तक मीडिया हमको अपने "सूत्रों" के हवाले से  जानकारी देता रहा की फलाना मंत्री हटाया जाने वाले और ढिकाना नेता मंत्री बनाया जाने वाला हैं, पर अंततः जब फेरबदल हुआ तो मीडिया की सूत्रों की कैसे धज्जियां उड़ी उसके हम सब गवाह हैं।

लेकिन एक वो समय भी था जब मीडिया सिर्फ सूत्रों से खबर नहीं देता था बल्कि पत्रकार दलालो के साथ मिलकर मंत्री पद की दलाली किया करते थे।

यह ऑडियो टेप सुनिये जिसे आउटलुक पत्रिका ने एक्सपोज़ किया था, जिसमें NDTV की पूर्व वरिष्ठ पत्रकार बरखा दत्त रतन  टाटा की नज़दीकी नीरा राडिया के साथ फोन पर मंत्रालय का रेट तय कर रही है। इस वीडियो के आने के बाद बरखा दत्त ने NDTV पर सफाई देने के लिए एक ख़ास प्रोग्राम किया था गौरतलब यह रहेगा कि इस प्रोग्राम में बरखा ने सिर्फ अपनी विचारधारा के लोगो को बुलाया था और खुद को पाक साफ घोषित करवा लिया था।


यह हमारा दूसरा वीडियो साल 2014 का है, जब भारतीय राजनीति करवट ले रही थी. जहाँ देश में नरेंद्र मोदी का एक माहौल तैयार हो रहा था वहीँ दिल्ली में भ्रस्टाचार विरोधी राजनीती कर के मुख्यमंत्री बने अरविन्द केजरीवाल का उदय हुआ था. वीडियो में न्यूज़ चैनल "आज तक" के वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफ़ा दिए केजरीवाल जी का क्रांतिकारी इंटरव्यू ले रहे थे, जिसमे बैक ग्राउंड में शहीद ए आजम भगत सिंह की तस्वीर देशभक्ति नही राजनीती चमकाने के लिए लगाई गई।


तीसरा वीडियो एक बार फिर NDTV से हैं, अब ये चूक एंकर से हुई या प्रोड्यूसर से पता नही, पर इस छोटी सी भूल से चैनल की पोल जरूर खुल गयी. सुनिये एंकर निधि कुलपति अपने एक न्यूट्रल राजनैतिक विश्लेषक से कांग्रेस की तरफ से डिफेंड करने का निवेदन कर रही थी।


आपको तो मालूम ही हैं कि अमेरिका से लेकर अफ्रीका तक और यूरोप से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक दुनिया आतंकवाद से पीड़ित है, हज़ारों लोग अपनी जान गवाँ  चुके है और यह सबको मालूम हैं कि इस आतंकवाद का रंग क्या हैं? पर भारत का बुद्धिजीवी वर्ग बताता है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता कोई रंग नहीं होता और हम भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि आतंक का कोई धर्म रंग मजहब हो ही नही सकता लेकिन.. जैसे ही एक "खास समुदाय" का व्यक्ति मारा जाता हैं  अचानक से इसी बुद्धिजीवी वर्ग को आतंकवाद का धर्म हिन्दू और रंग भगवा दिखने लगते है, आप बताइए यह कैसा डबल स्टैंडर्ड हैं? भाई एक स्टैंड पर तो रहिये या तो आतंक का धर्म होता हैं या फिर नही होता।


खैर, ऐसे ही बुद्धिजीवियो की ट्वीट के यह स्क्रीनशॉट आपके सेवा में प्रस्तुत हैं, ताकि आप इनका डबल स्टैंडर्ड अच्छे से समझ सके।




आप लोगो ने ध्यान दिया होगा जैसे ही हिन्दू तीज त्यौहार आते है, अचानक से देश के बुद्धिजीवी वर्ग को पर्यावरण की बेहद चिंता हो उठती है और ये मीडिया उसी बुद्धिजीवी वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है. दीपावली पर पटाखे, होली पर पानी और करवाचौथ में महिलाओं की घोर चिंता हो उठती है पर बकरीद क्रिसमस अंग्रेजी नववर्ष में इनकी चिंता अवकाश पर चली जाती है ... आपको जल्लिकुटी का उदाहरण देती हूं बैलों की चिंता में सूखते बुद्धिजीवी बकरीद के दिन चादर तानकर सो जाते हैं जिस दिन इन बैलों को काटा जाता हैं। यहाँ एक बात जरूर साफ करना चाहूँगी की मुझे मटन खाने पर ऐतराज नही हैं मुझे ऐसे दोगलेपन पर ऐतराज हैं।


इसके सबूत भी नीचे संलग्न कर दिए है क्योंकि हमारा मकसद अपनी राय थोपना नहीं हैं, आपको साक्ष्यो के आधार पर सच से अवगत कराना है, अपनी राय आप खुद बनाइये।





गत दिनों में बाबाओं पर काफी चर्चा चल रही थी, एक-दो खबरिया चैनल तो ग्राउंड रिपोर्टिंग के नाम पर स्टूडियो छोड़ बाबा राम रहीम के डेरे  से ही प्रसारण कर रहे थे, जिसके चलते पुलिस को भी कार्यवाही करने में असहजता हो रही थी।
खैर ये छोड़िये ..आप ये सोचिये इन स्वयम्भू बाबाओं को प्रसिद्ध किसने किया? किसने इनको लोगो को घर घर तक पहुँचाया? किसने इनके तथाकथित चमत्कारों पर प्रोग्राम बना बना कर TRP लूटी? समोसे के साथ हरी चटनी और ब्रेड में मक्खन लगा कर समस्याएं दूर करने के बकवास को किसने बढ़ावा दिया ? राम रहीम रामपाल निर्मल बाबा मेरे घर तो नहीं आये कभी अपने चमत्कार बेचने, किसने उन्हें हमारे घरों तक पहुँचाया? इसी मीडिया ने उन्हें हमारे और आपके घरों तक इन आस्था के व्यापारी बाबा लोगो के व्यापार में भागीदार बनकर उनकी मार्केटिंग करते हुए पहुँचाया हैं, पर आज ये इन बाबाओ के पापकर्म के लिए जनता और सरकार को जिम्मेदार ठहरा कर अपनी जिम्मेदारी से कन्नी काट रहे हैं। सुबह 4 बजे से लेकर 9 बजे तक प्रवचन कुंडली टैरो कार्ड समागम दिखाता है मीडिया फिर सुबह के 9 से देर रात  इन्ही बाबाओं को गरियाता है इन पर अन्धविश्वास फैलाने का आरोप लगाता है।



ताजा मामला गौरी लंकेश की हत्या का हैं, ABP न्यूज़ ने टैग लाइन चलाई की गौरी लंकेश "भाजपा विरोधी पत्रकार"  थी, अब ABP बताये की पत्रकारों का ये कैसा वर्गीकरण हैं, मैंने तो सुना था पत्रकार निष्पक्ष होते हैं.. खैर अनजाने में ही सही उन्होंने इसकी स्वीकारोक्ति कर ली की  पत्रकार भी राजनीतिक दलों की विचारधारा के हिसाब से बंटे हुए हैं और उसी के हिसाब से खबरों का खेल खेलते हैं।



सलेक्टिव पत्रकारिता का सबसे बड़ा ताजा नमूना यह हैं कि इन पत्रकारों को केरल/बंगाल में हत्यारों की राजनीतिक सोच तो नहीं दिखती लेकिन जब ट्विटर पर कोई कुतिया लिख दे तो वो पूरे राइट विंग का चेहरा हो जाता है। पत्रकार जागृति शुक्ला को बलात्कार और जान से मारने की धमकी वाली ट्वीट NDTV के प्राइम टाइम में नही दिखाई जाती क्योकि जागृति शुक्ला उनके नरेटिव पर खरी नही उतरती पर वही जब कोई टुच्चा सागरिका घोष को गाली दे तो उस पर टीवी पर सीरीज चला दी जाती हैं।


पत्रकारिता तो गालियों में भी रंग भेद देखकर सिर्फ सलेक्टिव निंदा करती हैं, कांग्रेस और AAP के बड़े नेता जब आपत्तिजनक भाषा मे ट्वीट करे तो उसे इग्नोर किया जाता हैं पर वही अगर आम सा इंसान डिफॉल्ट प्रोफाइल पिक्चर वाला कोई इन्हें बदले में गाली दे दे तो उसे यही लोग मोदी जी का खासमखास बताकर टीवी पर न्यूज़ चला देते हैं। रवीश कुमार गाली बाजों से बहुत आहत रहते हैं पर रवीश बाबू का सेलेक्टिव ओटरेज़ देखिये, इनके लिए "कुतिया" कम्युनल है पर "चूतिया " सेक्युलर है। इन्हें एक anonymos ट्वीट से दिक्कत है पर दो पूर्व और वर्तमान मुख्यमंत्रियो के ट्वीट से कोई समस्या नहीं, इतना दोगलापन?



यह देखिये दोगलेपन की पराकाष्ठा, ये शेष नारायण सिंह हैं अकसर टीवी पर निष्पक्ष वरिष्ठ पत्रकार के तौर पर बहस में आते दिखते रहते हैं, बेशर्मी की सीमा लांघते हुए ये दिग्विजय सिंह की आपत्तिजनक ट्वीट को डिफेंड करने लग गए, पर जब ट्वीटर यूजर ने इन्हें "सम्मान के साथ" वही शब्द बोला तो उसे गाली बताकर ब्लॉक करने लग गए।




यहाँ तक कि ये लोग फेक और पेड न्यूज तक चलाने से बाज नही आते, ये देखिये ताज़ा उदाहरण ..किस तरह अफवाहें फैला कर किसी के प्रति लोगो में गुस्से का भाव पैदा किया जाता है। 


पिछली सरकारों में पत्रकार सरकारी पैसे से प्रधानमंत्री के साथ विदेशी दौरे करते थे महंगे होटल में रुकते थे, पर वर्तमान सरकार में नरेंद्र मोदी जी के साथ सिर्फ दूरदर्शन का पत्रकार होता है, बाकियो को न्यूज़ कवर करने अपनी कम्पनी के खर्चे पर ही जाना होता है ऐसे में उनकी इस प्रकार की रिपोर्टिंग बनती भी हैं।

( इस विषय पर पाठकों की रुचि रही तो आगे भी सबूतों के साथ हम इस विषय पर सीरीज चलायेंगे)


Note:- बिना लेखक की मर्जी के पोस्ट कॉपी करके छापने पर वैधानिक करवाई की जा सकती हैं।

लेखिका : Awantika‏🇮🇳 (@SinghAwantika): https://twitter.com/SinghAwantika?s=09




टिप्पणियाँ

  1. जबसे social medea पर इनकी सच्चाई सामने आने लगी है तबसे ये लोग और ज्यादा आक्रामक हो गए हैं। समय की मांग है कि उतनी ही आक्रामकता से इनको एक्सपोज़ किया जाए जितनी आक्रामकता से ये लोग अपना एजेंडा आगे बढ़ा रहे हैं।

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  2. very nice and u realy expose the paid /selective media
    your source of knowledge is very good
    i am also a new blogger (devjiblog.com) i am also want to re-post your article in my blog
    if u give permission
    i,m in twitter- @devji21

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    उत्तर
    1. हमारे ब्लॉग को क्रेडिट देकर आप पोस्ट अपने ब्लॉग पर डाल सकते हैं।

      हटाएं
  3. लोगो को धीरे धीरे सब समझ आ रहा है पत्रकार अपना मान सम्मान भी समाज में खोते जा रहे हैं.. इन दिनो लोगो ने मोदी का विरोध करने के लिए हिन्दूत्‍व को बदनाम करना शुरू कर दिया है हिंदू धर्म को टारगेट करके ये लोग सोच रहे हैं कि मोदी को टारगेट किया जा सकता है इसमे नेता पत्रकार व वे सभी पार्टीया जो आज मोदी के आने के बाद नल्ले हो चुके है उनके पास कोई काम ही नहीं है रही सही कसर नोटबंदी ने निकाल दी.. ऐसे में ये लोग किस विचारधारा के ये पता करना बेहद मुश्किल हो चुका है.

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  4. मीडिया की हकीकत
    बहेन हिम्मत करके एक्सपोज कर रही है
    हम भी हिम्मत दिखाइये Share कर जन- जन तक पहुचायें

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  5. बहुत बढ़िया अवंतिका ! बहुत ही तार्किकता के साथ दलाल मीडिया का दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया ! बस ऐसे ही इनकी बखिया उधेड़ने में लग जाओ सब राष्ट्रवादी ! यही समय की माँग है !

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  6. खोजपरक परिश्रम कर सबूतों के साथ लेख लिखा है, लिबेरल्स की पोल पट्टी उधेड़ कर रख दी, जनता ध्यान दे। असलियत को पहचान लो।

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  7. 2000 ke note par chip lagi hai zee news ke sudheer chaudhary aur aaj tak ki sweat singh ka video to hoga hi aap ke paas.....sudheer chaudhary ka ghoos kaand ka video bhi nahi hai .....ise hi selective blogger kaha jaaye ya kuchh aur ....ummid karunga apne blog ko edit Kat ye teeno prasang bhi joda jayega tab hi ye ek nishpaksh post hoga..thx.

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  8. बहुत अच्छे तरीके से पोल खोली गयी, लेखक बधाई का पात्र

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  9. मीडिया के दोगलेपन पर और एकतरफा रिपोर्टिंग का विश्लेषण करके इलेक्ट्रानिक मीडिया की औकात बताई जा सकती हैं सोशल मीडिया के माध्यम से।और बेशक आप उसमें शानदार सहभागिता निभा रही हैं।धन्यवाद।😊

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  10. This article shows true face of Indian media which is involved in spreading propaganda and hatred.

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  11. बहुत अच्छा और सुदृढ़ लेख लिखा है आज जरूरत है कि क़ानून बना कर मिडिया की जिम्मेदारी भी तय की जाएं ।। जैसी की अन्य देशों में है यूं मिडिया को ज्यादा आवारा छोड़ना भी भारत के भविष्य के लिए खतरनाक है ।।

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  12. बहुत अच्छा और सुदृढ़ लेख लिखा है आज जरूरत है कि क़ानून बना कर मिडिया की जिम्मेदारी भी तय की जाएं ।। जैसी की अन्य देशों में है यूं मिडिया को ज्यादा आवारा छोड़ना भी भारत के भविष्य के लिए खतरनाक है ।।

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  13. दूर दूर तक सन्देश पहुँचे, कोशिशें जारी रहे।

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  14. बहुत खूबअवंतिका। इतना तथ्यपरक लेख लिखने के लिए साधुवाद। कितना परिश्रम किया है ये साफ परिलाक्षित हो रहा है। ढेर सारा आशीर्वाद तथा शुभकामनाएं।
    लोकतंत्र का चौथा स्तंभ जिसप्रकार खिलवाड़ कर रहा है जनता और जनता की भावनाओं से ये वाकई शोचनीय है। 24*7न्यूज चैनलों पर सबसे पहले रोक लगनी चाहिए तभी इस प्रकार का मसाला परोसना थोड़ा बहुत प्रतिबंधित हो सकेगा। पत्रकारिता आज खोजी न होकर टीआरपी बटोरने के लिए होने लगी है सभी अपनी कमीज को दूसरे की कमीज से ज्यादा सफेद बताने में लगे रहते हैं और इसके लिए किसी भी हद तक गिरने में संकोच नही करते। हिन्दू इतने सहिष्णु हैं जन्मजात कि इनको कोई कुछ भी कहके निकल जाए शांत ही रहते हैं। बचपन से सत्य, अहिंसा का जो पाठ पढ़ाया जाता है बच्चों को वो सिर्फ हिंदुओं तक ही सीमित रह जाता है शायद।
    हम मुस्लिम या क्रिश्चियन को दोष भी नही दे सकते हैं क्योंकि भगवा आतंकवाद हो चाहे हमारे त्योहारों से पूर्व सुनियोजित प्रोपोगंडा सबके सूत्रधार हिन्दू ही हैं।
    पैसा और शोहरत कमाने के लालच ने इन्हें इतना गिरा दिया है कि ये बिना सोचे समझे विरोध करने लगते हैं फिर ये भी नही सोचते कि अपने देश की छवि ही धूमिल कर रहें हैं अंतरराष्ट्रीय मंच पर।
    अच्छा प्रयास है तुम्हारा अवंतिका। इसी प्रकार हमारे प्रतिभाशाली युवा आगे आकर समाज को सही राह दिखाएंगें ऐसी आशा ही नही विश्वास भी है। आज ही के दिन हमारे एक युवा सन्यासी ने 125 वर्ष पूर्व अपने देश का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करवाया था। तुम लोग भी उन्हीं से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ो और मां भारती के सच्चे सपूत बन उनके दुःख दूर करो।
    जय हिंद

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  15. very good article on media persons, showing their double standard

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