सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

भारत को रोहिंग्या शरणरार्थियो को शरण क्यो नही देनी चाहिए?

रोहिंग्या शरणरार्थियो पर भारत मे शरण देनी चाहिए या नही इस पर बड़ी बहस इस समय देश मे चल रही हैं, मानवाधिकार आयोग के बाद इस मसले को वकील प्रशान्त भूषण सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुके हैं और सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मुद्दे पर सुनवाई को अपनी मंजूरी दे दी हैं ऐसे में हम यह समझना बेहद जरूरी हैं कि भारत को रोहिंग्या मुस्लिम शरणरार्थी को शरण क्यो नही देनी चाहिए, यह हम आपको तर्कपूर्ण तरीके से समझायेंगे।

1- 500 सालो का हिंसक इतिहास हैं इन रोहिंग्या मुस्लिमो का, पंद्रहवीं शताब्दी से ही बर्मा के राखिने प्रांत में रोहिंग्या मुस्लिमों और मूल निवासियों का संघर्ष चल रहा है ऐसे में भारत जैसा देश जहाँ अधिकतर लोग शांतिप्रिय हैं अपने काम से काम रखने वाले हैं इन हिंसक लोगो से कैसे निभा पायेंगे। सोचिए बौद्ध समुदाय जो की दुनिया में सबसे शांतिप्रिय समुदाय माना जाता है उनके देश में उन्ही से नहीं बनती इनकी, भारत तो पूरब से पश्चिम तक उत्तर से दक्षिण तक विभिन्न जाती भाषा और कल्चर वाला देश है, यहाँ कैसे पटरी बैठाएंगे।

2-  1940 में जब मोहम्मद अली जिन्ना ने अलग पाकिस्तान की माँग उठायी तो रोहिंग्या मुस्लिमो ने इस माँग का समर्थन करते हुए, अराकान प्रांत को पूर्वी पाकिस्तान से मिलाने की माँग की थी, उस समय जिन्ना ने बर्मा के अंदरूनी मामले में दखल ना देने की बात कर इस मांग को खारिज कर दिया था पर इस बात की क्या गारंटी हैं कि ये यहाँ पर अलग इस्लामिक राष्ट्र की माँग नही करेंगे, क्या देश एक और बंटवारा बरदाश्त करने की स्थिति में हैं?

3- आतंकी कनेक्शन- रोहिंग्या मुस्लिमो के दो आतंकी संगठन हैं "रोहिंग्या सॉलिडेरिटी ऑर्गनाइजेशन' और "मुजाहिद पार्टी" इन आतंकी संगठनों ने 22 हजार बौद्ध भिक्षुओं का कत्ल किया हैं और बौद्ध महिलाओं के साथ रेप किये हैं, क्या भारतीय ऐसे लोगो को शरण देने का साहस करेंगे जो आगे चलकर इन आतंकी संगठनों के संभावित आतंकी हो या इनके लिए स्लीपर सेल का काम करे? आप सोचिए क्या रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमान शरण देने के लायक हैं? नहीं! क्योंकि इनसे हमें अशिक्षा, बेरोजगारी, जनसंख्या विस्फोट, अपराध और आतंक जैसी समस्याओं से ही दो चार होना पड़ेगा और दूसरा ये लोग कभी भारत के देशभक्त नहीं होंगे। सदैव ये खतरा रहेगा कि कहीं देश की गुप्त सूचनाएं बेचकर देश की सुरक्षा में सेंध न लगा दें।


4-  भारत में कितने लोग गरीबी रेखा के नीचे रह रहे हैं, कितने लोगों को एक समय का खाना भी नसीब नहीं हो रहा? अशिक्षा से हमारा मुल्क अभी भी लड़ रहा है। क्या ऐसे में ये गैर-जिम्मेदार पाखंडी घुसपैठिये हमारे देश की समस्याएं और नहीं बढ़ाएंगे?


5- दुनिया का सबसे युवा देश है भारत, अधिकतर युवा बेरोजगार हैं, ऐसे में क्या ये निकम्मे घुसपैठिये हमारा रोजगार नहीं छीन लेंगे जिस पर सबसे ज्यादा हक हम लोगों का है क्योंकि हमारे पूर्वजों के खून पसीने की कमाई से ही आज हम यहां तक पहुंचे हैं।


6- इन रोहिंग्या लोगों की वजह से  कानून व्यवस्था के लिये भी चुनौती उत्पन्न होती है, साथ ही, राष्ट्रीय शरणार्थी नीति के अभाव में न तो ये पंजीकृत हो पाते हैं और न ही इनका कोई स्थायी पता होता है। ऐसे में यदि कोई शरणार्थी अपराध करने के बाद भाग जाए तो उसको कानून की गिरफ्त में लेना मुश्किल हो जाता है। आप सोचिए कि अगर ये रोहिंग्या लोग आपके घर मे डकैती करे तो इन्हें पुलिस पकड़ भी नही सकती हैं।

7- सीरिया और इराक के मुस्लिम शरणार्थियों को यूरोप ने बड़ा दिल दिखाते हुए अपने देशों में जगह दी, आज नतीज़ा सबके सामने है। लन्दन से ले कर म्यूनिख तक और बार्सिलोना से ले कर मैड्रिड तक कोई हिस्सा नहीं बचा जहाँ धर्म के नाम पर सेकड़ो निर्दोष लोग आतंकवाद की भेंट न चढ़ गए हो। यह यूरोप का वो इलाका था जो आतंकवाद की दृष्टि से सबसे शांत हुआ करता था ...और हम तो चीन पाकिस्तान लंका नेपाल म्यामांर चारो तरफ से पहले से ही आतंकवाद और नक्सलवाद से जूझ रहे है ऐसे समय में जबरन की दयालुता दिखाने का क्या औचित्य हैं?

भारत इन रोहिंग्या लोगो को शरण देने के लिए बाध्य भी नही हैं क्योंकि भारत ने 1951 के ‘यूनाइटेड नेशंस रिफ्यूजी कन्वेंशन’ और 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। दरअसल, इस कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने वाले देश की यह कानूनी बाध्यता हो जाती है कि वह शरणार्थियों की मदद करेगा। इसी की वजह से वर्तमान में भारत के पास कोई राष्ट्रीय शरणार्थी नीति नहीं है, इसलिए गृह मंत्रालय ‘विदेशी अधिनियम, 1946’ की धारा 3(2) के तहत अवैध विदेशी नागरिकों को वापस भेजने की प्रक्रिया शुरू कर रहा है। इस वजह से यहाँ के तथाकथित सेकुलरिज्म के ठेकेदारों जिनका उद्देश्य अरब कंट्री से पैसा खाना और अपनी राजनीति की बन्द होती दुकान को चमकाना हैं इस प्रक्रिया का विरोध कर रहे हैं।

सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि “आतंकी माइंडसेट” वाले इस्लामी कट्टरपंथियों के लिए सीमाएँ अथवा नागरिकता कोई मायने नहीं रखतीं, आप स्वयं देखिये ये कट्टरपंथी चाहे जिस देश के हो ये रोहिंगा लोगो को मासूम पीड़ित बताकर  ट्विटर जैसी सोशल साइट्स पर माहौल बना रहे हैं और बडे दुख के साथ बताना पड़ रहा हैं कि इसमें अपने देश के लोग भी शामिल हैं, उस देश के जिसमे उसी के कश्मीरी हिन्दू बरसो से अपने ही देश मे शरणरार्थी बने रहने के लिए मजबूर हैं। इन्होंने कश्मीरी हिन्दू शरणार्थियो के लिए कभी खुल कर आवाज नही उठायी पर आज दूसरे देश के हिंसक नागरिकों के पक्ष में खड़े हैं। जबकि सच तो यह हैं कि बर्मा में रोहिंग्या मुस्लिमों को पूर्वी पाकिस्तान और इस्लामिक राज्य अधिक प्यारा लगता है. यह वैसा ही है, जैसे डेनमार्क अथवा फ्रांस में बनाए गए किसी कार्टून को लेकर इधर भारत के लखनऊ मुम्बई में मुसलमान दंगा मचाने लगें। 2011 का साल तो आपको याद ही होगा जब भारत के कई शहरों में अचानक रोहिंग्या लोगो के समर्थन में भीड़ सड़को पर उतर कर "अमर जवान ज्योति" तोड़ डाली थी, लखनऊ में बुद्ध प्रतिमा क्षतिग्रस्त कर दी थी।

मानवाधिकार संगठनों के किसी बहकावे में आने की जरूरत नही म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिमों के साथ जो हो रहा है, इसके लिए वही जिम्मेदार हैं उन्होंने ही शांतिप्रिय बौद्धों पर अत्याचार कर उन्हें हथियार उठाने के लिए बाध्य किया हैं।

इनको यहाँ शरण देना कितना खतरनाक हो सकता हैं उसे ऐसे समझिए की जहाँ पूरे देश में गोवंश की हत्याओं को लेकर राजनीती गाहे बगाहे गर्माती रहती है वहां रोहिंग्या मुस्लिमो को बकरीद पर बकरा नहीं भैंस काट के खानी है। आज ये भैस काटकर खाने का अधिकार मांग रहे है कल म्यांमार की तरह अलग इस्लामिक देश की मांग करेंगे। जब इन्हें रोका जाएगा तो ये बतायेंगे की बहुसंख्यक समाज इन्हें डरा रहा हैं देश मे असहिष्णुता बढ़ रही हैं।




https://m.aajtak.in/crime/crime-news/story/muslim-men-beaten-by-mob-buffalo-eid-faridabad-950180-2017-09-02

लेखक से ट्विटर पर मिले @ankur9329 : https://twitter.com/ankur9329?s=09






टिप्पणियाँ

  1. रोहांगनिया मुसलमान फितरतन अलगावी हिंसक झड़प, प्रदर्शन करने में माहिर रहे है, म्यांमार के बौद्ध इनसे पीड़ित होकर संगठित हुए, बमुश्किल इनसे टक्कर ले रहे हैं। घुसपैठ करने में इस्लाम फैलाना अपराधी प्रवृत्तियों में ये रोहांगनिया लिप्त हैं। भारत मे घुसने मत दो, जो हैं घुसे हुए उन्हें निकालो।

    जवाब देंहटाएं
  2. दूरदर्षिता है प्रस्तुत लेख में, तथ्यों का संकलन भी सराहनीय है पता नही ये सब बातें हमारे राजनेताओं को क्यों नही समझ आती और सबके लिए खुला आमंत्रण होता है हमारे देश में। अंग्रेज भी व्यापार करने ही आये थे शासक बन बैठे। प्रशांत भूषण को कभी कश्मीरी पंडितों की व्यथा नही देखती जो अपने ही देश में शरणार्थी बने बैठे हैं। आज विश्व के बहुत से देश जनसंख्या की कमी की समस्या से जूझ रहे हैं तो सिर्फ हमारा ही देश क्यों!!

    जवाब देंहटाएं
  3. INDIA is highly populated country,we will not allowed any body, who is not possessing legal documents to stay in INDIA.
    SUPREME COURT OF INDIA SHOULD HAVE TO ORDER THAT ROHINGYA SHOULD BE DEPORT IMMEDIATELY.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. खुद हमारे देश के नागरिक मूलभूत सुविधाओं रोटी कपड़ा मकान के लिए तरस रहे हैं ऐसे में इन 40 हजार रोहिंग्या लोगो का बोझ डालना अन्याय होगा गरीब भारतीयों के साथ।

      हटाएं
  4. जैसा कि मैं ट्वीटर पर भी बता चुका हूँ, सुप्रीम कोर्ट को चाहिए कि इन रोहिंगयाओं पर होनेवाला एक एक पाई कर खर्च, उनके द्वारा किये जानेवाले अपराध, और यदि भविष्य में वो किसी देशविरोधी गतिविधियों में संलिप्त पाये जाते हैं, उसकी जिम्मेदारी उन महानुभावों के मत्थे डाली जाए जो उनको भारत से निकाले जाने का विरोध कर रहे हैं।

    जवाब देंहटाएं
  5. समझ में नहीं आता जी ?
    अपनी कश्मीरी पंडितों के प्रति घोर सतेलापन और जबरदस्ती घुस आए रोहिंग्या विदेशी मुस्लिमों के प्रति अपार प्रेम ..विचित्र लीला ...

    जवाब देंहटाएं
  6. मुसलमानों की किसी अन्य धर्म जाति के लोगों से पटती, इनको किसी भी देश मे नही रखना चाहिये। un को चाहिये कोई अलग द्वीप चुनकर वहाँ बसा दे। सारा संसार टैक्स देकर इनको पाल ले तब भी सुखी रहेंगे। यह राक्षसी मनुष्यों के साथ रहने योग्य नही है।

    जवाब देंहटाएं
  7. "स्टेज 1-
    प्लीज़ हमें शरण दो!
    स्टेज 2-
    समानता का अधिकार!!
    स्टेज 3-
    किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है!!!
    स्टेज-४
    हमें अलग देश चाहिए IV
    #RohingyaMuslims"

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जानिए कैसे एससी-एसटी एक्ट कानून की आड़ में हो रहा मानवाधिकारो का हनन

सुप्रीम कोर्ट के एससी-एसटी एक्ट पर दिए गए फैसले के खिलाफ दलित संगठनों ने भारत बंद बुला कर पूरे देश भर में हिंसक प्रदर्शन किया जिसमें दर्जन भर लोगो की जान गई और सरकार की अरबों रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ। अब सवाल ये उठता है कि आखिर एससी/एसटी ऐक्ट को लेकर पूरा विवाद है  क्या जिस पर इतना बवाल मचा है, चलिए जानते हैं इस बारे में विस्तार से.. अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम,(The Scheduled Castes and Tribes (Prevention of Atrocities) Act, 1989 ) को 11 सितम्बर 1989 में भारतीय संसद द्वारा पारित किया था, जिसे 30 जनवरी 1990 से सारे भारत ( जम्मू-कश्मीर को छोड़कर) में लागू किया गया। यह अधिनियम उस प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होता हैं जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का सदस्य नही हैं तथा वह व्यक्ति इस वर्ग के सदस्यों का उत्पीड़न करता हैं। इस अधिनियम मे 5 अध्याय एवं 23 धाराएं हैं। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को महाराष्ट्र के एक मामले को लेकर एससी एसटी एक्ट में नई गाइडलाइन जारी की थी, जिस

Selective Journalism का पर्दाफाश

लोकतंत्र के चार स्तंभ होते हैं कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका और मीडिया जो इस देश को लोकतान्त्रिक तरीके से चलाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। कार्यपालिका जवाबदेह होती है विधायिका और जनता के प्रति और साथ ही दोनों न्यायपालिका के प्रति भी जवाबदेह होते है। इन तीनो की जवाबदेही भारतीय संविधान के हिसाब से तय है, बस मीडिया के लिए कोई कानून नहीं है, अगर है तो इतने मज़बूत नहीं की जरूरत पड़ने पर लगाम लगाईं जा सकें। 90 के दशक तक हमारे देश में सिर्फ प्रिंट मीडिया था, फिर आया सेटेलाइट टेलीविजन का दौर, मनोरंजन खेलकूद मूवी और न्यूज़ चैनल की बाढ़ आ गयी. आज  देश में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय चैनल को मिला के कुल 400 से अधिक न्यूज़ चैनल मौजूद है जो टीवी के माध्यम से 24 ×7 आपके ड्राइंग रूम और बैडरूम तक पहुँच रहे हैं। आपको याद होगा की स्कूल में हम सब ने एक निबन्ध पढ़ा था "विज्ञान के चमत्कार" ...चमत्कार बताते बताते आखिर में विज्ञान के अभिशाप भी बताए जाते है. ठीक उसी प्रकार जनता को संपूर्ण जगत की जानकारी देने और उन्हें जागरूक करने के साथ साथ मीडिया लोगो में डर भय अविश्वास और ख़ास विचारधार

सुशासन का खोखलापन, बिहार में प्रताड़ित होते ईमानदार अधिकारी

" सच्चाई और ईमानदारी के पथ पर चलने वाले लोगो को अक्सर ठोकरे खाने को मिलती है , अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है लेकिन अंत में जीत उन्ही की होती है। " यह वह ज्ञान है जो वास्तविक दुनिया में कम और किताबो में ज्यादा दिखता है, लोगो मुँह से बोलते जरूर है लेकिन वास्तविक तौर पर चरित्र में इसका अनुसरण करने वाले कम ही दिखते है। बिहार में ईमानदार अफसर वरदान की तरह होते हैं, आम जनता में हीरो यही होते है क्योकि यहाँ नेताओ का काम सदियों से लोगो को बस लूटना रहा है और उनसे बिहार की आम जनता को वैसे भी कोई उम्मीद नहीं रहती। आम जनता हो या एक ईमानदार अफसर, दोनों का जीवन बिहार में हर तरह से संघर्षपूर्ण रहता है। उनको परेशान करने वाले बस अपराधी ही नहीं बल्कि स्थानीय नेता और विभागीय अधिकारी भी होते है। गरीबी, पिछड़ापन और आपराधिक प्रवृत्ति लोगो द्वारा जनता का उत्पीड़न आपको हर तरफ देखने को मिल जायेगा। हालात ऐसे हैं कि लोग यहाँ थाने से बाहर अपने विवाद सुलझाने के लिए इन छुटभैये गुंडों को पैसे देते हैं जो जज बनकर लोगो का मामला सुलझाते है, क्योकि वो दरोगा के रिश्वतख