आज से पूरे एक वर्ष पहले उत्तर प्रदेश विधान चुनाव का नतीजा घोषित हुआ था और 14 वर्ष के वनवास के बाद भारतीय जनता पार्टी की सत्ता में वापसी हुई थी. जीत इसलिए भी खास थी क्योंकि मोदी लहर के बलबूते लोकसभा में 80 में से 73 सीट जीतने वाली पार्टी का ये बड़ा असेट टेस्ट था और पार्टी ने किसी भी कट्टर समर्थक की उम्मीद से भी ज्यादा 325 सीटों पर जीत हासिल की .
गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनाये गए और फूलपुर के सांसद केशव प्रसाद मौर्या उपमुख्यमंत्री.
अब 2 वर्ष बाद लोकसभा की रिक्त हुई इन 2 सीटों पर उपचुनाव होना है सरसरी नज़र से देखने पर ही आप पाएंगे कि जहां गोरखपुर में बीजेपी का कोई मुकाबला नहीं दिख रहा वहीं फूलपुर में लड़ाई दिलचस्प और कांटे की टक्कर होती दिख रही है .. आमतौर से लोगो को दिलचस्पी मुख्यमंत्री की सीट के चुनाव पर होती पर यहां मामला उल्टा है फूलपुर चुनाव कई मायनो से महत्वपूर्ण हो गया पहला कारण बसपा का सपा को समर्थन देना, दूसरा कारण लोकसभा चुनाव के 1 वर्ष पहले ये बीजेपी के लिए pre बोर्ड की तरह से देखा जा रहा. सपा बसपा के गठबंधन पर देश भर के तमाम राजनैतिक दलों की नजरें है जो अपने अपने राज्यो मोदी की आंधी और अमित शाह की कार्यकुशलता के सामने टिक नहीं पा रही है.
फूलपुर एक ऐतिहासिक सीट रही है. यहां से नेहरू जीते, यहां से राम मनोहर लोहिया ने उनको चुनौती दी और हारे. यहां से विजयलक्ष्मी पंडित जीतीं, यहां से कांशीराम चुनाव लड़े, यहीं से वीपी सिंह 1971 में जीते. छोटे लोहिया कहलाने वाले जनेश्वर मिश्र ने भी अपना परचम लहराया था. 2014 से पहले सपा लगातार चार बार ये सीट जीतती रही. लेकिन 2014 के मोदी लहर में केशव मौर्य ने यहां कमल खिलाया. पांच लाख से ज़्यादा वोटों से जीते. फूलपुर का महत्व इसलिए भी ख़ास है,. अगर बीजेपी यहां हारती है तो इसके राजनीतिक मायने बड़े होंगे. पहला संदेश ये जाएगा कि हिंदी पट्टी में मोदी का जादू अपने चरम पर जा चुका है और अब उतार पर है. दूसरी बात कि बीएसपी-सपा गठबंधन 2019 में बीजेपी को मात दे सकती है और तीसरी बात कि फूलपुर गैर यादव ओबीसी के दबदबे वाला इलाका है, जहां बीजेपी की पैठ मानी जाती है. माना जाएगा कि बीजेपी का ये किला भी दरक रहा है.
बीएसपी ये साफ कह चुकी है कि वो बीजेपी को हराने की रणनीति पर ही अमल करेगी. फूलपुर 19 लाख से ज्यादा वोटों की सीट है. इसमें 50 फ़ीसदी ओबीसी वोट हैं- सबसे ज़्यादा पटेल, दलित, मुस्लिम और अगड़े 15-15 फीसदी हैं. लेकिन बीजेपी को सबसे ज़्यादा फायदा अतीक अहमद की उम्मीदवारी से मिल सकता है. क्योंकि कांटे की इस लड़ाई में मुस्लिम वोट बंटे तो वह समीकरण बदलेगा जो सपा-बसपा बना रही है. दरअसल माना यही जा रहा है कि फूलपुर 2019 के राजनीतिक समीकरणों का पहला प्रयोग हो सकता है.
राजनीतिक चिंतक बद्री नारायण इसे और परिभाषित करते हैं, "ये सिर्फ बाई पोल नहीं है बल्कि उत्तर प्रदेश के राजनीति की पूर्व पीठिका है. इससे 2019 की पोलिटिकल क्लाइमेट बनने जा रही है. इसलिए बीजेपी भी इसे पूरी गंभीरता से ले रही है. जबसे अलायंस की घोषणा हुई है तब से बीजेपी और 'अलर्ट' हुई है.
अब 2 वर्ष बाद लोकसभा की रिक्त हुई इन 2 सीटों पर उपचुनाव होना है सरसरी नज़र से देखने पर ही आप पाएंगे कि जहां गोरखपुर में बीजेपी का कोई मुकाबला नहीं दिख रहा वहीं फूलपुर में लड़ाई दिलचस्प और कांटे की टक्कर होती दिख रही है .. आमतौर से लोगो को दिलचस्पी मुख्यमंत्री की सीट के चुनाव पर होती पर यहां मामला उल्टा है फूलपुर चुनाव कई मायनो से महत्वपूर्ण हो गया पहला कारण बसपा का सपा को समर्थन देना, दूसरा कारण लोकसभा चुनाव के 1 वर्ष पहले ये बीजेपी के लिए pre बोर्ड की तरह से देखा जा रहा. सपा बसपा के गठबंधन पर देश भर के तमाम राजनैतिक दलों की नजरें है जो अपने अपने राज्यो मोदी की आंधी और अमित शाह की कार्यकुशलता के सामने टिक नहीं पा रही है.
फूलपुर एक ऐतिहासिक सीट रही है. यहां से नेहरू जीते, यहां से राम मनोहर लोहिया ने उनको चुनौती दी और हारे. यहां से विजयलक्ष्मी पंडित जीतीं, यहां से कांशीराम चुनाव लड़े, यहीं से वीपी सिंह 1971 में जीते. छोटे लोहिया कहलाने वाले जनेश्वर मिश्र ने भी अपना परचम लहराया था. 2014 से पहले सपा लगातार चार बार ये सीट जीतती रही. लेकिन 2014 के मोदी लहर में केशव मौर्य ने यहां कमल खिलाया. पांच लाख से ज़्यादा वोटों से जीते. फूलपुर का महत्व इसलिए भी ख़ास है,. अगर बीजेपी यहां हारती है तो इसके राजनीतिक मायने बड़े होंगे. पहला संदेश ये जाएगा कि हिंदी पट्टी में मोदी का जादू अपने चरम पर जा चुका है और अब उतार पर है. दूसरी बात कि बीएसपी-सपा गठबंधन 2019 में बीजेपी को मात दे सकती है और तीसरी बात कि फूलपुर गैर यादव ओबीसी के दबदबे वाला इलाका है, जहां बीजेपी की पैठ मानी जाती है. माना जाएगा कि बीजेपी का ये किला भी दरक रहा है.
बीएसपी ये साफ कह चुकी है कि वो बीजेपी को हराने की रणनीति पर ही अमल करेगी. फूलपुर 19 लाख से ज्यादा वोटों की सीट है. इसमें 50 फ़ीसदी ओबीसी वोट हैं- सबसे ज़्यादा पटेल, दलित, मुस्लिम और अगड़े 15-15 फीसदी हैं. लेकिन बीजेपी को सबसे ज़्यादा फायदा अतीक अहमद की उम्मीदवारी से मिल सकता है. क्योंकि कांटे की इस लड़ाई में मुस्लिम वोट बंटे तो वह समीकरण बदलेगा जो सपा-बसपा बना रही है. दरअसल माना यही जा रहा है कि फूलपुर 2019 के राजनीतिक समीकरणों का पहला प्रयोग हो सकता है.
राजनीतिक चिंतक बद्री नारायण इसे और परिभाषित करते हैं, "ये सिर्फ बाई पोल नहीं है बल्कि उत्तर प्रदेश के राजनीति की पूर्व पीठिका है. इससे 2019 की पोलिटिकल क्लाइमेट बनने जा रही है. इसलिए बीजेपी भी इसे पूरी गंभीरता से ले रही है. जबसे अलायंस की घोषणा हुई है तब से बीजेपी और 'अलर्ट' हुई है.
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