आइये आज हम आपको बताते हैं, हमारे ब्लॉग का जन्म कैसे हुआ। हुआ यूं कि हम लोग अपने बकरपुराण के डेली पाठ में व्यस्त थे। ऋषि युगपुरुष का प्रसंग आता तो ठहाका मार लेते, 50 साल के युवा का पसंग आता तो लोटपोट हो लेते और कोई मित्रों! चिल्ला देता और घिग्घी बंध जाती। सर पर पांव रखकर पुराने बटुए या ख़लीते से फटा पुराना पांच सौ का नोट निहार लेते। गरीब लोगों की यही जमा पूंजी होती है, दिन में एक बार दर्शन हो जाएं तो प्रभु कृपा हो जाती है। अब जब हम ही मिडिल क्लास तो हमारा ग्रुप मिडिल क्लास.. मित्रगण मिडिल क्लास। वैसे मिडिल का मतलब बीच का होता है या यूं कहिये सैंडविच। सरकार बड़ा सा हथौड़ा लेकर बजाए रहती है और नीचे वाले काल्पनिक शोषण का रोना रोते रहते हैं।
अगर चक्की वाले से आटे से तुलना की जाए तो सही मायने में यही आटा ही अपना जुड़वां भाई नज़र आता है। जब इतने दुःखी थे हम लोग, ऊपर से पत्रकारों की TV पर चिचियाने की आवाज़ तो ऐसी लगती जैसे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ यही लोग मिल बाँटकर लील गए। फिर ध्वनिमत से ये निर्णय लिया गया कि एक ब्लॉग बनाया जाएगा जिससे हम लोगो तक अपनी बात पहुँचाकर कम से कम प्रोपोगंडा का चीर हरण तो कर सकेंगे। मेरे अंदर 11KV का करेंट दौड़ गया, आव देखा न ताव ब्लॉग बनाने में जुट गए। मुझे अच्छे से याद है उस दिन सीरियस दिखने के चक्कर में 1 रोटी कम खाई थी और अपनी टमी को एक इंच कम देखकर 6 पैक वाली फीलिंग आ गई थी। देश हित में ही सही कसरत तो हो ही रही है यही सोचकर तपाक से कीबोर्ड कर खटर पटर करने लगे थे हम। रूममेट अपनी मेनका से बात कर रहा था ... पहली बार महसूस हुआ आज सिंगल होकर भी शिरिमान जी को डिस्टर्ब कर रहा हूँ। साब! परेशान करने में जो मज़ा है वो दुनियाँ के किसी रस में नहीं। अपने युगपुरुष जी को ले लीजिए, झिंगोला पहनकर दिल्ली से लेकर अन्ना हजारे तक को जमालगोटा खिला दिया। युगपुरुष जी चूंकि इंजीनियर थे, हमने अपना प्रेरणास्रोत बना लिया और सबेरे तक ब्लॉग बनकर तैयार हुआ वर्डप्रेस पर।
इंडिया में लोगों का आलम ये है कोई चीज बनकर तैयार हो और उसमें पड़ोस वाली चाची चिचियाएँ न ऐसा हो नहीं सकता। किसी ने बोला इसमें ऐड नहीं लगा सकते किसी ने बोला वर्डप्रेस में पैसे लगते हैं। हमने अपने ख़लीते में दुबके हुए एकमात्र गाढ़ी कमाई के पांच सौ के नोट को देखा। ऐसा लगा जैसे बिचारा हाथ जोड़कर कह रहा हो कि भैया मुझे मत मारो। फिर हमने अपनी गरीबी को उचित महत्व देते हुए दूसरा ब्लॉग बनाने के लिए सोचा, चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाये। दूसरा ब्लॉग बनाया गया ब्लॉगर पर, थोड़ी बहुत कलाकारी की गई। धीरे धीरे व्यूज आना शुरू हुए। मैं उन तमाम खाली लोगों का शुक्रिया अदा करूँगा कि हमारे खालीपन में आपने हमारा साथ दिया अर्थात हमने खाली समय में लिया और आपने खाली समय में पढ़ा। वैसे हमने भी खूब लिखा और आपने भी खूब पढ़ा, क्या करते बेरोजगारी ही इतनी है भारत में। भारत एकलौता ऐसा देश होगा जहां लोग गरीब होते हुए भी काम नहीं करना चाहते। अब हमें ही ले लीजिए, इधर टहले उधर टहले शाम को चाय की दुकान पर जो कुछ लोगों से सुना शाम को वो सब ब्लॉग पर छाप दिया, आपने पढ़ भी लिया। अब बताइये हम नौकरी करते, बाल-बच्चे होते, भाग्यवान होतीं तो शाम को चाय की दुकान की बजाय सब्जी ला रहे होते और रात में ब्लॉग की बजाय चद्दर तानकर सो जाते और छप्पन भोग खाने के बाद टमी छत पर टकराती। खैर ये सब तो मजाक की बातें हैं, मुद्दे पर आते हैं। ब्लॉग चल निकला लोगों ने भी जमकर लिखा। तारीफ करनी होगी लोगों की तगड़ा रिस्पॉस आया, तगड़ा इसलिए कहा क्योंकि हमारे ब्लॉग को आजकल कुछ पत्रकार नियमित रूप से पढ़ रहे हैं। अब लोग लिख रहे थे तो हमने अपनी समाजवादी दीदी को ब्लॉग का एडिटर बना दिया। दीदी की ये विशेषता है, जैसे ही कोई बन्दा उनसे बात करने आता है वैसे ही वो असाइनमेंट दे देती, आपको इस मुद्दे पर लिखना है आज ब्लॉग पर और वो प्राणी लिखने में जुट जाता है। दीदी की ये विशेषता है कि उन्हें तर्क वितर्क और कुतर्क तीनों में महारथ हासिल है, इसलिए कोई कम बहस करता है। ब्लॉग की देखरेख का काम हमारी पूर्वबेरोजगर और नवविवाहित भाई को दिया गया। उनकी उपस्थिति ऐसी रही जैसी राज्यसभा में सचिन की थीं। ब्लॉग पर कुछ लोगों के बदतमीजी भरे कमेंट आते थे तो हमने अपने बजरंगी भाईजान को भी निर्वाचित कर लिया। भैया ने जमकर धोया। आपकी जानकारी के लिए बता दूँ, लड़कियों का ध्यान देश के मुद्दों पर आकर्षित करने के लिए इस विभाग का प्रमुख बनाया गया ऐसे बन्दे को जिसने अपनी डीपी में ही क्यूट बच्चे की फ़ोटो लगा रखी थी। आलम ये हुआ कन्याएँ भी देशसेवा में रुचि लेने लगी। वैसे हमारे ब्लॉग पर दो तीन बड़े बड़े अर्थशास्त्री और एक दो बड़े बड़े तकनीकी विशेषज्ञ हैं। उनमें से ही एक महापुरुष ने सुझाव दिया क्यों ने ब्लॉग को वेबसाइट में तब्दील कर लिया जाए। सभी प्राणियों ने सहमति में अपना सर हिलाया और यो यो हनी सिंह वाली स्माइली पास की। कदाचित वेबसाइट का नाम आते ही लोगों ने अपनी अपनी रिसर्च शुरू की। कोई सर्वर बताने लगा कोई डोमेन। जो लोग तकनीकी से वास्ता नहीं रखते वे बस रोज रही पूछ लेते सर वेबसाइट कब बन रही है। सर अभी तक हिंदी लिखते, ये सवाल सुनते ही उनका जमीर जाग जाता और फिर हो अंग्रेजी लिखी जाती। कसम से बता रहा हूँ, अंग्रेजी में बस फुल स्टॉप ही समझ आता और हम खुद को एडुकेटेड दिखाने के लिये OK लिख देते।
दो हफ्ते बीते, चार हफ्ते बीते, महीना बीता। वेबसाइट न हुई भारतीय संविधान हुआ बन ही रहा था। साब! लोगों की आशाओं की करने 180° पर परावर्तित होने लगी। हम लोगों ने फिर पूछा - शिरिमान जी वेबसाइट कब बन रही है।
उन्होंने फिर तुनककर अंग्रेजी में दस बारह वाक्य लिखे और हमें फिर कुछ समझ में नहीं आया। फिर चाय की दुकान पर बैठे दद्दू से ट्रांसलेट करवाया तो पता चला वेबसाइट में artificial intelligence इस्तेमाल होने वाली है इसलिए समय लग रहा है। अब हम ठहरे अनपढ़ गंवार हमने तिरंगा फ़िल्म में फ्यूज कंडक्टर सुना था हमने ठीक वैसा ही AI को भी वेबसाइट के लिए ज़रूरी समझ लिया।
एक महीना और बीत गया। हमारी टमी में हम एक रोटी तक खाली जगह तो रहने नहीं देते, इतनी प्रचण्ड बात कैसे रहने देते। हमने आखिर पूछ ही लिया - सर वेबसाइट कब बनेगी?
उन्होंने फिर कहा कि बनकर तैयार है बस टेस्टिंग चल रही है। इस बार हिंदी में जबाब दिया तो हमने भी पूरा भरोसा कर लिया कि अब ज़रूर बन गई होगी।
खैर हमने फिर दो चार महीनों का इंतज़ार किया। फिर आखिरकार एक दिन पूछ ही लिया - सर! वेबसाइट बनेगी भी या नहीं।
उन्होंने कहा - हम इंडिया में नहीं हैं, पासपोर्ट की डिटेल दे दो, बन जाएगी। लेकिन हां कोई कांड किया तो FIR भी तुम्हारे नाम पर होगी। हमारे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई, आंखों के आगे अंधकार छा गया। ऐसा लगा जैसे जो 15 लाख आने वाले थे वो बैंक वालों ने ही जब्त कर लिए क्योंकि हमने आधार लिंक नहीं करवाया था। जेब में जो पांच सौ का नोट किलकारी मार रहा था उसके बारे में पता चला कि वो साल भर पहले बन्द हो चुका है। हम कल भी अकिंचन थे, हम आज भी अकिंचन हैं। "कोउ नृप होय, हमें का हानि" वाली कहावत एकदम सटीक बैठती है।
दुनियाँ दारी तभी अच्छी लगती है जब पर्याप्त जागरूकता हो, दो वक्त की रोटी हो और सर पर छत हो। वरना नेता जी कल भी बरगला रहे थे और आज भी बरगला रहे हैं।
हमारे तरह आप भी हैं न पिछले वालों से वेबसाइट बनवाई थी न अबकी वाले बनवाएंगे। हां अगर आपमें जागरूकता है तो दौनों को मजबूरी हो जाएगी काम करना। इसलिए दबाब बनाये रखिये। धन्यवाद!!
अगर चक्की वाले से आटे से तुलना की जाए तो सही मायने में यही आटा ही अपना जुड़वां भाई नज़र आता है। जब इतने दुःखी थे हम लोग, ऊपर से पत्रकारों की TV पर चिचियाने की आवाज़ तो ऐसी लगती जैसे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ यही लोग मिल बाँटकर लील गए। फिर ध्वनिमत से ये निर्णय लिया गया कि एक ब्लॉग बनाया जाएगा जिससे हम लोगो तक अपनी बात पहुँचाकर कम से कम प्रोपोगंडा का चीर हरण तो कर सकेंगे। मेरे अंदर 11KV का करेंट दौड़ गया, आव देखा न ताव ब्लॉग बनाने में जुट गए। मुझे अच्छे से याद है उस दिन सीरियस दिखने के चक्कर में 1 रोटी कम खाई थी और अपनी टमी को एक इंच कम देखकर 6 पैक वाली फीलिंग आ गई थी। देश हित में ही सही कसरत तो हो ही रही है यही सोचकर तपाक से कीबोर्ड कर खटर पटर करने लगे थे हम। रूममेट अपनी मेनका से बात कर रहा था ... पहली बार महसूस हुआ आज सिंगल होकर भी शिरिमान जी को डिस्टर्ब कर रहा हूँ। साब! परेशान करने में जो मज़ा है वो दुनियाँ के किसी रस में नहीं। अपने युगपुरुष जी को ले लीजिए, झिंगोला पहनकर दिल्ली से लेकर अन्ना हजारे तक को जमालगोटा खिला दिया। युगपुरुष जी चूंकि इंजीनियर थे, हमने अपना प्रेरणास्रोत बना लिया और सबेरे तक ब्लॉग बनकर तैयार हुआ वर्डप्रेस पर।
इंडिया में लोगों का आलम ये है कोई चीज बनकर तैयार हो और उसमें पड़ोस वाली चाची चिचियाएँ न ऐसा हो नहीं सकता। किसी ने बोला इसमें ऐड नहीं लगा सकते किसी ने बोला वर्डप्रेस में पैसे लगते हैं। हमने अपने ख़लीते में दुबके हुए एकमात्र गाढ़ी कमाई के पांच सौ के नोट को देखा। ऐसा लगा जैसे बिचारा हाथ जोड़कर कह रहा हो कि भैया मुझे मत मारो। फिर हमने अपनी गरीबी को उचित महत्व देते हुए दूसरा ब्लॉग बनाने के लिए सोचा, चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाये। दूसरा ब्लॉग बनाया गया ब्लॉगर पर, थोड़ी बहुत कलाकारी की गई। धीरे धीरे व्यूज आना शुरू हुए। मैं उन तमाम खाली लोगों का शुक्रिया अदा करूँगा कि हमारे खालीपन में आपने हमारा साथ दिया अर्थात हमने खाली समय में लिया और आपने खाली समय में पढ़ा। वैसे हमने भी खूब लिखा और आपने भी खूब पढ़ा, क्या करते बेरोजगारी ही इतनी है भारत में। भारत एकलौता ऐसा देश होगा जहां लोग गरीब होते हुए भी काम नहीं करना चाहते। अब हमें ही ले लीजिए, इधर टहले उधर टहले शाम को चाय की दुकान पर जो कुछ लोगों से सुना शाम को वो सब ब्लॉग पर छाप दिया, आपने पढ़ भी लिया। अब बताइये हम नौकरी करते, बाल-बच्चे होते, भाग्यवान होतीं तो शाम को चाय की दुकान की बजाय सब्जी ला रहे होते और रात में ब्लॉग की बजाय चद्दर तानकर सो जाते और छप्पन भोग खाने के बाद टमी छत पर टकराती। खैर ये सब तो मजाक की बातें हैं, मुद्दे पर आते हैं। ब्लॉग चल निकला लोगों ने भी जमकर लिखा। तारीफ करनी होगी लोगों की तगड़ा रिस्पॉस आया, तगड़ा इसलिए कहा क्योंकि हमारे ब्लॉग को आजकल कुछ पत्रकार नियमित रूप से पढ़ रहे हैं। अब लोग लिख रहे थे तो हमने अपनी समाजवादी दीदी को ब्लॉग का एडिटर बना दिया। दीदी की ये विशेषता है, जैसे ही कोई बन्दा उनसे बात करने आता है वैसे ही वो असाइनमेंट दे देती, आपको इस मुद्दे पर लिखना है आज ब्लॉग पर और वो प्राणी लिखने में जुट जाता है। दीदी की ये विशेषता है कि उन्हें तर्क वितर्क और कुतर्क तीनों में महारथ हासिल है, इसलिए कोई कम बहस करता है। ब्लॉग की देखरेख का काम हमारी पूर्वबेरोजगर और नवविवाहित भाई को दिया गया। उनकी उपस्थिति ऐसी रही जैसी राज्यसभा में सचिन की थीं। ब्लॉग पर कुछ लोगों के बदतमीजी भरे कमेंट आते थे तो हमने अपने बजरंगी भाईजान को भी निर्वाचित कर लिया। भैया ने जमकर धोया। आपकी जानकारी के लिए बता दूँ, लड़कियों का ध्यान देश के मुद्दों पर आकर्षित करने के लिए इस विभाग का प्रमुख बनाया गया ऐसे बन्दे को जिसने अपनी डीपी में ही क्यूट बच्चे की फ़ोटो लगा रखी थी। आलम ये हुआ कन्याएँ भी देशसेवा में रुचि लेने लगी। वैसे हमारे ब्लॉग पर दो तीन बड़े बड़े अर्थशास्त्री और एक दो बड़े बड़े तकनीकी विशेषज्ञ हैं। उनमें से ही एक महापुरुष ने सुझाव दिया क्यों ने ब्लॉग को वेबसाइट में तब्दील कर लिया जाए। सभी प्राणियों ने सहमति में अपना सर हिलाया और यो यो हनी सिंह वाली स्माइली पास की। कदाचित वेबसाइट का नाम आते ही लोगों ने अपनी अपनी रिसर्च शुरू की। कोई सर्वर बताने लगा कोई डोमेन। जो लोग तकनीकी से वास्ता नहीं रखते वे बस रोज रही पूछ लेते सर वेबसाइट कब बन रही है। सर अभी तक हिंदी लिखते, ये सवाल सुनते ही उनका जमीर जाग जाता और फिर हो अंग्रेजी लिखी जाती। कसम से बता रहा हूँ, अंग्रेजी में बस फुल स्टॉप ही समझ आता और हम खुद को एडुकेटेड दिखाने के लिये OK लिख देते।
दो हफ्ते बीते, चार हफ्ते बीते, महीना बीता। वेबसाइट न हुई भारतीय संविधान हुआ बन ही रहा था। साब! लोगों की आशाओं की करने 180° पर परावर्तित होने लगी। हम लोगों ने फिर पूछा - शिरिमान जी वेबसाइट कब बन रही है।
उन्होंने फिर तुनककर अंग्रेजी में दस बारह वाक्य लिखे और हमें फिर कुछ समझ में नहीं आया। फिर चाय की दुकान पर बैठे दद्दू से ट्रांसलेट करवाया तो पता चला वेबसाइट में artificial intelligence इस्तेमाल होने वाली है इसलिए समय लग रहा है। अब हम ठहरे अनपढ़ गंवार हमने तिरंगा फ़िल्म में फ्यूज कंडक्टर सुना था हमने ठीक वैसा ही AI को भी वेबसाइट के लिए ज़रूरी समझ लिया।
एक महीना और बीत गया। हमारी टमी में हम एक रोटी तक खाली जगह तो रहने नहीं देते, इतनी प्रचण्ड बात कैसे रहने देते। हमने आखिर पूछ ही लिया - सर वेबसाइट कब बनेगी?
उन्होंने फिर कहा कि बनकर तैयार है बस टेस्टिंग चल रही है। इस बार हिंदी में जबाब दिया तो हमने भी पूरा भरोसा कर लिया कि अब ज़रूर बन गई होगी।
खैर हमने फिर दो चार महीनों का इंतज़ार किया। फिर आखिरकार एक दिन पूछ ही लिया - सर! वेबसाइट बनेगी भी या नहीं।
उन्होंने कहा - हम इंडिया में नहीं हैं, पासपोर्ट की डिटेल दे दो, बन जाएगी। लेकिन हां कोई कांड किया तो FIR भी तुम्हारे नाम पर होगी। हमारे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई, आंखों के आगे अंधकार छा गया। ऐसा लगा जैसे जो 15 लाख आने वाले थे वो बैंक वालों ने ही जब्त कर लिए क्योंकि हमने आधार लिंक नहीं करवाया था। जेब में जो पांच सौ का नोट किलकारी मार रहा था उसके बारे में पता चला कि वो साल भर पहले बन्द हो चुका है। हम कल भी अकिंचन थे, हम आज भी अकिंचन हैं। "कोउ नृप होय, हमें का हानि" वाली कहावत एकदम सटीक बैठती है।
दुनियाँ दारी तभी अच्छी लगती है जब पर्याप्त जागरूकता हो, दो वक्त की रोटी हो और सर पर छत हो। वरना नेता जी कल भी बरगला रहे थे और आज भी बरगला रहे हैं।
हमारे तरह आप भी हैं न पिछले वालों से वेबसाइट बनवाई थी न अबकी वाले बनवाएंगे। हां अगर आपमें जागरूकता है तो दौनों को मजबूरी हो जाएगी काम करना। इसलिए दबाब बनाये रखिये। धन्यवाद!!
अथ श्री वेबसाइट कथा 😂😂
बोलो सियावर रामचन्द्र की जय
वाह वाह, बहुत अच्छे ..पढ़ कर आनंद आ गया।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी 😂😝
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