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चंदन गुप्ता की हत्या से व्यथित एक देशभक्त की चिट्ठी देश के नाम!




भारत माता की जय,
हिंदुस्तान ज़िंदाबाद,
वन्दे मातरम।।
नोट: जिसकी भावनाएं आहत हुई हों Unfriend/Mute/Block कर दें, लेकिन आपको मेरी जान लेने का हक इस देश के संविधान ने अभी तक दिया नहीं है।

"क्या अब हमें हमारा ही राष्ट्रध्वज फहराने की परमिशन लेनी पड़ेगी? क्या अब हम किसी इलाके में तिरंगा लेकर जाने में आजाद नहीं हैं? क्या हमारा संविधान हमें देश में किसी भी जगह घूमने और रहने की आजादी देने में असमर्थ है? यदि नहीं तो फिर इस बात का मनन होना चाहिए कि आखिर क्यों देश के अंदर ही मजहबी बस्तियों में भारतीय ध्वज की गरिमा को ठेस पहुँचाई जा रही है? आखिर क्यों देश का नागरिक "भारत माता की जय" बोलने पर मौत के घाट उतार दिया जाता है? प्रश्न शाश्वत हैं, लेकिन इसका उत्तरदायी है कौन? हमारा संविधान या हमारी सरकार ? यदि इनमें से कोई नहीं तो ज़रूरी है ये प्रश्न अपने आप से पूछे जाएं क्योंकि आज जो चन्दन गुप्ता के साथ हुआ कल को हम में से किसी के साथ भी हो सकता है।"


लिखने-बोलने को मेरे पास भी बहुत कुछ है, लेकिन मैं शुध्द शाकाहारी हूँ, जानवरों तक से हिंसा पसन्द नहीं करता, पाशविक और हिंसक प्रवृत्ति के लोगों को यदि कुछ बुरा लगा हो तो मुझे गोली मार सकते हैं। रोज सुबह अकेले दोपहिया बाहन से ऑफिस के लिए निकलता हूँ, रात के अंधेरे में घर वापस आता हूँ। कत्ल करने के लिए एकदम सटीक समय है। मैंने कोई insurance policy भी नहीं ले रखी है जिससे मेरी मौत का घरवालों को फायदा हो, मैं कोई जुनैद भी नहीं हूं जिसकी व्यक्तिगत लड़ाई में हुई मौत का मीडिया "Mob lynching" नाम दे दे, मैं अखलाख भी नहीं हूँ जिसको मरने के बाद 4 फ्लैट, 10 लाख और एक सरकारी नौकरी दे दें राजनेता। मैं रोहित बमूला भी नहीं हूँ जिसके लिए दलित राजनीति का रंग दिया जा सके और राजनेता 6-7 महीने अपनी रोटियां सेंक सकें। मैं किसान गजेंद्र भी नहीं हूँ जिसको कि राजनैतिक स्वार्थ के लिए भरी सभा में फांसी पर लटकने छोड़ दिया गया हो। मैं ऐसा कोई भी नहीं हूँ जिसकी मौत का लाभ मरणोपरांत किसी को मिलता हो। मैं एक आम इंसान हूँ जिसके मरने का गम नजदीकी लोगों या पारिवारिक जनों को हो सकता है लेकिन किसी प्रकार का लाभ किसी को नहीं मिलेगा।

मेरा कसूर बस इतना है मैं तिरंगे से मोहब्बत करता हूँ, वन्दे मातरम बोलने में परेशानी नहीं है। भारत वर्ष के टुकड़े नहीं देखना चाहता, पाकिस्तान को मैं एक देश से ज्यादा कुछ नहीं मानता। अगर इसमें किसी की भावनाओं को चोट पहुंची हो तो वो वेशक मार सकता है, उसकी हिम्मत इसलिए है क्योंकि भारतीय संविधान मेरे मौलिक अधिकार को मुझे देने में कहीं न कहीं असमर्थ है।

मेरे पास समानता का अधिकार है लेकिन मुझे अपने देश द्वारा ही भेदभाव का सामना करना पड़ता है। मैं हिन्दू धर्म में पैदा हुआ तो मेरे वोट तक की कोई राजनेता इज्जत नहीं करता। केवल ब्राम्हण होने की वजह से अनारक्षित श्रेणी में रखा गया, किसी भी सरकारी एग्जाम की फीस मुझसे पूरी वसूली जाती है क्योंकि सरकारी तंत्र में भेदभाव है।

मेरे पास प्रारंभिक शिक्षा का अधिकार है लेकिन उसके बाद यही सरकारी तंत्र हमें कॉलेज में प्रवेश लेने पर फिर से आरक्षण के नाम पर भेवभाव कर देता है। फिर नौकरी के नाम पर भेदभाव, फिर नौकरी में प्रमोशन पर भेदभाव।

मेरे पास धार्मिक स्वतंत्रता है लेकिन मैं दीपावली पर पटाखे नहीं चला सकता, दीप नहीं जला सकता क्योंकि प्रदूषण फैलता है लेकिन भेदभाव देखिए लाखों चर्च में करोड़ों कैंडल जलाने से किसी भी प्रकार का प्रदूषण नहीं फैलता। हम दही-हांडी का आयोजन नहीं कर सकते। हम होली नहीं खेल सकते क्योंकि पानी बर्बाद होता है इसके विपरीत अमीर लोग स्वमिंग पूल में रोज पानी बदलें उसका कुछ नहीं। मैं जलीकट्टू नहीं मना सकता क्योंकि जानवरों पर अत्याचार होता है इसके विपरीत बकरीद पर बकरों को काटने की धार्मिक आजादी मिली हुई है। मुझे किसी की धार्मिक स्वतंत्रता से कोई लेना देना नहीं लेकिन मुझे मेरे देश में धार्मिक स्वतंत्रता पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है।

मेरे पास अभिव्यक्ति की आजादी है लेकिन हो सकता है यही पोस्ट ही किसी की भावनाएं भड़काने के चक्कर में हटाना पड़ जाए।

मैं भारतीय संविधान में वर्णित "फ्लैग कोड" को भी मानता हूँ और मेरी निष्ठा भी इसी देश के लिए है फिर भी मेरी मौत का किसी को दुख नहीं होगा।


‌"अगर हमें तिरंगा लहराने की लिखित परमिशन नहीं थी तो क्या हम पर तेजाब फेंकने की और बन्दूक से हमला करने की लिखित परमिशन ली गई थी? "भारत तेरे टुकड़े होंगें" कहने वाले जीवित हैं लेकिन "भारत माता की जय कहने वाले क्यों मार दिए जा रहे हैं? अगर स्कूल बस पर हमले करने वाले आतंकवादी करार दिए जा रहे थे तो ये लोग कौन हैं जो हमारे देश में रहकर ही पाकिस्तान के समर्थन में और हिंदुस्तान के विरोध में तमंचे लहरा रहे थे?

"चन्दन की मां एकदम सही कह रही हैं, अगर भारत माता की जय कहना गुनाह है तो हम सब वो गुनाह करेंगे। भारतीय सरकार अगर हमारा संरक्षण करने में असमर्थ है तो फिर हम मरने को तैयार हैं।


क्योंकि न तो मैं दलित हूँ, न मुसलमान हूँ, न ही कश्मीरी, बंगलादेशी या रोहिंग्या। मुझसे किसी भी मीडियाई चैनल को सहानुभूति भी नहीं हूँ। आज जो चन्दन गुप्ता के साथ कासगंज में हुआ, कल मेरे साथ भी हो सकता है या फिर मेरे जैसे लोगों के साथ हो सकता है। दुःख तो इस बात का है कि हम इसका रोना भी नहीं रो सकते भारत सरकार के समक्ष कि हमारे मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है क्योंकि उन्होंने संविधान में पहले से ही इसकी काट "अपवाद" के रूप में तैयार कर रखी है।
लेकिन अगर कोई आतंकवादी मुझे अपनी बन्दूक का निशाना बना लेता है तो आपको फिक्र करने की ज़रूरत नहीं है आप ऐसे ही सोफे पर बैठकर क्रिकेट मैच के मजे लीजिये, चाय की चुस्कियों के साथ मौसम का आनंद उठाइये और अज्ञानता से अपनी आंखें यूँही बन्द करके रखिये। आपकी यही असमर्थता आपको आने वाले समय के दुष्परिणाम से अवगत कराएगी। आज जिस गोली का निशाना मैं बन रहा हूँ, कल को आप भी हो सकते हैं... नहीं नहीं ... ये क्या कह रहा हूँ मैं आप तो अमृत पीकर आये हैं मृत्युलोक में।

समय देने के लिए धन्यवाद!!

सोचा था यह वीडियो गणतंत्र दिवस पर पोस्ट लिखकर तिरंगा हाथ मे लेकर भारत माता की जय बोलते सैनिकों को समर्पित करुंगा, पर कासगंज की इस ह्रदयविदारक घटना पर "गणतंत्र दिवस" पर कुछ लिखने की इच्छा ही नही हुई, खैर अपना चंदन भी हाथ मे तिरंगा और ओठो पर भारत माता की जय के नारे के साथ शहीद हुए हैं भले बॉर्डर पर ना हुआ हो पर शहीद तो तिरंगे के लिए हुआ ना, इसलिए यह वीडियो मैं चंदन को उसके परिजनों को समर्पित कर श्रद्धाजंलि देता हूँ।

--- एक तिरंगाप्रेमी देशभक्त भारतीय

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Ashwani Dixit (@DIXIT_G)





टिप्पणियाँ

  1. आंखे नम हो गईं ये पत्र पढ़कर
    कल से ही भारत माँ के सपूत चन्दन गुप्ता का हंसता मुस्कुराता चेहरा आंख के आगे से ओझल नहीं हो रहा। उसके माता पिता और परिवार की स्थिति सोचके ही रूह कांप जाती है। राष्ट्रीय दिवस मनाने बच्चे घर से निकलें और वो सही सलामत लौट के आयेंगें या नहीं सोच सोच के दिल घबराता रहे क्या इसी स्वतंत्रता का सपना देखा था हमारे वीर क्रांतिकारियों ने??

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