सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

द‌िल्ली में सरकारी सेवा घर-घर पहुंचाने की योजना पर मची तकरार, जानें सच क्यों एलजी बैजल ने लौटाई फाइल


1993 में दिल्ली विधानसभा के पुनःस्थापित होने के बाद से राज्य ने पाँच मुख्यमंत्री देखे है ..मदनलाल खुराना साहिब सिंह वर्मा, सुषमा स्वराज, शीला दीक्षित और अब अरविंद केजरीवाल। इन पांचो ही मुख्यमंत्रियों को केंद्र में विरोधी पार्टी की सरकार के साथ काम करना पड़ा हैं। अरविंद केजरीवाल को छोड़ बाकी चारो मुख्यमंत्रियों की कभी भी केंद्र सरकार या LG से कोई अनबन की खबर मीडिया में नहीं आयी। मज़े की बात को तो ये है कि केजरीवाल और पूर्व  LG नजीब जंग की जंग के पहले तक कम ही लोगो को पता था कि LG नाम का भी कोई पद होता है।

लोगो को लगा कि नजीब जंग के जाने के बाद केजरीवाल के संबंध नए LG से कुछ मधुर हुए होंगे और दिल्ली के विकास कार्यो को गति प्रदान होगी, पर एक बार फिर ऐसा हो न सका।

ताजा मामला यह है की केजरीवाल सरकार के जनसुविधाओं को घर पर डिलीवर करने के महत्त्वकांक्षी योजना पर LG अनिल बैजल ने रोक लगा दी है। यह हम नही कह रहे हैं, ये बात केजरीवाल जी और उनके डिप्टी मनीष सिसोदिया साहब ट्वीट कर के बता रहे है। गौरतलब है कि एक बयान  में LG का कहना है कि उन्होंने रोक नहीं लगाई है बल्कि एक सुझाव दिया है की इस फैसले पर पुनर्विचार करें और एक वैकल्पिक मॉडल तैयार करें।

पर हमेशा की तरह अपनी राजनीति चमकाने के लिए मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री ने दनादन ट्वीट कर के लाइमलाइट बटोरने का सिलसिला शुरू कर दिया।


पहले हम ये जानने की कोशिश करते है कि आखिर यह सेवा है कौन सी? जिसे केजरीवाल लोगो को पहुंचाना चाहते हैं। पिछले महीने दिल्ली सरकार ने यह घोषणा की थी कि अगले 3 से 4 महीने में दिल्ली के नागरिकों को 40 जनसेवाएं उनके दरवाज़े पर उपलब्ध होंगीं जिसमे जाती प्रमाण पत्र मूलनिवासी लाइसेंस नल कनेक्शन जन्मप्रमाण  इत्यादि शामिल हैं।

केजरीवाल जी ने कैबिनेट मीटिंग में ये फैसला भी ले लिया था। उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया का दावा है कि देश मे पहली बार कोई सरकार गवर्नेंस को घर घर तक पहुचाने को कटिबद्ध है आगे सिसोदिया जी ने बताया कि वो एक प्राइवेट एजेंसी हायर करेंगे जो स्कीम का क्रियान्वन करेगी। एजेंसी के द्वारा ही मोबाइल सहायकों को hire किया जाएगा जो कॉल सेंटर स्थापित करेंगे, पहले फेज में जाति, मूलनिवासी, लाइसेंस, मैरिज सर्टिफिकेट, नये नल कनेक्शन को शामिल किया गया हैं।

उदाहारण के तौर पर अगर कोई लाइसेंस बनवाना चाहता है तो कॉल करे ,मोबाइल सहायक घर आएगा बायोमेट्रिक उपकरण और कैमरा ले कर ,डॉक्यूमेंट वेरीफाई करेगा जमा करेगा फ़ोटो लेगा और यह पूरा कार्य न्यूनतम शुल्क पर किया जाएगा इसके आगे दूसरे चरण में 30 और सेवाओं को जोड़ा जाएगा।

अब यह सारी चीजे सुनने में तो बड़ी अच्छी लगती है की सरकार जनता का कितना ख्याल रख रही पर जब आप बारीकी से इसका विश्लेषण करेंगे तो इसके पीछें की राजनीति और क्रियान्वन में होंने  वाली समस्याओं को समझ जाएंगे, जिनकी वजह से LG ने इस प्रस्ताव को पुनर्विचार के लिए वापस भेज दिया हैं।

👉 सबसे पहला सवाल तो आपके मन मे ये कौंधना चाहिये की जो राजनैतिक दल जनलोकपाल की सवारी कर के सत्ता में आया उसने 3 साल में लोकपाल तो बनाया नहीं पर इस स्कीम में 3 महीने की समय अवधि देने के बाद भी एक महीने के अंदर  इसको आनन फानन में क्यों लागू करना चाहता है ? 

तो जवाब सीधा है ,ये जनता का पानी के 20 % बढ़े हुए दामो से ध्यान भटकाने का आम आदमी पार्टी का हथकंडा है। जो पार्टी "बिजली का बिल हाफ और पानी का बिल साफ" के नारे के साथ चुनाव जीती हो वो पानी के मुद्द्दे पर जनता का गुस्सा कभी मोल लेना नहीं चाहेगी।

👉 दूसरी बात जब प्रधानमंत्री भ्रस्टाचार कम करने के लिए  डिजिटल इंडिया को बढ़ावा देनी की बात कर रहे है और पूरे देश मे Digitilization तेजी से हो रहा है तो आखिर क्यों केजरीवाल सरकार देश की राजधानी को 20वी शताब्दी की तरफ ढकेलना चाहती है? जिन 40 सेवाओ को घर तक पहुचाने का दावा किया जा रहा उनमें से 35 शीला दीक्षित सरकार के समय से ही ऑनलाइन है, क्यों बाकी 5 और सेवाओं को ऑनलाइन कर के 100 % Dijitilization नहीं करना चाहती सरकार? 

👉 तीसरा सवाल सुरक्षा का है, खासकर महिलाओं और बुजुर्गों की सुरक्षा का, जब मोबाइल सहायक को अपने कार्यं के लिए घर पर बुलाएंगे नागरिक तो उन सहायकों से सुरक्षा मुहैया उन्हें कौन करवाएगा? जिस पार्टी के मंत्रियों पर राशन कार्ड बनवाने के नाम पर महिलाओ के यौन शोषण के पुख्ता आरोप पहले से है वो अब प्राइवेट कंपनी को काम दे देगी तो कल को कोई अप्रिय घटना हो गयी तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ? 

‌👉 चौथा सवाल ये उठता है कि क्यों सरकारी सेवाओं को देने के लिए प्राइवेट कम्पनी को hire किये जाने का प्रस्ताव है ? क्या ये मात्र अपने लोगो को रेवड़ियां बांटने के लिए किया जा रहा? पहले भी स्वास्थ मंत्री सतेंद्र जैन ने गलत तरीके से अपनी बेटी को पद दिया था जो भारी विरोध के बाद उसको छोड़ना पड़ा। क्या ठेका देने के नाम पर पार्टी फंड के लिए चंदा उगाही की जाएगी ? 

👉 सरकारी डिपार्टमेंट को एक कानून के तहत समयबद्ध तरीके से काम निपटाना होता है, पर प्राइवेट कंपनी पर कोई कानून लागू नहीं होगा, फिर जनता की सुध कौन लेगा?

👉 दिल्ली में प्रदूषण और ट्रैफिक जाम एक बड़ी समस्या है। ऐसे में आप ऑनलाइन की बजाय अपने मोबाइल सहायक को घर घर भेज के सड़को में प्रदूषण और ट्रैफिक जाम नहीं बढ़ा रहे है? 

यही सब बातें उनकी ही पार्टी के विधायक कपिल मिश्रा जी भी उनसे पूछ रहे हैं देखिये!

आप केजरीवाल सरकार का 3 साल का रिकॉर्ड उठा कर देख ले, आम आदमी पार्टी का उद्देश्य कभी जनता की सेवा करना नही रहा, वो हर दूसरे मुद्द्दे पर केंद्र सरकार या LG से भिड़ंत की स्थिति में आ जाते है। हर मामले में रायता फैला कर सामने वाले पर दोष मढ देते है।

आज वो सवाल कर रहे है कि जनता का चुना हुआ नुमाइंदा कौन है ..हम या LG?  


कल जब केंद्र सरकार से ठनेगी तो क्या करेंगे? नया बहाना तलाशेंगे ..क्योंकि जनता के नुमाइंदे तो वह भी है।

अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इस पोस्ट का लिंक फेसबुक, ट्विटर , व्हाट्सएप आदि सोशल साइट्स पर जरूर शेयर करे।

लेखक से ट्विटर पर मिले -  अंकुर मिश्रा (@ankur9329)





टिप्पणियाँ

  1. केजरीवाल को पूरी तरह से एक्सपोज कर दिया को जन जन तक पहुंचना चाहिए.

    जवाब देंहटाएं
  2. ये भी केजरी सरकार की रेबरी बाटने का एक नया तरीका है ... और पार्टी को चंदा मिले ...https://epostmortem.blogspot.com/logout?d=https://www.blogger.com/logout-redirect.g?blogID%3D4378567378735690687%26postID%3D977323346215209094

    जवाब देंहटाएं
  3. जिसे काम नही करना हैं तो उसके लिए लाख बहाने हैं, वरना सारा देश जानता हैं कि 2004 से 2014 तक गुजरात की प्रगति कैसे केंद्र सरकार रोकती रही हैं, पर गुजरात का ही काम देखकर जनता ने मोदी जी को PM बना दिया, पर केजरीवाल सर नही समझेंगे।

    जवाब देंहटाएं
  4. यह सब केजरीवाल का चंदे का धंधा हैं बिलकुल सही पकड़े हैं

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भारत को अमेरिका पर विश्वास क्यों नहीं करना चाहिए?

ऐसा शीर्षक पढ़कर बहुत सारे लोगों को कुछ अटपटा लग सकता है, ऐसा इसलिए है या तो वो लोग अंतरराष्ट्रीय राजनीति की गहरी जानकारी नहीं रखते या फिर उनका जन्म 90 के दशक में हुआ होगा। USSR के पतन और भारत के आर्थिक सुधारों के बाद भारत का राजनैतिक झुकाव अमेरिका की ओर आ गया है लेकिन इसके पहले स्थिति एकदम विपरीत थी। भारत रूस का राजनैतिक सहयोगी था, रूस कदम कदम पर भारत की मदद करता था। भारत की सरकार भी समाजवाद से प्रेरित रहती थी और अधिकतर योजनाएं भी पूर्णतः सरकारी होती थीं, निजी क्षेत्र बहुत ही सीमित था। ये सब बदलाव 1992 के बाद आये जब भारत आर्थिक तंगी से गुजर रहा था और उसका सहयोगी USSR (सोवियत संघ रूस) विखर चुका था, तत्कालीन प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री को इस परेशानी से निकलने का कोई विचार समझ में नहीं आ रहा था अतएव भारत ने विश्वबैंक की तरफ रुख किया और विश्वबैंक की सलाह पर ही निजी क्षेत्रों में विस्तार किया गया और भारतीय अर्थव्यवस्था को मिश्रित अर्थव्यवस्था बना दिया गया। यहीं से शुरुआत हो जाती है भारत की नई राजनीति की। जहां तक मेरे राजनैतिक दृष्टिकोण की बात है मैं ये पोस्ट बस इतिहास के विभिन्न पहलुओं पर

Selective Journalism का पर्दाफाश

लोकतंत्र के चार स्तंभ होते हैं कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका और मीडिया जो इस देश को लोकतान्त्रिक तरीके से चलाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। कार्यपालिका जवाबदेह होती है विधायिका और जनता के प्रति और साथ ही दोनों न्यायपालिका के प्रति भी जवाबदेह होते है। इन तीनो की जवाबदेही भारतीय संविधान के हिसाब से तय है, बस मीडिया के लिए कोई कानून नहीं है, अगर है तो इतने मज़बूत नहीं की जरूरत पड़ने पर लगाम लगाईं जा सकें। 90 के दशक तक हमारे देश में सिर्फ प्रिंट मीडिया था, फिर आया सेटेलाइट टेलीविजन का दौर, मनोरंजन खेलकूद मूवी और न्यूज़ चैनल की बाढ़ आ गयी. आज  देश में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय चैनल को मिला के कुल 400 से अधिक न्यूज़ चैनल मौजूद है जो टीवी के माध्यम से 24 ×7 आपके ड्राइंग रूम और बैडरूम तक पहुँच रहे हैं। आपको याद होगा की स्कूल में हम सब ने एक निबन्ध पढ़ा था "विज्ञान के चमत्कार" ...चमत्कार बताते बताते आखिर में विज्ञान के अभिशाप भी बताए जाते है. ठीक उसी प्रकार जनता को संपूर्ण जगत की जानकारी देने और उन्हें जागरूक करने के साथ साथ मीडिया लोगो में डर भय अविश्वास और ख़ास विचारधार

निष्पक्ष चुनाव आयोग : EVM की झूठ का पर्दाफाश

यूपी में अभी निकाय चुनाव हुए हैं जिसमे भाजपा ने फिर से अपना बहुत अच्छा प्रदर्शन दोहराया हैं, विपक्षी पार्टियों की करारी हार हुई हैं। अब इस करारी हार के बाद होना यह चाहिए कि विरोधी पार्टियों को आत्ममंथन शुरू करना चाहिए कि वो आखिर जनता का मूड भांपने में कहाँ असफल रहे, उनसे क्या क्या गलतियां हुई? इसे आने वाले इलेक्शन में कैसे सुधारा जाए ताकि वो एक बार फिर जनता का भरोसा जीत सके, लेकिन यह करने के बजाय विपक्षी पार्टियां यह बताने में व्यस्त हैं कि हम इसलिए हारे की दूसरे खिलाड़ी ने बेईमानी की हैं, जनमानस में भ्रम पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। यह भ्रम की स्थिति विजेता पार्टी बीजेपी चाहे तो मिनटों में खत्म कर सकती हैं, क्योकि दोनो पक्ष जानते हैं कि चुनावी प्रक्रिया बहुत ही पारदर्शी हैं और सभी राजनैतिक दल के चुने हुए कुछ कार्यकर्ता अपनी पार्टी की तरफ से बूथ प्रतिनिधि बनकर सरकारी पोलिंग अफसर के साथ वोटिंग के हर चरण में मौजूद रहते हैं। बस यही चुनावी प्रक्रिया जनता को प्रेस कांफ्रेंस करके समझा दिया जाए तो EVM हैकिंग जैसे झूठ तुरन्त खत्म हो जाये .. लेकिन ऐसा जीते हुई पार्टी के लोग भी नही करना