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सुशासन का खोखलापन, बिहार में प्रताड़ित होते ईमानदार अधिकारी

"सच्चाई और ईमानदारी के पथ पर चलने वाले लोगो को अक्सर ठोकरे खाने को मिलती है, अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है लेकिन अंत में जीत उन्ही की होती है।"

यह वह ज्ञान है जो वास्तविक दुनिया में कम और किताबो में ज्यादा दिखता है, लोगो मुँह से बोलते जरूर है लेकिन वास्तविक तौर पर चरित्र में इसका अनुसरण करने वाले कम ही दिखते है। बिहार में ईमानदार अफसर वरदान की तरह होते हैं, आम जनता में हीरो यही होते है क्योकि यहाँ नेताओ का काम सदियों से लोगो को बस लूटना रहा है और उनसे बिहार की आम जनता को वैसे भी कोई उम्मीद नहीं रहती। आम जनता हो या एक ईमानदार अफसर, दोनों का जीवन बिहार में हर तरह से संघर्षपूर्ण रहता है। उनको परेशान करने वाले बस अपराधी ही नहीं बल्कि स्थानीय नेता और विभागीय अधिकारी भी होते है।
गरीबी, पिछड़ापन और आपराधिक प्रवृत्ति लोगो द्वारा जनता का उत्पीड़न आपको हर तरफ देखने को मिल जायेगा। हालात ऐसे हैं कि लोग यहाँ थाने से बाहर अपने विवाद सुलझाने के लिए इन छुटभैये गुंडों को पैसे देते हैं जो जज बनकर लोगो का मामला सुलझाते है, क्योकि वो दरोगा के रिश्वतखोरी वाले जाल में नहीं फंसना चाहते। 

शराबबंदी के बाद भी धड़ल्ले से शराब की कालाबाज़ारी होती हैं और स्थानीय विधायक मजे से विदेश दौरे में लगे रहते है। फिर यहाँ पर नियुक्ति होती है एक सशक्त, कर्मठ और ईमानदार पुलिस अधिकारी की। वो महज 2 साल में गुंडे मवालियो की नाक में दम कर देती है और छुटभैये गुंडे दिखने बंद हो जाते है। लोग अपनी समस्या लेकर पुलिस के पास जाना शुरू करते हैं, क्योकि रिश्वत लेने वाला हर दरोगा डर से ही सही लेकिन ईमानदारी के रास्ते पर चलना शुरू कर देता हैं। ऐसे वरिष्ठ अधिकारी कानून व्यवस्था के साथ साथ सामाजिक कार्यो में भी रूचि लेते है, जैसे किसी गरीब की बेटी का स्वयं के खर्च पर शादी करवाना, स्थानीय विद्यालय को गोद लेना, शिक्षा को बढ़ावा देना, नशा मुक्ति अभियान से लोगो को जागरूक करना इत्यादि। ऐसे अधिकारी लोगो के लिए असली हीरो से कम नहीं होते और पुरे क्षेत्र के लिए तो वरदान साबित होते है।

लेकिन बिहार की राजनीति और भष्ट्र प्रशासन ऐसे ईमानदार अफसर को ढंग से जीने नहीं देते। स्वाभाविक है, जब नेताओ का काम अधिकारी करने लगेंगे तो अपना वर्चस्व उनको खतरे में नज़र आता है और ऐसे में छोटे मोटे नेता ही नहीं, यहाँ तक की विधायक भी धमकी देने पर उतर जाते हैं और कभी कैरियर बर्बाद करने की तो कभी तबादले की और यहाँ तक की पारिवार को चोट पहुंचने की भी धमकी देते हैं। 

बेनीपट्टी क्षेत्र दशकों से नेताओ और छुटभैये नेताओ द्वारा पाले गुंडों मवालियो का गढ़ रहा है। यहाँ की DSP को विभागीय अधिकारियो द्वारा इतना प्रताड़ित किया गया कि मजबूरन इन्होने सोशल मीडिया में अपना दर्द जाहिर किया और अपनी आवाज ऊपर तक पहुंचाने कोशिश की लेकिन सरकार ने इसे नज़रअंदाज़ कर दिया। आम तौर एक ट्वीट से जनता तक अपनी मदद पहुंचाने वाले नेता अपने ही विभाग के अधिकारियों ने भी इसकी कोई सुध नहीं ली।



बेनीपट्टी की अधिकारी ही एकमात्र उदाहरण नहीं हैं, हाल के एक अन्य मामले में IAS जीतेन्द्र गुप्ता के बचाव में सुप्रीम कोर्ट को आगे आना पड़ा लेकिन जिस तरह से जीतेन्द्र गुप्ता को बिहार सरकार में यातनाये झेलनी पड़ी वो इस बात का खुलासा करती है कि बिहार सरकार ईमानदार अधिकारियो के प्रति कतई संवेदनशील नहीं है। जीतेन्द्र गुप्ता ने भ्रष्ट पुलिस अधिकारियों द्वारा अवैध ट्रक ढुलाई को सरकार के सामने रखने की कोशिश की लेकिन उल्टा उनके ऊपर ही रिश्वतखोरी का इल्जाम डालकर उनको जेल में डाल दिया गया।  



एक अन्य मामले में पुलिस अधिकारी सुशील कुमार यादव ने सीनियर अधिकारियो द्वारा अत्यंत मानसिक प्रताड़ना झेलने के बाद थाने में आत्महत्या कर लिया था। इस मामले को मामूली जांच के बाद रफा दफा कर दिया गया। क्या बिहार सरकार के लिए एक पुलिस अधिकारी की जान इतनी मामूली है?


सब इंस्पेक्टर बीरेंदर कुमार का आत्महत्या करना भी सरकार को अत्यंत शर्मसार करने वाला था। सब इंस्पेक्टर बीरेंदर कुमार को 16 माह से वेतन नहीं मिला था, और वेतन का भुगतान करने के लिए उनसे 40 हजार रुपये की रिश्वत माँग की जा रही थी। इनका परिवार कमजोर आर्थिक स्थिति और बेटे की महँगी पढाई से वैसे ही जूझ रहा था और अगर ऐसी स्तिथि में 40 हजार रिश्वत की मांग की जाय तो कोई भी व्यक्ति मानसिक रूप से कमजोर पड़ सकता है। 



ऐसे कई मामले बिहार में बाहर भी नहीं आने पाते और विभागीय या गन्दी राजनीती का शिकार होकर दबा दिए जाते हैं। ईमानदार अधिकारियो के हाथ बाँध दिए जाते हैं और भष्ट्र अधिकारियों के वारे न्यारे होते हैं। 

हर काम को चाव से छापने वाली मीडिया भी उनके तकलीफों को बाहर नहीं आने देते। ऐसे मामलो में प्रशासनिक कार्यवाही होना तो दूर इसकी सुध भी नहीं ली जाती। ईमानदार अफसर को प्रताड़ित किया जाता है लेकिन सुशासन का खोखला दावा करने वाले नितीश सरकार ऐसे मामलो में गांधारी की तरह आँख पर पट्टी बाँध लेती है। सरकार तक इनकी तकलीफ पहुंचाने की पूरी कोशिश की जाती है लेकिन वो इन मामलो की तरफ देखते तक नहीं। 

एक सामान्य कार्य करवाने के लिए भी बिहार में आपको निचले कर्मचारी से लेकर ऊपर तक,सबको रिश्वत देनी पड़ती है। कोर्ट कचहरी के चक्कर में पड़े तो जनाब आपको इंसाफ मिलने से रहा और अगर गलती से थाने पहुंच गए तो रपट लिखने से पहले थानेदार की जेब गरम करनी होती है। ऐसा नहीं है की ये समस्या सिर्फ बिहार की है अपितु देश के हर कोने में रिश्वतखोरी की समस्या देखने को मिलती है, लेकिन बिहार में ये समस्या अंदर तक है और रिश्वतखोरी लोगो के खून में कैंसर की तरह समाया हुआ है।

यहाँ काम करने का सुगम तरीका यही होता है-या तो भष्ट्राचार की गंगा में धारा प्रवाह बहते जाइये या फिर अपने सिद्धांतो से समझौता कर लीजिये अन्यथा आप कितना ही अच्छा काम करे, आपको दर दर की ठोकरे ही मिलती है। बिहार में अगर सच में सुशासन स्थापित करना है तो सरकार को ईमानदार अधिकारियो को प्रोत्साहित करना होगा और उन्हें अच्छा काम करने के लिए खुले हाथ देने होंगे। क्योकि जहाँ से भी ईमानदार और सशक्त अधिकारियो का तबादला होता है वहां वापस जंगलराज बनते देर नहीं लगती और वापस से लूटपाट और गुंडागर्दी का माहौल बन जाता है। बिहार की जनता को भी ये समझना होगा सुशासन केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है और बस ईमानदार अधिकारियो के भरोसे सुशासन स्थापित नहीं किया जा सकता। छुटभैये गुंडों को पैसे देकर अपने मामले सुलझाने के बजाय वो भी नैतिक रास्ता अपनाये। 


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