क्या हम बैंक में जमा अपनी सारी पूंजी खो देगे? क्या हमारा एकाउंट सुरक्षित है? क्या बैंक हमारे वो सारे पैसे ले लेगा जो हमने अपने बच्चों के भविष्य के लिए जमा कर रखे थे? यह वह सवाल है जो फिलहाल हर किसी के मन मे कौंध रहे हैं। हर वो व्यक्ति जिसने बैंक में पैसा जमा किया है वह यह उम्मीद करता है की जब उसको उन पैसों की आवश्यकता होगी बैंक उन्हें वो पैसे बिना किसी रोक टोक के निकालने देगा।
क्या हो अगर बैंक पैसे लौटाने से इनकार कर दे?
ऐसे ही सवाल से संशय के बादल हटाने के लिए हमने ये ब्लॉग लिखने की जरूरत समझी। हमारा प्रयास है की हम लोगो को बता पाएं की बैंक में उनका पैसा एकदम सुरक्षित है और जो बिल आने वाला है उसका स्टेटस क्या है।
मीडिया के हलकों में ये खबरें है कि भारत सरकार जल्द ही संसद के पटल पर ऐसा बिल रखने जा रही है कि जिसमें बैंक को Bail in का प्रावधान होगा। जिसके फलस्वरूप जमाकर्ता अपना पैसा खो देंगे और उनके रिटर्न में कुछ नहीं मिलेगा ..
सबसे पहले तो हम ये समझने की कोशिश करते है कि bail in और bail out आखिर होता क्या है?
Bail In - जब कोई कंपनी दिवालिया होने की कगार पर होती है और उसको बचाने के लिए उसके लेनदारों और खाताधारकों को नुकसान उठा कर उस संस्था को ऐसी विकट स्थिति से बाहर निकाला जाता है तो उसको bail in कहते है।
Bail out - इसमें वित्तीय संस्था को घाटे से बाहर निकालने के लिए बाहरी मदद की जाती है। अमूमन सरकार ही टैक्सपेयर जनता के पैसों से कम्पनी की मदद करती है।
Bail in की तुलना में bail out ज्यादा प्रचलन में होता है .
FRDI { Financial Resolution and Depositors Insurance bill } 2017 संसद के मानसून सत्र में संसद के पटल पर रखा गया था, जो फिलहाल संयुक्त संसदीय समिति द्वारा जांचा परखा जा रहा है। इस विवादित बिल को बहुतों ने लाल झंडी दिखा दी है यह कहते हुए की यह गरीब आदमी और आम आदमी के खिलाफ है ..
हमें जल्द ही निष्कर्ष पर नहीं आना चाहिए, पहले हमें ये समझना होगा किस तरह ये यूरोपियन सिस्टम से इतर ये बिल भारत के लिए सुरक्षित है।
हमारे देश में बैंकों को चलाने के लिए कुछ कानून है, और उन कानूनों को रिज़र्व बैंक संचालित करता है और जमाकर्ताओ के पैसे का बीमा Deposit Insurance and Credit Guarantee Corporation of India (DICGCI) करती है।
DICGC पूरी तरह से रिज़र्व बैंक के अधीन है और हर बैंक के लिए अनिवार्य होता है कि वो DICGC से रजिस्टर हो।
यहाँ एक महत्वपूर्ण बात नोट करने की यह है की 1 लाख तक कि जमा राशि (मूलधन +ब्याज) का बैंक से ही बीमा रहता है, और DICGC जिम्मेदारी लेता है वह बैंक के दिवालिया होने की सूरत में खाताधारक को एक लाख का भुगतान करेगा ( इसलिए अगर आपके पास 1 लाख से ज्यादा राशि है तो 1 से ज्यादा बैंक में खाता खोलना बेहतर है )।
1 लाख से ज्यादा की राशि को असुरक्षित लेनदार की तरह माना जाता है और बैंक के दिवालिया या liquidation की स्थिति में ऐसे लेनदारों का भुगतान को प्राथमिकता नहीं दी जाती ....हां पर यह है कि आपकी राशि सुरक्षित रहेगी।
अब हम आते है FRDI बिल पर, इस बिल में कोई भी ऐसा संशोधन प्रस्तावित नहीं है जिसका धारकों के सुरक्षित जमा रकम पर दुष्प्रभाव हो। यह बिल एक संकल्प समिति (resolution corporation )की स्थापना करना चाहता है जो उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करे।
बैंक में जमा होने वाले पैसे के बीमा करने की ज़िम्मेदारी और अधिकार दोनों ही इस resolution corporation को दे कर DICGC को भंग कर दिया जाएगा।
इस प्रस्तावित resolution corporation का एक कार्य ये भी होगा कि वो पता करें कि कौन सी वित्तीय संस्था निकट भविष्य में दिवालिया होने या किसी संकट में पड़ने की स्थिति में है और इसकी वह data mining, शोध करवाएगा जिससे वह कोई भी वित्तीय आपदा आने की स्थिति के लिए वो पहले से तैयार रहे।
जिस वजह से इस बिल को लेकर इतनी अफवाह फैली हुई है वो है बिल की धारा 52, जिसमे bail in की बात की गई है।
हमे इस bail in को यूरोपीय सिस्टम के bail in से कंफ्यूज़ नहीं करना चाहिए जहां पर बैंकों को डूबने से बचाने धारकों का पैसा डूबा दिया जाता है। हमारे देश मे bail out का सिस्टम है जहां भारत सरकार बैंकों को दिवालिया होने से बचाती है।
2016-17 वित्त वर्ष के अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने साफ साफ कहा था की
"Financial resolution and depository bill 2017 संसद की स्टैंडिंग कमिटी में विचाराधीन है और ये बिल वित्तीय संस्थाओं और धारकों के हितों की रक्षा के लिए लाया जा रहा है, भारत सरकार पूरी तरह से वचनबद्ध है इनके हितों की रक्षा करने हेतु।"The Financial Resolution and Deposit Insurance Bill, 2017 is pending before the Standing Committee. The objective of the Government is to fully protect the interest of the financial institutions and the depositors. The Government stands committed to this objective.— Arun Jaitley (@arunjaitley) December 6, 2017
15 मार्च 2016 को अतिरिक्त सचिव अजय त्यागी ( वित्त मंत्रालय ) की अध्यक्षता में 1 समिति का गठन हुआ। कमिटी में वित्त विभागों से जुड़े और DICGC के भी नुमाइंदे थे।
कमिटी ने अपनी रिपोर्ट जमा की जिसके आधार पर FDRI बिल का प्रारूप तैयार किया गया ..वित्त मंत्रालय ने इस ड्राफ्ट पर सुझाव मांगे और अंतः कैबिनेट ने इस बिल को संसद के पटल पर रखने की अनुमति दी।
बिल के मुख्य बिंदु
1. FRDI बिल के अनुसार वित्तीय आपदा के समय मे धारकों के हितों की रक्षा वित्त मंत्रालय करेगा।
2. इस बिल का एक उद्देश्य वित्तीय संस्थाओं में एक डिसिप्लिन का निर्माण करना भी होगा ताकि धारकों की राशि का bail in के लिए प्रयोग न हो।
3. यह बिल अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाने के लिए भी कार्य करेगा, साथ साथ वित्तीय आपदाओं से निपटने के लिए सिस्टम को मज़बूत बनाने का काम भी करेगा।
4. इस बिल का एक लक्ष्य मौजूदा ढांचे को मजबूत करना और सुचारू रूप से चलाना भी है ताकि खुदरा व्यापारियों को मदद मिले।
5. पांचवा लक्ष्य इस बिल का ये है कि जो समय और धन खर्च हो रहा है इन वित्तीय संस्थाओं को उस बुरी स्थिति से निकालने में उसमे कमी लायी जाए।
नोट - कहीं पर भी इसमें ये नहीं लिखा कि जमा कर्ताओं की रकम डूब जाएगी या उनके हितों को नज़रंदाज़ किया जाएगा या बैंकों के हितों को प्राथमिकता दी जाएगी।
इसको लेकर जितनी भी बातें न्यूज़ चैनल से लेकर अखबारों और सोशल मीडिया पर हो रही है वो कोरी बकवास है। जिसका जनता के बीच भ्रम की स्थिति पैदा कर के सरकार की छवि धूमिल करना एकमात्र उद्देश्य है।
बहस के लिए बिल का पूरा प्रारूप अभी तक संसद में नही आया हैं इसलिए इस पर अभी किसी भी प्रकार की नाराजगी जताना या भ्रम की स्थिति पैदा करना सिर्फ आपकी अपरिपक्वता दर्शाता है। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, वामपन्थी दल चालाकी से सिर्फ clause 52 का जिक्र कर रही है ताकि जनता में असुरक्षा का भाव उत्पन्न हो सके।
हो सकता है कि स्टैंडिंग कमिटी के निकलने के बाद जब बिल आये तो उसके प्रारूप में बदलाव हो, इसलिए हमें एक जागरूक नागरिक होने के नाते किसी भी प्रकार हड़बड़ी और असुरक्षा का भाव न दिखाते हुए संसद के शीतकालीन सत्र का इंतज़ार करना चाहिए।
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Beware of propaganda being spread around FRDI Bill
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लेखकों से ट्विटर पर मिले
अनुवादक : अंकुर मिश्रा (@ankur9329)
ये बात सही है कि हमें संसद सत्र तक इन्तजार करना चाहिए । झूठे propoganda में नहीं फंसना चाहिए ।
जवाब देंहटाएंLogo me bahut afwah faili hain isko lekar
जवाब देंहटाएंबहुत सही जानकारी दी गयी हैं
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