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मार्च, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रामजन्मभूमि विवाद का इतिहास भाग-2

पहला भाग पढ़ने के लिए  यहाँ क्लिक करें   रामजन्मभूमि विवाद का इतिहास भाग-1 पूर्वाभास: पिछले भाग में आपने पढ़ा कि रामजन्मभूमि पर भव्य मंदिर का कैसे निर्माण हुआ, और पानीपत युद्ध मे पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद कैसे अयोध्या में लूटपाट की गई, मुगलों के आगमन और राणा सांगा की हार तक, अब आगे पढ़ें । मुगल बादशाह बाबर ने अपने सेनापति मीरबाकी खान को जलालशाह से मिल कर रामजन्मभूमि मन्दिर को तोड़ने की योजना बनाने के लिए अयोध्या भेजा। मीरबाकी खान और जलालशाह ने मंदिर के विध्वंस का पूरा कार्यक्रम बनाया जिसमे ख्वाजा कजल अब्बास मूसा भी शामिल हो गया। उधर बाबा श्यामनन्द जी अपने मुस्लिम शिष्यों की करतूत देख के बहुत दुखी हुए और अपने निर्णय पर उन्हें बहुत पछतावा हुआ। भगवान का मंदिर तोड़ने की योजना के एक दिन पूर्व दुखी मन से बाबा श्यामनन्द जी ने रामलला की मूर्तियाँ सरयू में प्रवाहित किया और खुद हिमालय की और तपस्या करने चले गए। मंदिर के पुजारियों ने मंदिर के अन्य सामान आदि हटा लिए और वे स्वयं मंदिर के द्वार पर खड़े हो गए उन्होंने कहा की रामलला के मंदिर में किसी का भी प्रवेश हमारी मृत्यु के...

रामजन्मभूमि विवाद का इतिहास भाग-1

ऐतिहासिक जानकारियों के साथ श्री रामजन्मभूमि आंदोलन के इतिहास पर धारावाहिक लेखों की श्रृंखला। भाग -1 6 अप्रैल 2018 । यह है सुप्रीम कोर्ट की दी हुई अगली तारीख उस केस की जिसने भारतीय राजनीति को बदल कर रख दिया, एक प्रधान मंत्री ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटकर मंदिर के दरवाजे खुलवाये तो दूसरे नेता ने रथ यात्रा निकाल कर अपनी पार्टी में लिए सत्ता के दरवाजे खोल दिये। सिर्फ भगवान राम ही नहीं, राम मंदिर आंदोलन की महिमा भी इतनी अपरम्पार है कि 1984 में 2 सीट जीतने वाली बीजेपी 1992 में 120 सीट तक पहुच गयी। 1992 से से लेकर आज तक राजनैतिक द्रष्टिकोण से प्रासंगिक है राम जन्मभूमि आन्दोलन। ये तो हुई 80 के दशक से आज तक कि बातें जो कि राजनीति में रुचि रखने तमाम वालों को पता होंगी पर रामजन्मभूमि उससे जुड़े आंदोलन घटनाओं और विवादों से जुड़ी ढेरों कथाएं है, जिनको एक पोस्ट में समाहित कर पाना बहुत जटिल कार्य है। हम चाहते है कि हमारे पाठकों को इस विषय से जुड़ी तमाम जानकारियां सुलभता से उपलब्ध हो ,इसलिए हम धारावाहिक की तरह आपके लिए राममंदिर आंदोलन पर एक श्रृंखला ला रहे हैं। त्रेता और द्वापर य...

राज्य सभा चुनाव

फोटो क्रेडिट :  northbridgetimes.com   राज्य सभा की 59 सीटों के लिए कल 23 मार्च को चुनाव होने जा रहा है .कल ही शाम तक नतीजों के साथ राज्य सभा की नई तस्वीर सबके सामने आ जायेगी. चूंकि ये इलेक्शन कम और सिलेक्शन ज्यादा होता था इसलिए आमतौर से राज्य सभा चुनाव खास इंटेटेस्ट का विषय नहीं होता था पर गुजरात में अहमद पटेल के चुनाव को जिस तरह अमित शाह ने रोचक बना दिया था उसके बाद जनता की इन चुनावों को लेकर दिलचस्पी बढ़ी है. दूसरा कारण ये भी है वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव से पूर्व ये चुनाव तब होने जा रहा था जब देश मे पुराने गठबंधन टूट रहे है और नये रिश्ते जुड़ रहे है .इसलिए ये कह पाना कठिन है कि किसका वोट किसको जाता है और यही चीज़ इन्हें दिलचस्प बना रही है सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के 27 उम्मीदवार मैदान में उतरेंगे , कार्यकाल समाप्त होने वाले सभी आठ केंद्रीय मंत्री चुनाव मैदान में है ..जहां कुछ स्थानों पर टक्कर है,वहीं अधिकांश उम्मीदवारों के निर्विरोध आने की संभावना है. सबसे पहले बात करते हैं बीजेपी की जिसके 27 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं. रिटायर होने वाले सभी आठ केंद्रीय ...

पढ़े हिन्दू नववर्ष का वैज्ञानिक और ऐतिहासिक महत्त्व

चैत्र नवरात्र के पहले दिन से वैदिक नववर्ष की शुरूआत होती है। इस वर्ष चैत्र नवरात्र 18 मार्च से प्रारम्भ हो रहे हैं। जबकि पहली जनवरी को मनाया जाने वाला नववर्ष अंग्रेजी नववर्ष है। हमारे देश मे एक वर्ग ऐसा हैं जो पश्चिम से प्रभावित रहता हैं उन्हें हम भारतीय पिछड़े लगते हैं वो लोग ईसाई नववर्ष को ऐसे महिमामंडित करते हैं जैसे ये नववर्ष ना होता तो हम आदिम युग में जी रहे होते। देखिये विरोध हम भी नहीं कर रहे हैं आपको मनाना हैं मनाइये कौन रोक रहा हैं मगर आप हमारे हिन्दू नववर्ष को अपने कुतर्को से अपमानित करने का प्रयास करेंगे तो यह हम नहीं होने देंगे। अगर आपको लगता हैं इसाई नववर्ष श्रेष्ठ हैं तो आइये आज हिन्दू और इसाई नववर्ष को वैज्ञानिक कसौटी पर परखते हैं। वैज्ञानिक कसौटी पर वैदिक नववर्ष इसवी सन गणना का आकाशीय पिंडो और ऋतुओ से कोई सम्बन्ध नहीं हैं इन्हें एक के बाद दो और दो के बाद तीन – इस गणना का ही ध्यान रहता हैं। रविवार के सोमवार क्यों आता हैं मंगलवार क्यों नहीं आता इसका इनको कोई ज्ञान नहीं पर भारतीय ज्योतिष का विद्यार्थी यह सभी गूढ़ रहस्य जानता हैं क्योकि वारो का नामकरण भारतीय ...

शहजादे पप्पू की आत्मकथा

Source- Google ज़िंदगी की शुरुआत जन्म से होती है और हमारी चांदी की चम्मच से व्हिस्की पीते हुए हुई थी। हुआ यूं कि पापा को बड़ा सा बरगद का पेड़ गिराकर धरती हिलाने से फुर्सत नहीं थी और मम्मी को श्रेया घोसाल के "मनमोहना" गाने पर दिल की आवाज़ सुनाने से, इस मार्मिक कंडीशन में हमारा साथ दिया डुग्गु काका ने। उन्होंने हमारे चमड़े के मुंह में स्मैक का कस ठूँस दिया और हमने उनके मुंह को नोटो से लबालब भर दिया। हमारी जिज्जी यूँ तो बड़ी फैशनेबल थीं लेकिन जब बात दारू पीने की आती तो बड़े बड़े शराबी फेल हो जाते; हफ्ते में एक दो बार जिज्जी एक बड़े से मयखाने पर ठीक वैसे ही कब्जा कर लेती जैसे हमारे किसान जीजू जमीनों पर कर लेते हैं। जिज्जी कलियुग की अभिमन्यु है, अभिमन्यु चक्रव्यूह भेदन गर्भ में सीखकर आता था और जिज्जी दारू के पैग अपनी टँकी में खाली करना सीख आई थीं। जिज्जी की छवि घरवालों ने घर के बाहर ठीक वैसी ही बनाई थी जैसी हमारी दादी की थी एकदम कड़क। हालांकि कड़क के नाम पर जिज्जी को केवल चाय ही पसन्द थी, लेकिन अब जो है सो है। हमारी माताश्री अपने जमाने की प्रिया वारियर थीं, अपनी एक गोली और ...

अथ श्री वेबसाइट कथा 😂😂

आइये आज हम आपको बताते हैं, हमारे ब्लॉग का जन्म कैसे हुआ। हुआ यूं कि हम लोग अपने बकरपुराण के डेली पाठ में व्यस्त थे। ऋषि युगपुरुष का प्रसंग आता तो ठहाका मार लेते, 50 साल के युवा का पसंग आता तो लोटपोट हो लेते और कोई मित्रों! चिल्ला देता और घिग्घी बंध जाती। सर पर पांव रखकर पुराने बटुए या ख़लीते से फटा पुराना पांच सौ का नोट निहार लेते। गरीब लोगों की यही जमा पूंजी होती है, दिन में एक बार दर्शन हो जाएं तो प्रभु कृपा हो जाती है। अब जब हम ही मिडिल क्लास तो हमारा ग्रुप मिडिल क्लास.. मित्रगण मिडिल क्लास। वैसे मिडिल का मतलब बीच का होता है या यूं कहिये सैंडविच। सरकार बड़ा सा हथौड़ा लेकर बजाए रहती है और नीचे वाले काल्पनिक शोषण का रोना रोते रहते हैं।  अगर चक्की वाले से आटे से तुलना की जाए तो सही मायने में यही आटा ही अपना जुड़वां भाई नज़र आता है। जब इतने दुःखी थे हम लोग, ऊपर से पत्रकारों की TV पर चिचियाने की आवाज़ तो ऐसी लगती जैसे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ यही लोग मिल बाँटकर लील गए। फिर ध्वनिमत से ये निर्णय लिया गया कि एक ब्लॉग बनाया जाएगा जिससे हम लोगो तक अपनी बात पहुँचाकर कम से कम प्रोपोगंडा...

फेमनिज्म से उलट एक भारतीय माँ की नजर में पुरूष समाज

                                                   चित्र साभार:N S Bendre अलौकिक अनुभव!! थोड़ी सी असुविधाएं और ढेर सी चिन्ताएं! विवाह के एक वर्ष के पश्चात जब ये समय मेरे जीवन में आया तो मेरे पास प्रतिक्रिया देने के लिये शब्द तो दूर भावों की भी बहुत कमी थी। लगा जैसे मैं स्वयं ब्रह्मा हो गयी हूँ,सृष्टि रचूंगी अब! लगा,विष्णु भी मैं ही हूँ,मेरा बच्चा मेरे शरीर से पलेगा! मैं गर्व से सराबोर थी! ईश्वर से कहती, "देखो मैं तो आप सी हो गयी हूँ।बस अपने बच्चे का लिंग निर्धारण नहीं कर सकती अन्यथा अपनी प्रथम संतान के रूप में बेटी स्वयं निर्मित कर लेती।आप कर सकते हो तो मुझे बेटी देना pleeeeeeeeezzzzz"; इन्हीं सब चिंताओं और मनःस्थिति के बीच मेरा गर्भकाल आगे बढ़ रहा था। प्रथम बार एक महिला किन किन चिंताओं से गुजरती है मायें जानती ही होंगी।संभवतः पिता भी अवश्य जानते होंगे। बच्चा स्वस्थ हो,हाथ पैर,नाक कान आदि ठीक ठाक हों जैसे विचार तो पीछा ...

विश्लेषण फूलपुर लोकसभा उपचुनाव भाजपा के लिए 2019 के आम चुनाव की प्री बोर्ड परीक्षा क्यों हैं? पढ़े

आज से पूरे एक वर्ष पहले उत्तर प्रदेश विधान चुनाव का नतीजा घोषित हुआ था और 14 वर्ष के वनवास के बाद भारतीय जनता पार्टी की सत्ता में वापसी हुई थी. जीत इसलिए भी खास थी क्योंकि मोदी लहर के बलबूते लोकसभा में 80 में से 73 सीट जीतने वाली पार्टी का ये बड़ा असेट टेस्ट था और पार्टी ने किसी भी कट्टर समर्थक की उम्मीद से भी ज्यादा 325 सीटों पर जीत हासिल की . गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनाये गए और फूलपुर के सांसद केशव प्रसाद मौर्या उपमुख्यमंत्री.  अब 2 वर्ष बाद लोकसभा की रिक्त हुई इन 2 सीटों पर उपचुनाव होना है सरसरी नज़र से देखने पर ही आप पाएंगे कि जहां गोरखपुर में बीजेपी का कोई मुकाबला नहीं दिख रहा वहीं फूलपुर में लड़ाई दिलचस्प और कांटे की टक्कर होती दिख रही है .. आमतौर से लोगो को दिलचस्पी मुख्यमंत्री की सीट के चुनाव पर होती पर यहां मामला उल्टा है फूलपुर चुनाव कई मायनो से महत्वपूर्ण हो गया पहला कारण बसपा का सपा को समर्थन देना, दूसरा कारण लोकसभा चुनाव के 1 वर्ष पहले ये बीजेपी के लिए pre बोर्ड की तरह से देखा जा रहा. सपा बसपा के गठबंधन पर देश भर के तमाम राजनैतिक दलों की नज...

लेनिन की मूर्ति गिराए जाने के मायने

जैसा की आजकल सुर्ख़ियों में छाया हुआ है कि जैसे ही बीजेपी की सरकार बनने की घोषणा त्रिपुरा में हुई वैसे ही लेनिन की मूर्ति ध्वस्त कर दी गई. आइये जानते हैं इस खबर के पीछे का पूरा सच - आइये सबसे पहले जानते हैं आखिर लेनिन थे कौन? और इनके स्टेचू इंडिया में आखिर क्यों हैं?  व्लादिमीर लेनिन का जन्म २२ अप्रैल १८७० में सिम्बर्स्क (रूस) में हुआ था लेकिन इनका असली नाम लेनिन नहीं था. इनका असली नाम था व्लादिमीर इलिच उल्यानोव, इन्होने अपना सरनेम लेनिन खुद से ही रख लिया था. उस समय रूस में जार का शासन था. गरीब बेहद गरीब थे और देश का सारा पैसा केवल कुछ ही लोगों के पास था. जगह जगह इसका विरोध होता रहता था इसका विरोध करने वालों में से लेनिन के बड़े भाई भी थे जिनको जार ने मरवा दिया था क्योंकि वो तानाशाह को मरवाने के षड्यंत्र में लिप्त पाए गये थे. लेनिन के पिता की मृत्यु पहले ही हो चुकी थी तो अब परिवार की गरीबी का पूरा बोझ लेनिन के कन्धों पर ही होता है. इस घटना का लेनिन के जीवन पर असर काफी दिनों तक देखा गया था. बचपन में ही लेनिन को ये आभास हो जाता है कि जार के पास कितनी शक्तियां हैं और ये शक्तिय...

राजदीप सरदेसाई की पत्रकारिता के शर्मनाक किस्से भाग-2

पत्रकार राजदीप सरदेसाई पर लिखी हमारी पहली पोस्ट पाठकों ने हाथों हाथ लिया और सिर्फ 2 दिनों में उस पोस्ट को 3 हजार से ज्यादा लोगो ने पढ़ा और अभी भी वह पोस्ट रोज पढ़ी जा रही हैं, और लोग लगातार दूसरे भाग की माँग कर रहे हैं, हमारे ऊपर विश्वास जताने के लिए आप सभी पाठकों का अत्यंत आभार और धन्यवाद। राजदीप सरदेसाई भले ही खुद को बड़ा काबिल पत्रकार समझें, लेकिन सच यह है कि राजदीप सरदेसाई ने पत्रकारिता नामक लोकतंत्र के खम्भे को जितना कलंकित किया हैं, शायद ही किसी और पत्रकार ने ऐसी निकृष्टता पत्रकारिता के क्षेत्र में दिखाई हो। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि जिस पत्रकार का गुजारा ही दूसरे से सवाल पूछ कर चलता हो उसी पत्रकार से जब आम जनता सवाल पूछती हैं तो ये सवाल पूछने वाले को ट्रोल्स/संघी/भक्त कहकर जवाब देने की जगह ट्विटर पर ब्लॉक कर देते हैं। यह ट्रोल्स/संघी/भक्त का सर्टिफिकेट सरदेसाई साहब जेब मे रखकर चलते हैं और सुविधानुसार लोगो को बांटते चलते हैं। एक बार जिसे यह सर्टिफिकेट दे दिया समझिए उसकी सवाल पूछने की eligibility खत्म, सरदेसाई साहब का मानना हैं ऐसे लोगो को जवाब देने की जरूरत नही हैं। मुझ...