सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

क्या है राफेल सौदा और क्या है इससे जुड़ा विवाद, यहाँ जाने विवादों से सम्बंधित हर सवाल का जवाब

संसद से लेकर मीडिया तक राफेल सौदे पर बवाल मचा हुआ हैं, आइये हम आपको बताते हैं कि भारत को राफेल डील की क्यो जरूरत हैं और क्या हैं पर्दे के पीछे का सच।

रॉफेल डील की जरूरत


सबसे पहले तो यह समझ ले कि हमे अपनी सैन्य तैयारियां चीन के मुकाबले में करनी हैं क्योकि पड़ोसी देशों में सबसे शक्तिशाली दुश्मन हमारा चीन हैं, जिससे एक युद्ध हम लड़ चुके हैं और करारी हार के साथ अपनी जमीन भी हमने खोई हैं। ऐसा नही था कि हमारे सैनिक कमजोर थे या हमारे हौसले कम थे, हम हारे तो सिर्फ हथियारों की वजह से, तत्कालीन नेहरू सरकार चीन की साम्रज्यवादी मंसूबो का आकलन ही नही कर पाई, पंचशील सिद्धांतो की आड़ में सेना के आधुनिकीकरण की अवहेलना की गई जिसकी वजह से इस हार का सामना करना पड़ा था। आज भी हमारा सबसे बड़ा दुश्मन चीन हैं अगर हम उसे साधने में कामयाब रहे तो पाकिस्तान अपने आप सध जाएगा। यहाँ एक महत्वपूर्ण बात यह भी हैं कि युद्ध की स्थिति में हमे दो फ़्रंट पर लड़ना पड़ सकता है एक चीन दूसरा पाकिस्तान, इसलिए हमारी वायुसेना अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों से लेकर हथियार से लैस होनी चाहिए, क्योकि युद्ध के परिणाम अब वायुसेना ही तय करती हैं।

ग्लोबल फायरपावर वेबसाइट जो दुनिया के  देशों का सैन्य आकलन करती हैं उसके मुताबिक चीन में 1,271 सैनिक या इंटरसेप्टर विमान हैं जबकि भारतीय सेना में 676 ऐसे विमान हैं. इसी तरह, चीन में 1,385 हमले वाले विमान हैं जबकि भारतीय वायु सेना के पास 809 लड़ाकू विमान हैं। ऐसे में हमे अपनी वायु सेना की मारक क्षमता बढ़ाने की बहुत जरूरत हैं।

हमारी वायु सेना को अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए कम से कम 42 लडा़कू स्क्वाड्रंस की जरूरत हैं, लेकिन अभी हमारी वास्तविक क्षमता सिर्फ 34 स्क्वाड्रंस हैं, इसलिए 126 लड़ाकू विमान खरीदने का योजना बनी और सबसे पहले यह प्रस्ताव अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार ने रखा था, पर 2004 में उनकी सरकार गिर जाने की वजह से इस प्रस्ताव को कांग्रेस सरकार ने बढ़ाया और 126 एयरक्राफ्ट की खरीद को अगस्‍त 2007 में मंजूरी दी थी। यहां से ही बोली लगने की प्रक्रिया शुरू हुई, इसके बाद आखिरकार 126 विमानों की खरीद का आरएफपी जारी किया गया। राफेल की सबसे बड़ी खासियत ये है कि ये 3 हजार 800 किलोमीटर तक उड़ान भर सकता है।


कई साल तक लटका रहा डील


भारतीय वायुसेना ने कई विमानों के तकनीकी परीक्षण और मूल्यांकन के बाद साल 2011 में यह घोषणा की कि राफेल और यूरोफाइटर टाइफून उनकी अपेक्षा के अनुकूल हैं।

साल 2012 में राफेल को एल-1 बिडर घोषित किया गया और इसके मैन्युफैक्चरर दसाल्ट ए‍विएशन के साथ कॉन्ट्रैक्ट पर बातचीत शुरू हुई, लेकिन आरएफपी अनुपालन और लागत संबंधी कई मसलों की वजह से साल 2014 तक यह बातचीत अधूरी ही रही, और यह सौदा कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में फाइनल नही हो पाया।


मोदी सरकार ने किया समझौता


साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी सरकार बनी तो उसने इस दिशा में फिर से प्रयास शुरू किया गया। पीएम की फ्रांस यात्रा के दौरान साल 2015 में भारत और फ्रांस के बीच इस विमान की खरीद को लेकर समझौता हुआ और इस समझौते में भारत ने जल्द से जल्द 36 राफेल विमान फ्लाइ-अवे यानी उड़ान के लिए तैयार विमान हासिल करने की बात कही गयी।

समझौते के अनुसार विमानों की आपूर्ति भारतीय वायु सेना की जरूरतों के मुताबिक उसके द्वारा तय समय सीमा के भीतर होनी थी और विमान के साथ जुड़े तमाम सिस्टम और हथियारों की आपूर्ति भी वायुसेना द्वारा तय मानकों के अनुरूप होनी है, और इसकी एक महत्त्वपूर्ण शर्त यह भी हैं कि लंबे समय तक विमानों के रखरखाव की जिम्मेदारी फ्रांस की होगी।

कांग्रेस को क्या आपत्ति है?


कांग्रेस समेत विपक्ष के कई दल लगातार फ्रांस के साथ हुए इस करार को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। कांग्रेस लगातार 36 विमानों की कीमत को लेकर सवाल उठा रही है।

कांग्रेस का आरोप है कि मोदी सरकार ने देश की नामी कंपनी एचएएल को नजरअंदाज कर दिया है। सौदे से एचएएल को बाहर कर रिलाइंस ग्रुप को फायदा पहुंचाया गया है। जबकि 2015 के यूपीए की डील में फ्रांस की डासू एविएशन और एचएएल में करार हुआ था।

एनडीए सरकार ने 2015 की सभी शर्तों को बदल कर पूरी तरह नया सौदा किया, खबरों के मुताबिक एनडीए के सौदे में 36 राफेल लड़ाकू विमान के लिए 58 हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे।

विवादों की हकीकत 


सबसे पहला सवाल तो कांग्रेस की तरफ यह उठता हैं की जब 2012 में कांग्रेस ने रॉफेल सौदे की सारी जरूरतें पूरी करके मंजूरी दे दी थी और वायुसेना की स्वीकृति भी मिल गयी थी तो इसे उस वक्त क्यों नही ख़रीदा गया था? क्या यह सौदा कमीशन के चक्कर मे लटका कर रखा गया था? पूर्व में भी कांग्रेस द्वारा किये रक्षा सौदों में कमीशनखोरी की बात सामने आती रही हैं।

गोपनीयता - रही बात जानकारी सार्वजनिक नही करने की, तो 2005 में तत्कालीन रक्षा मंत्री प्रणव मुखर्जी ने भी कहा था कि रक्षा सौदों का विवरण "सुरक्षा कारणों" की वजह से सार्वजनिक नही किया जा सकता हैं। साल 2008 में भारत और फ्रांस के बीच गोपनीयता सार्वजनिक ना करने के लिए समझौता हुआ था जिस पर यूपीए सरकार ने हस्ताक्षर किये थे और कांग्रेस जब सत्ता में थी, तब उसने भी इस समझौते का पालन किया था और तत्कालीन रक्षामंत्री एके एंटनी ने इस क्लासिफाइड जानकारी बता कर किसी भी तरह की इन्फॉर्मेशन देने से इनकार कर दिया था। अब जवाब यहाँ कांग्रेस को देना हैं कि उसने ऐसा समझौता क्यो किया था? और जब उसने "देश की सुरक्षा" का हवाला देते हुए जानकारी देने से इनकार किया तो आज कौन सी परिस्थिती बदल गयी?

रॉफेल फाइटर विमान में किस टाइप की सुरक्षा उपकरण लगे हैं, विमान कौन से हथियारों से लैस हैं, इसकी मारक क्षमता आदि के विषय मे राहुल गांधी जानकर क्या करेंगे? चीन में भी रॉफेल विमानों की भारत द्वारा खरीद पर हलचल मची हुई हैं, उनका रक्षा मंत्रालय भारत की बढ़ती वायु शक्ति से चिंतित हैं और इस माहौल में राहुल गांधी चीनी राजदूत से कई दौर की बैठक कर चुके हैं, क्या यह बैठक ऐसी ही गोपनीय जानकारियों के साझा करने के उद्देश्य से तो नही हो रही, जो वह सरकार पर भष्ट्राचार जैसे बड़े आरोप लगा कर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। हमें इस मामले को इस परिपेक्ष में भी समझने की जरूरत होगी।

प्राइस बढ़ने के कारण

विमान के साथ तकनीक ट्रान्सफर भी हो रहा हैं और विमान को नए हथियारों से लैस भी किया जा रहा हैं इसके साथ प्राइस बढ़ने के पीछे इन्फ्लेशन का भी हाथ है। यह विमान अब 2008 के प्राइस पर नही मिल सकता उसमे इन्फ्लेशन ऐड किया जाता है क्योकि ऑरिजनल डील में यह क्लॉज भी था।

रही बात Hindustan Aeronautics Limited की तो उसे इस लिए डील से बाहर किया गया था की, Dassault Aviation का कहना था HAL 3 गुना टाइम मांग रहा हैं एक राफेल प्रोड्यूस करने में और इतने समय मे वो 3 विमान बना लेते हैं, इससे अपने आप एक जेट की कीमत कई गुना बढ़ जाती है।

अब बात डील में रिलायंस के शामिल होने की, तो यह डील सिर्फ भारत और फ्रांस सरकार के बीच हैं और इसमे रिलायंस कही भी शामिल नही हैं, रिलायंस का अपना एग्रीमेंट Dassault Aviation के साथ हैं और यह एग्रीमेन्ट साल 2012 में हुआ था। जो आप यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इस पोस्ट का लिंक फेसबुक, ट्विटर , व्हाट्सएप आदि सोशल साइट्स पर जरूर शेयर करे।


लेखक से ट्विटर पर मिले - 
Awantika‏🇮🇳 (@SinghAwantika)





टिप्पणियाँ

  1. हम आम लोगों की जागरूकता बढ़ाने के लिए धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. कांग्रेस की आपत्ति बेवजह है। सौदे में पारदर्शिता है मोदीजी पर पूरा भरोसा जनता कर सकती है कार्यकाल के रिकॉर्ड देखने के बाद

    जवाब देंहटाएं
  3. आपके ऐसे लेखों से काफी जानकारियां मिलती हैं🙏🙏👍👍

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद, जुड़े रहिये हमसे हम आपको हमेशा नई जानकारी देते रहेंगे, दोस्तो के साथ यह पोस्ट जरूर शेयर करे।

      हटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भारत को अमेरिका पर विश्वास क्यों नहीं करना चाहिए?

ऐसा शीर्षक पढ़कर बहुत सारे लोगों को कुछ अटपटा लग सकता है, ऐसा इसलिए है या तो वो लोग अंतरराष्ट्रीय राजनीति की गहरी जानकारी नहीं रखते या फिर उनका जन्म 90 के दशक में हुआ होगा। USSR के पतन और भारत के आर्थिक सुधारों के बाद भारत का राजनैतिक झुकाव अमेरिका की ओर आ गया है लेकिन इसके पहले स्थिति एकदम विपरीत थी। भारत रूस का राजनैतिक सहयोगी था, रूस कदम कदम पर भारत की मदद करता था। भारत की सरकार भी समाजवाद से प्रेरित रहती थी और अधिकतर योजनाएं भी पूर्णतः सरकारी होती थीं, निजी क्षेत्र बहुत ही सीमित था। ये सब बदलाव 1992 के बाद आये जब भारत आर्थिक तंगी से गुजर रहा था और उसका सहयोगी USSR (सोवियत संघ रूस) विखर चुका था, तत्कालीन प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री को इस परेशानी से निकलने का कोई विचार समझ में नहीं आ रहा था अतएव भारत ने विश्वबैंक की तरफ रुख किया और विश्वबैंक की सलाह पर ही निजी क्षेत्रों में विस्तार किया गया और भारतीय अर्थव्यवस्था को मिश्रित अर्थव्यवस्था बना दिया गया। यहीं से शुरुआत हो जाती है भारत की नई राजनीति की। जहां तक मेरे राजनैतिक दृष्टिकोण की बात है मैं ये पोस्ट बस इतिहास के विभिन्न पहलुओं पर ...

A ticking Nuclear Bomb of Healthcare - NCT of Delhi

Let us understand current state of affairs with health care in NCT of Delhi and fallacious situation under current AAP government. Delhi have 60,000 doctors, which are registered with DELHI Medical Council (DMC). According to a DMC official, the top hospitals which are allegedly under the scanner of DMC include Max Healthcare, BLK Hospital, Apollo Hospital, Sir Ganga Ram Hospital, Metro Hospitals, Rockland Hospital, St Stephen Hospital, Balaji Hospital, Jaipur Golden Hospital, Hedgewar Hospital, Lady Hardinge Hospital, Maharaja Agrasen Hospital and Madan Mohan Malviya Hospital. The complaints that DMC receives are related to medical negligence, inflated bills, quacks practicing medicine or running their clinics. Apart from this, most private/ clinics hospitals have become clique of big pharma companies in benefit of regular gifts and international conferences to the doctors; profit margins is what makes the deal attractive. While Mohalla Clinic a temporary porta ca...

BUDGET 2018 EXPECTATIONS and reality | Take a look Union #Budget2018

Much-awaited Modi government’s fifth Union Budget is about to come in just few hours.  People, industry bodies and politicos are all waiting for this. The Budget 2018 is crucial as this is just before the big 2019 Lok Sabha Polls. It will also be crucial as assembly elections will be held in big states like Karnataka, Rajasthan Madhya Pradesh. It's first one after the implementation of Goods and Services Tax (GST). What can we expect from union budget 2018? Increase in the exemption limit for medical reimbursement, from the current Rs 15,000 to Rs 30,000. Increase in the deduction under Section 80D/80C. Long term Policy to be framed to cover unorganized sector in income tax umbrella. Increase in the conveyance allowance limit. Probably more of good news to central government employees. More stress on self employment, extending facilities like loan on easy terms. Ministry of Road transport and highways, may surely be a factor for boom in civil jobs. Organic f...