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दुनिया के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन आरएसएस - सांस्कृतिक राष्ट्रवाद या साम्प्रदायिक संगठन ..पढ़े धारणाओं को तोड़ता एक विश्लेषण


हम हमेशा से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस ) से आम जनता का असल परिचय कराना चाहते थे. वे लोग जो राजनीती में रूचि रखते हैं या फिर राजनैतिक गतिविधियों की जानकारी रखते हैं, वो तो आरएसएस से भली भाँती परिचित है पर जो राजनीती से थोड़ा दूर है उनके मन में आरएसएस की वही छवि गढ़ी हुई है जो ६०  वर्ष सत्ता पर काबिज़ कांग्रेस पार्टी ने मीडिया और वामपंथी लेखकों और  इतिहासकारो की माध्यम से गढ़वा दी.

महात्मा गाँधी के हत्यारे, आज़ादी की लड़ाई में अंग्रेज़ो का साथ देने वाले, देश के संविधान को नहीं मानने वाले, भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने साम्प्रदायिकता फैलाने वाले, यह सब बातें सैकड़ो बार बोली और लिखी जा चुकी और आज का लेटेस्ट आरोप संघ पर ये है की सरसंघचालक मोहन भगवत जी ने भारतीय सेना का अपमान किया।



ये है मोहन भगवत जी का वह  वीडियो  जिसको ले कर विवाद हुआ. बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में भागवत जी ने एक कार्यक्रम में क्या कहा और भारतीय मीडिया ने धज्जी का सांप कैसे बनाया स्वयं सुन सकते है. यहाँ भागवत जी कह रहे हैं की देश को अगर जरुरत हुई और भारत के संविधान ने इसकी अनुमति दी तो स्वयं सेवक को सेना 3 दिन में ट्रेंड सकती है जबकि उसी कार्य के लिए किसी आम नागरिक पर सेना को 6 माह काम करना पड़ेगा. कायदे से इस बात में कोई विवाद नहीं होना चाहिए था पर अपनी आदत से मज़बूर दिन बा दिन विश्वसनीयता के नए रसातल पहुँचते मीडिया ने इस खबर को इस तरह से प्रचारित किया की मानो जैसे मोहन भागवत एक स्वयं सेवक की तुलना भारतीय सैनिक से कर रहे हो, कुछ ने तो इसे भारतीय सेना के खिलाफ संघ के विद्रोह तक से तौल दिया, खैर इस पूरे वाकये में सबसे हास्यास्पद वह लोग दिखे जो मानवाधिकार के उल्लंघन से लेकर सेना को बलात्कारी तक बता चुके है, कश्मीर से  AFSPA हटाने की मांग वर्षो से करते आ रहे हैं और यहाँ जैसे ही संघ  के खिलाफ एक मौक़ा मिला तो सेना के समर्थक बनने का ढोंग करने लगे।

खैर विवाद को बढ़ता देख संघ ने तुरंत लिखित स्पष्टीकरण भी दे दिया .


27 सितम्बर 1925 को विजयदशमी  के दिन डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक की स्थापना की थी. और आपको यह जानकर हैरानी होगी कि दुनिया में शायद ही किसी संगठन की इतनी आलोचना की गई होगी. वह भी बिना किसी आधार के. संघ के ख़िलाफ़ लगा हर आरोप आख़िर में पूरी तरह कपोल-कल्पना और झूठ साबित हुआ है.  

कोई शक नहीं कि आज भी कई लोग संघ को इसी नेहरूवादी दृष्टि से देखते हैं. हालांकि ख़ुद नेहरू को जीते-जी अपना दृष्टि-दोष ठीक करने का एक दुखद अवसर तब मिल गया था, जब 1962 में देश पर चीन का आक्रमण हुआ था. तब देश के बाहर पंचशील और लोकतंत्र वग़ैरह आदर्शों के मसीहा जवाहरलाल न ख़ुद को संभाल पा रहे थे, न देश की सीमाओं को.

आज़ादी के पहले से लेकर आज तक देश के निर्माण कार्य में संघ ने अनगिनत बार योगदान किया है, पर ये इतिहास की कुछ चुनिंदा घटनाएं जो अमर है, देश का वामपंथी मीडिया इन खबरों को कम दिखाता है 

1) कश्मीर सीमा पर निगरानी, विभाजन पीड़ितों को आश्रय

संघ के स्वयंसेवकों ने अक्टूबर 1947 से ही कश्मीर सीमा पर पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों पर बगैर किसी प्रशिक्षण के लगातार नज़र रखी. यह काम न नेहरू-माउंटबेटन सरकार कर रही थी, न हरिसिंह सरकार. उसी समय, जब पाकिस्तानी सेना की टुकड़ियों ने कश्मीर की सीमा लांघने की कोशिश की, तो सैनिकों के साथ कई स्वयंसेवकों ने भी अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए लड़ाई में प्राण दिए थे. विभाजन के दंगे भड़कने पर, जब नेहरू सरकार पूरी तरह हैरान-परेशान थी, संघ ने पाकिस्तान से जान बचाकर आए शरणार्थियों के लिए 3000 से ज़्यादा राहत शिविर लगाए थे.

2) 1962 का युद्ध

सेना की मदद के लिए देश भर से संघ के स्वयंसेवक जिस उत्साह से सीमा पर पहुंचे, उसे पूरे देश ने देखा और सराहा. स्वयंसेवकों ने सरकारी कार्यों में और विशेष रूप से जवानों की मदद में पूरी ताकत लगा दी – सैनिक आवाजाही मार्गों की चौकसी, प्रशासन की मदद, रसद और आपूर्ति में मदद, और यहां तक कि शहीदों के परिवारों की भी चिंता. जवाहर लाल नेहरू को 1963 में 26 जनवरी की परेड में संघ को शामिल होने का निमंत्रण देना पड़ा. परेड करने वालों को आज भी महीनों तैयारी करनी होती है, लेकिन मात्र दो दिन पहले मिले निमंत्रण पर 3500 स्वयंसेवक गणवेश में उपस्थित हो गए.

3) कश्मीर का विलय 

 कश्मीर के महाराजा हरि सिंह विलय का फ़ैसला नहीं कर पा रहे थे और उधर कबाइलियों के भेष में पाकिस्तानी सेना सीमा में घुसती जा रही थी, तब नेहरू सरकार तो - हम क्या करें वाली मुद्रा में - मुंह बिचकाए बैठी थी. सरदार पटेल ने गुरु गोलवलकर से मदद मांगी.


गुरुजी श्रीनगर पहुंचे, महाराजा से मिले. इसके बाद महाराजा ने कश्मीर के भारत में विलय पत्र का प्रस्ताव दिल्ली भेज दिया 

4) 1965 के युद्ध में क़ानून-व्यवस्था संभाली 


पाकिस्तान से युद्ध के समय लालबहादुर शास्त्री को भी संघ याद आया था. शास्त्री जी ने क़ानून-व्यवस्था की स्थिति संभालने में मदद देने और दिल्ली का यातायात नियंत्रण अपने हाथ में लेने का आग्रह किया, ताकि इन कार्यों से मुक्त किए गए पुलिसकर्मियों को सेना की मदद में लगाया जा सके. घायल जवानों के लिए सबसे पहले रक्तदान करने वाले भी संघ के स्वयंसेवक थे. युद्ध के दौरान कश्मीर की हवाईपट्टियों से बर्फ़ हटाने का काम संघ के स्वयंसेवकों ने किया था. 

5) आपातकाल

1975 से 1977 के बीच आपातकाल के ख़िलाफ़ संघर्ष और जनता पार्टी के गठन तक में संघ की भूमिका की याद अब भी कई लोगों के लिए ताज़ा है. सत्याग्रह में हजारों स्वयंसेवकों की गिरफ्तारी के बाद संघ के कार्यकर्ताओं ने भूमिगत रह कर आंदोलन चलाना शुरु किया. आपातकाल के खिलाफ पोस्टर सड़कों पर चिपकाना, जनता को सूचनाएं देना और जेलों में बंद विभिन्न राजनीतिक कार्यकर्ताओं –नेताओं के बीच संवाद सूत्र का काम संघ कार्यकर्ताओं ने संभाला. 

6) सेवा कार्य 


1971 में ओडिशा में आए भयंकर चंक्रवात से लेकर भोपाल की गैस त्रासदी तक, 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों से लेकर गुजरात के भूकंप, सुनामी की प्रलय, उत्तराखंड की बाढ़ और कारगिल युद्ध के घायलों की सेवा तक - संघ ने राहत और बचाव का काम हमेशा सबसे आगे होकर किया है. भारत में ही नहीं, नेपाल, श्रीलंका और सुमात्रा तक में.   

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक नजर में

- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संस्थान है। यह संघ या आरएसएस के नाम से अधिक लोकप्रिय है।
- आज देशभर में 50 हजार से अधिक शाखाएं और उनसे जुड़े 90 लाख स्वयंसेवक हैं।
- आरएसएस के मेंबर्स का न तो रजिस्ट्रेशन होता है और न ही इन्हें कोई आईडी कार्ड या बिजनेस कार्ड दिया जाता है।
- देश का हर नागरिक कभी भी इसमें आ सकता है और कभी भी इससे अलग हो सकता है।
- इसका मुख्यालय महाराष्ट्र के नागपुर में है। संघ की पहली शाखा में सिर्फ 5 लोग शामिल हुए थे।
- इसकी स्थापना की प्रेरणा केशवराव को प्रथम विश्व युद्ध में बनी यूरोपियन राइट-विंग से मिली थी।
- देश भर में आरएसएस के हजारों स्कूल, चैरिटी संस्थाएं और विचारों के प्रसार के लिए क्लब हैं।
- दिल्ली में आरएसएस की स्वीपर कालोनी रैली में 1947 में महात्मा गांधी भी शामिल हुए थे और स्वयंसेवको को संबोधित किया था।


- संघ की महिला विंग को राष्ट्रीय सेविका समिति के नाम से जाना जाता हैं, इसकी स्थापना केशव बी हेगडेवार ने स्थापित किया था साल 1936 में मावशी केलकर इसकी पहली संस्थापक अध्यक्ष बनी थी वर्तमान में सुनीला सोहनी इसकी प्रमुख हैं और इसकी चार हजार शाखाओं में 7 लाख सदस्य हैं।



यकीन मानिये अगर पंडित अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी संघ की पृष्टभूमि से  बीजेपी में आकर भारत के प्रधान मंत्री नहीं बने होते तो शायद संघ के विषय में इतनी जानकारी भी लोगो को नहीं होती क्योंकि संघ सिर्फ कार्य करने में विश्वास रखता है. उनका मानना है की भारत हमारी माँ है और माँ की सेवा का भला कोई प्रचार करता हैं।

लिंक

1- दैनिक भाष्कर - RSS है दुनिया की सबसे बड़ी स्वयंसेवी संस्था, ऐसा है इनके काम का तरीका

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