कांग्रेस उपाध्यक्ष, गांधी परिवार के युवराज और मोदी जी की भाषा मे बोले तो शहजादे राहुल गांधी आज गैरहिन्दू हिन्दू मुद्दे पर चर्चा का विषय बने हुए हैं।
कुछ दिन पूर्व राहुल बाबा ने कहा था कि वो शिवभक्त है और संयोग देखिये कल जो शिवजी के मंदिर में हुआ उसके बाद भक्त तो छोड़िए उनके हिन्दू होने पर ही सवाल उठने लग गया।
दरअसल बात यह हैं कि सोमनाथ मंदिर में गैर हिन्दुओ को सिग्नेचर करने होते है और यहां राहुल गांधी जी नाम से कोई चिड़िया उड़ा गया।
उधर राहुल गांधी के नाम की चिड़िया क्या उड़ी मानो कांग्रेस पार्टी के तोते उड़ गए, आनन फानन में कांग्रेस प्रवक्ताओं की फौजो ने प्रेस कांफ्रेंस कर युद्ध छेड़ दिया ठीक वैसे जैसे करणी सेना ने संजय लीला भंसाली के खिलाफ छेड़ रखा हैं।
कांग्रेस के प्रखर प्रवक्ता राजदीप सुरजेवाला जी ने केजरीवाल सर के अंदाज में खुलासा करते हुए समस्त पृथ्वी के चराचर को यह कहकर अचंभित कर दिया कि राहुल गांधी जी न सिर्फ हिन्दू है बल्कि जनेऊधारी भी है, खैर यह बात और है कि जनेऊ किस बगल पहनते है पूछने पर राहुल गांधी बगले झांकने लगेंगे।
खैर अब राहुल गांधी जी को बजरंग दल के किसी कट्टर हिन्दू से ज्यादा हिन्दू बताने की कांग्रेस प्रवक्ताओं में होड़ सी मच गयी हैं।
ऐसे में रणदीप सुरजेवाला जी हमारी सलाह हैं कि राहुल बाबा को इतना विराट हिन्दू न घोषित कर देना कि आर्चबिशप और मौलवी लोग एक जॉइंट फतवा निकाल दें कि "ऐ ईमानवालों, क्रॉसवालों और राहुल बाबा को वोट कतई न देना", क्योकि सच्चाई तो यह है कि रिलिजन वाले कॉलम में राहुल बाबा आज भी बोल्ड और कैपिटल में वोट बैंक लिखते है।
अब जबकि राहुल गांधी कट्टर हिन्दू लकड़बग्गे बता दिए गए है वो भी जनेऊधारी तो संघी बिल्कुल मजे लेने पर उतर आए हैं।
राहुल गांधी जी से पूछ रहे हैं कि महिला टॉयलेट में घुसते समय क्या राहुल जी ने कान पर जनेऊ चढ़ाया था?
और जब वो कुर्ता फाड़ के हाथ निकाल रहे थे तब जनेऊ क्यों नहीं दिखा?
खैर इन संघी विरोधियों का काम ही सवाल पूछना हैं, पूछने दीजिये। क्योकि एक तरफ जहाँ पीड़ी लोग राहुल गांधी को जबरदस्त नेता मानते है वहीं ये संघी विरोधी उन्हें जबरदस्ती का नेता बताते हैं, ऐसे लोगो को भला क्या खातिर में लाना, अब कहाँ नेहरू गांधी परिवार के युवराज और कहाँ चाय बेचने वाले के समर्थक।
वैसे राहुल गांधी भारतीय राजनीति की एक अबूझ पहेली है, उनकी शिक्षा दीक्षा से ले कर उनके धर्म तक सब बरमूडा ट्रायंगल है। कभी वो एस्केप वेलोसिटी की बात करते है तो कभी वो खुद ही एस्केप हो जाते है, कभी आलू की फैक्टरियां लगाते है तो कभी आलू से सोना बनाते है, यही सब तो है उनमें जो उन्हें सबसे अलग साबित करती है।
राहुल गांधी जी की अमेठी में तूती बोलती है, उनके इशारे के बिना पत्ता भी नहीं हिलता, इसलिए अमेठी 10 साल से हिली भी नहीं मज़ाल हैं कि अमेठी में कोई सड़क बन जाये या फैक्ट्री खुल जाए।
कहते है कि प्रधान मंत्री देश का होता है किसी एक पार्टी का नहीं, लोकतंत्र में आपके चाहे कितने भी मतभेद हो, प्रधान मंत्री अगर देश हित मे कुछ बोले तो उसको सभी को मानना और पालन करना चाहिए। अपने राहुल गांधी जी भी राजनीति की इस शुचिता का जबरदस्त पालन करते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने नारा दिया "कांग्रेस मुक्त भारत" और राहुल गांधी जी इस नारे को सफल बनाने के लिए जी जान से जुट गए समर्पण का भाव इस स्तर का था कि गोवा और अरुणाचल में सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी उसको कांग्रेस मुक्त करवा दिया, और इसका क्रेडिट तक नही लिया।
राहुल जी के विरोधी कहते हैं राहुल जी सत्ता के लोभी हैं लेकिन 2004 से वो सांसद है पर उन्होंने कभी कोई मंत्री पद ग्रहण नहीं किया, वही दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी पहली बार सांसद क्या बने सीधा प्रधान मंत्री की कुर्सी पे चढ़ गए, अब आप ही बताइये की सत्ता का लोभ किसे है?
गौरतलब है कि इतना सब होने के बावजूद भी संघी अपनी मसखरी से बाज नही आ रहे कह रहे हैं कि वो राहुल गांधी को विराट हिन्दू तब मानेंगे जब वो अपनी अगली रैली में मंच से स्वयं "तेल लगाओ डाबर का " गाना गाकर सुनाएंगे, कुछ तो यह भी कह रहे हैं कि अगर वो जनेऊधारी हिन्दू हैं तो यह नारा भी लगाए की " रामलला हम आयेंगे मन्दिर वही बनाएंगे"।
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